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रिंकू बघेल (वार्ता | योगदान) |
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*समस्त राजाओं सहित आपके पुत्र और सैनिक ‘हा कर्ण’ कहकर विलाप करने लगे और बोले – ‘कर्ण ! तुम्हारे पराक्रम का यह अवसर आया है’। (44) | *समस्त राजाओं सहित आपके पुत्र और सैनिक ‘हा कर्ण’ कहकर विलाप करने लगे और बोले – ‘कर्ण ! तुम्हारे पराक्रम का यह अवसर आया है’। (44) | ||
*इस प्रकार आपके महाबली योद्धा लोग राधानन्दन सूत-पुत्र कर्ण को, जो [[दुर्योधन]] के लिये अपना शरीर निछावर किये बैठा था, एक साथ पुकारने लगे। (45) | *इस प्रकार आपके महाबली योद्धा लोग राधानन्दन सूत-पुत्र कर्ण को, जो [[दुर्योधन]] के लिये अपना शरीर निछावर किये बैठा था, एक साथ पुकारने लगे। (45) | ||
− | *राजन ! कर्णने | + | *राजन ! कर्णने [[परशुराम|जमदग्निनन्दन परशुराम]] जी से अस्त्र–विधा की शिक्षा प्राप्त की है और उसका पराक्रम दुर्निवार्य है। इसलिये हम लोगों का मन कर्ण की ओर गया, ठीक वैसे ही, जैसे बड़ी भारी आपत्ति के समय मनुष्य का मन अपने [[मित्र|मित्रों]] तथा सगे-सम्बन्धियों की ओर जाता है। (46) |
− | *राजन ! जैसे भगवान विष्णु देवताओं की सदा अत्यन्त महान भय से रक्षा करते हैं, उसी प्रकार कर्ण हमें भारी भय से उबारने में समर्थ है। (47) | + | *राजन ! जैसे [[विष्णु|भगवान विष्णु]] देवताओं की सदा अत्यन्त महान भय से रक्षा करते हैं, उसी प्रकार कर्ण हमें भारी भय से उबारने में समर्थ है। (47) |
− | *वैशम्पायन जी कहते है- [[जनमेजय]] ! जब संजय इस प्रकार बार-बार कर्ण का नाम ले रहा था, उस समय राजा धृतराष्ट्र ने विषधर सर्प के समान उच्छ्वास लेकर इस प्रकार कहा। (48) | + | *[[वैशम्पायन|वैशम्पायन]] जी कहते है- [[जनमेजय]] ! जब [[संजय]] इस प्रकार बार-बार कर्ण का नाम ले रहा था, उस समय [[धृतराष्ट्र|राजा धृतराष्ट्र]] ने विषधर सर्प के समान उच्छ्वास लेकर इस प्रकार कहा। (48) |
− | धृतराष्ट्रने कहा- संजय ! जब | + | *धृतराष्ट्रने कहा- संजय ! जब तुम लोगों का मन विकर्तन पुत्र कर्ण की ओर गया, तब क्या तुमने शरीर निछावर करने वाले सूतपुत्र राधानन्दन कर्ण को वहाँ देखा? (49) |
+ | *कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि संकट में पड़कर घबराये हुए और भयभीत होकर अपनी रक्षा चाहते हुए [[कौरव|कौरवों]] की प्रार्थना को सत्यपराक्रमी कर्ण ने निष्फल कर दिया हो? (50) | ||
+ | *भीष्म के मारे जाने पर युद्धस्थल में कौरवों के पक्ष में जो कमी आ गयी थी, क्या उसे धनुर्धारियों में श्रेष्ठ कर्ण ने पूरा कर दिया? (51) | ||
+ | *क्या उस खण्डित अंश की पूर्ति करके [[कर्ण]] ने शत्रुओं के मन में भय उत्पन्न किया? संजय ! जगत मे कर्ण को ‘पुरुषसिंह’ कहा जाता है। (52) | ||
+ | *क्या उसने रणभूमि में शोकार्त होकर विशेष रूप से क्रन्दन करने वाले अपने उन बन्धुजनों की रक्षा एवं कल्याण के लिये अपने प्राणों का परित्याग करके मरे [[पुत्र|पुत्रों]] की विजयाभिलाषा को सफल किया? (53) | ||
− | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत | + | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत द्रोणाभिषेक पर्व में धृतराष्ट्र-प्रश्नविषयक पहला अध्याय पूरा हुआ। |
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11:24, 23 अप्रॅल 2016 का अवतरण
pratham (1) adhyay: dron parv ( dronabhishek parv)
mahabharat: dron parv: pratham adhyay: shlok 41-53 ka hindi anuvad
is prakar shrimahabharat dronaparv ke anhtargat dronabhishek parv mean dhritarashtr-prashhnavishayak pahala adhhyay poora hua.
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tika tippani aur sandarbh
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