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- हँसत कहति कीधौं सत भाउ -सूरदास
- हँसत कहौ मैं तोसौं प्यारी -सूरदास
- हँसत गोपाल नंद के आगैं -सूरदास
- हँसत चले तब कुँवर कन्हाई -सूरदास
- हँसत स्याम ब्रज-घर कौं भागे -सूरदास
- हँसत हँसत स्याम प्रबल -सूरदास
- हँसति नारि सब घरहिं चलो -सूरदास
- हँसति नारि सब घरहिं चलों -सूरदास
- हँसि-हँसि कहत कृष्न मुख बानी -सूरदास
- हँसि-हँसि झूलत फूल-हिंडोरें -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हँसि के कह्यो दूतिका आगै -सूरदास
- हँसि के कह्यो दूतिका आगैं -सूरदास
- हँसि बस कीन्ही घोष-कुमारि -सूरदास
- हँसि बोले गिरधर रस-बानी -सूरदास
- हँसि बोले तब सारँगपानी -सूरदास
- हँसि हँसि गोपी कहतिं परस्पर -सूरदास
- हंस
- हंस (अरिष्टा पुत्र)
- हंस (कृष्ण)
- हंस (बहुविकल्पी)
- हंस (वसुदेव पुत्र)
- हंस काग कौं संग भयौ -सूरदास
- हंसकायन
- हंसकायन (जाति)
- हंसकायन (बहुविकल्पी)
- हंसकूट
- हंसचूड़
- हंसज
- हंसत गोप कहि नंद महर सौं -सूरदास
- हंसत सखनि सौं कहत कन्हाई -सूरदास
- हंसति सखनि यह कहत कन्हाई -सूरदास
- हंसप्रपतन तीर्थ
- हंसवक्त्र
- हंसवाहन
- हंसि-हंसि कहत कृष्नक मुख बानी -सूरदास
- हंसि जननि सौं बात कहत हरि -सूरदास
- हंसि हंसि गोपी कहति परस्पर -सूरदास
- हंसिका
- हंसी
- हंसी (बहुविकल्पी)
- हंसी (ब्रह्मा पुत्र)
- हठ (महाभारत संदर्भ)
- हनु, तैं सबको काज सँवारयौ -सूरदास
- हनुमत, मली करी तुम आए -सूरदास
- हनुमत बल प्रगट भयौ -सूरदास
- हनुमान
- हनुमान अंगद के आगैं -सूरदास
- हनुमान का भीमसेन से रामचरित्र का संक्षिप्त वर्णन
- हनुमान द्वारा चारों युगों के धर्मों का वर्णन
- हनुमान द्वारा चारों वर्णों के धर्मों का प्रतिपादन
- हनुमान द्वारा भीमसेन को विशाल रूप का प्रदर्शन
- हनुमान द्वारा लंकायात्रा का वृत्तान्त सुनाना
- हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हनुमान सँजीवनि ल्यायौ -सूरदास
- हन्यमान
- हम अलि कैसे कै पतियाहि -सूरदास
- हम अलि गोकुलनाथ अराध्यो -सूरदास
- हम अहीर ब्रजवासी लोग -सूरदास
- हम कौं जागत रैनि बिहानी -सूरदास
- हम कौं सपनेहू मैं सोच -सूरदास
- हम जानति वेइ कुंवर कन्हाई -सूरदास
- हम जानतिं वेइ कुँवर कन्हाई -सूरदास
- हम तप करि तनु गारयौ जाकौ -सूरदास
- हम तप करि तनु गारयौ जाकौं -सूरदास
- हम तिय मृतक जियत ससि साखी -सूरदास
- हम तुम सौं बिनती करैं -सूरदास
- हम तुम्हरै नितहीं प्रति आवति -सूरदास
- हम तुम्हरैं नितही प्रति आवति -सूरदास
- हम तै गए उनहुँ तै खोवै -सूरदास
- हम तै तप मुरली न करै री -सूरदास
- हम तैं कमल नैन -सूरदास
- हम तैं गए उनहुँ तैं खोवैं -सूरदास
- हम तैं तप मुरली न करै री -सूरदास
- हम तैं बिदुर कहा है नीकौं -सूरदास
- हम तौ इतनें ही -सूरदास
- हम तौ इतनै ही सचु पायो -सूरदास
- हम तौ कान्ह केलि की भूखी -सूरदास
- हम तौ तबहि तै जोग लियौ -सूरदास
- हम तौ नंदघोप के वासी -सूरदास
- हम तौ भई जग्य के पसु ज्यौं -सूरदास
- हम तौ सब बातनि सचु पायौ -सूरदास
- हम देखे इहि भाँति कन्हाई -सूरदास
- हम देखे इहि भाँति गुपाल -सूरदास
- हम न भई वृंदावन-रेनु -सूरदास
- हम न भईं बड़भागिनि बँसुरी -सूरदास
- हम न भईं बृंदाबन-रेनु -सूरदास
- हम पर काहै झुकति ब्रजनारी -सूरदास
- हम पर रिस करनि ब्रजनारि -सूरदास
- हम पर हेत किए रहिबौ -सूरदास
- हम भई ढीठि भले तुम ग्वाल -सूरदास
- हम भक्तनि के भक्त हमारे -सूरदास
- हम भक्तनि के भक्त हमारे -सूरदास
- हम मतिहीन कहा कछु जानै -सूरदास
- हम माँगत हैं सहज सौं -सूरदास
- हम लेंगे तेरा नाम -रामनरेश त्रिपाठी
- हम व्रजबाल गोपाल उपासी -सूरदास
- हम सब जानति हरि की घातै -सूरदास
- हम सरघा ब्रजनाथ सुधानिधि -सूरदास
- हम सरषा ब्रजनाथ -सूरदास
- हमको दुखी देखकर प्यारे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हमकौ इती कहा गोपाल -सूरदास
- हमकौ तुम बिनु सबै सतावत -सूरदास
- हमकौ दुख भई ये सेजै -सूरदास
- हमकौ नँदनदन कौ गारौ -सूरदास
- हमकौ विधि ब्रज वधू न कीन्ही -सूरदास
- हमकौ हरि की कथा सुनाउ -सूरदास
- हमकौं जागत रैनि बिहानी -सूरदास
- हमकौं नीकै समुझि परी -सूरदास
- हमकौं नृप इहिं हेत बुलाए -सूरदास
- हमकौं बिधि ब्रज-वधू न कीन्ही -सूरदास
- हमकौं लाज न तुमहिं कन्हाई -सूरदास
- हमकौं सपनेहू मैं सोच -सूरदास
- हमतै कछु सेवा न भई -सूरदास
- हमतै कमल नयन भए दूरि -सूरदास
- हमतै हरि कबहूँ न उदास -सूरदास
- हमतौ दुहूँ भाँति फल पायौ -सूरदास
- हमतौ निसि दिन हरि गुन गावै -सूरदास
- हमने सुणीछै हरि अधम उधारण -मीराँबाई
- हमरी सुधि भूली अलि आए -सूरदास
- हमरी सुरति बिसारी बनवारी -सूरदास
- हमरी सुरति लेत नहिं माधौ -सूरदास
- हमरी सुरति विसारी वनवारी -सूरदास
- हमरे प्रथमहि नेह नैन कौ -सूरदास
- हमरै कौन जोग विधि साधै -सूरदास
- हमरो प्रणाम बांके बिहारी को -मीराँबाई
- हमसो उनसौ कीन सगाई -सूरदास
- हमहि और सो रोकै कौन -सूरदास
- हमहि कहा सखि तन के -सूरदास
- हमहि कहा सखि तन के जतन की -सूरदास
- हमहि कह्यौ हो स्याम दिखावहु -सूरदास
- हमहिं उर कौन कौ रे भैया -सूरदास
- हमहिं और सो रोकै कौन -सूरदास
- हमहिं कह्यौ हो स्याम दिखावहु -सूरदास
- हमही पर पिय रूसे हौ -सूरदास
- हमहीं पर पिय रूसे हौ -सूरदास
- हमहीं पर सतरात कन्हाई -सूरदास
- हमारी जन्मुभूमि यह गाउँ -सूरदास
- हमारी तुमकौं लाज हरी -सूरदास
- हमारी नाहिं जानत पीर -सूरदास
- हमारी पीर न हरि बिनु जाइ -सूरदास
- हमारी बात सुनौ ब्रजराज -सूरदास
- हमारे अंबर देहु मुरारी -सूरदास
- हमारे जीवन लाडिलि-लाल -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हमारे जीवनधन कृष्ण मुकुंद -सूरदास
- हमारे देहु मनोहर चीर -सूरदास
- हमारे निर्धन के धन राम -सूरदास
- हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ -सूरदास
- हमारे बोल बचन परतीति -सूरदास
- हमारे मन राधा स्याम बसो -मीराँबाई
- हमारे श्री विट्ठल नाथ धनी -छीतस्वामी
- हमारे हरि चलत कहत है दूरि -सूरदास
- हमारे हरि चलन -सूरदास
- हमारे हिरदै कुलिसहु जीत्यौ -सूरदास
- हमारे हिरदैं कुलिसहु -सूरदास
- हमारै हरि हारिल की लकरी -सूरदास
- हमारो दान देहो गुजरेटी -कुम्भनदास
- हमें ऐसा बल दो भगवान -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हमें प्रभु! दो ऐसा वरदान -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हमै तौ इतनै ही सौ काज -सूरदास
- हमैं नँदनंदन मोल लिये -सूरदास
- हयग्रीव
- हयग्रीव (बहुविकल्पी)
- हयग्रीव (राजा)
- हयग्रीव दैत्य
- हयशिरा
- हर
- हर (बहुविकल्पी)
- हर (ब्रह्मा के पुत्र)
- हर (वसु)
- हर कौ तिलक हरि -सूरदास
- हर कौ तिलक हरि बिनु दहत -सूरदास
- हर लो प्रभु! मेरी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हर लो हरि सुख-सुविधा सारी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हरत मन-माधव कंचन-गोरी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हरवर चक्र धरे हरि धावत -सूरदास
- हरष अक्रूर हिरदै न माइ -सूरदास
- हरष नर नारि मथुरा पुरी के -सूरदास
- हरष भए नँदलाल बैठि -सूरदास
- हरष भए नँदलाल बैठि 2 -सूरदास
- हरष भए नँदलाल बैठि 3 -सूरदास
- हरष भए नँदलाल बैठि 4 -सूरदास
- हरषि पिय प्रेम तिय अंक लीन्ही -सूरदास
- हरषि मुरली नाद स्याम कीन्हौ -सूरदास
- हरषि स्याम तिय बाहँ गही -सूरदास
- हरषि स्याम पिय बाहँ गही -सूरदास
- हरषी निरखि रूप अपार -सूरदास
- हरषे नंद टेरत महरि -सूरदास
- हरि
- हरि, तुम क्यौं न हमारैं आए -सूरदास
- हरि, हरि, हरि,हरि, सुमिरन करौ -सूरदास
- हरि, हौं ऐसो अमल कमायौ -सूरदास
- हरि, हौं सब पतितनि कौ नायक -सूरदास
- हरि, हौं सब पतितनि कौ राजा -सूरदास
- हरि-गुन-कथा अपार2 -सूरदास
- हरि-गुन-कथा अपार -सूरदास
- हरि-जस-कथा सुनौ चित लाइ -सूरदास
- हरि-दर्शन का सुख -चंद्रकला
- हरि-प्रति-अंग नागरि निरखि -सूरदास
- हरि-प्रिय-भामिनि -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हरि-बिरह-बिमोचनि श्रीराधा -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हरि-मुख-बिधु मेरी अँखियाँ चकोरी -सूरदास
- हरि-मुख देखि हो नँद–नारि -सूरदास
- हरि-मुख देखि हो बसुदेव -सूरदास
- हरि-मुख देभि भूले नैन -सूरदास
- हरि-मुख सुनत वेनु रसाल -सूरदास
- हरि-रस तौअब जाइ कहुँ लहियै -सूरदास
- हरि-रस तौऽब जाइ कहुँ लहियै -सूरदास
- हरि-हर संकर, नमो नमो -सूरदास
- हरि-हरि-हरि सुमिरौ सब कोइ2 -सूरदास
- हरि-हरि-हरि सुमिरौ सब कोइ -सूरदास
- हरि (अनुचर)
- हरि (ऋषभदेव पुत्र)
- हरि (गरुड़)
- हरि (तारकाक्ष पुत्र)
- हरि (बहुविकल्पी)
- हरि (महाभारत संदर्भ)
- हरि (योद्धा)
- हरि (राक्षस)
- हरि अक्रूर हरि हृदय लायौ -सूरदास
- हरि अक्रूर हरि ह्रदय लायौ -सूरदास
- हरि अनुराग भरी व्रजनारी -सूरदास
- हरि अनुराग भरीं व्रजनारी -सूरदास
- हरि अपनै आँगन कछु गावत -सूरदास
- हरि अवतरे कारागार -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हरि आवत गाइनि के पाछे -सूरदास
- हरि आवहिं किहिं हेत -सूरदास
- हरि उर मोहिनि बेलि लसी -सूरदास
- हरि कर तै गिरिराज उतारयौर -सूरदास
- हरि कर तैं गिरिराज उतारयौ -सूरदास
- हरि कर राजत माखन-रोटी -सूरदास
- हरि करिहै कलंकि अवतार -सूरदास
- हरि कहँ इते दिन -सूरदास
- हरि कहँ इते दिन लाए -सूरदास
- हरि कित भए ब्रज के चोर -सूरदास
- हरि किलकत जसुदा की कनियां -सूरदास
- हरि किलकत जसुमति की कनियां -सूरदास
- हरि की एकौ बात न जानी -सूरदास
- हरि की कथा होइ जब जहाँ -सूरदास
- हरि की कृपा जापर होइ -सूरदास
- हरि की प्रीति उर माहिं करकै -सूरदास
- हरि की ब्रज तन दीठि रूखौही -सूरदास
- हरि की लीला कहत न आवै -सूरदास
- हरि की लीला देखि नारद चकित भए2 -सूरदास
- हरि की लीला देखि नारद चकित भए3 -सूरदास
- हरि की लीला देखि नारद चकित भए4 -सूरदास
- हरि की लीला देखि नारद चकित भए -सूरदास
- हरि की सरन महँ तू आउ -सूरदास
- हरि कृपा करै जिहिं, जितै सोई -सूरदास
- हरि के जन की अति ठकुराई -सूरदास
- हरि के जन सब तैं अधिकारी -सूरदास
- हरि के बदन तन धौं चाहि -सूरदास
- हरि के बराबरि बेनु -सूरदास
- हरि के बाल-चरित अनूप -सूरदास
- हरि के रूप रेख नहिं राजा -सूरदास
- हरि को बदन रूप-निधान -सूरदास
- हरि कौ नार न छीनौं माई -सूरदास
- हरि कौ बदन रूप-निधान -सूरदास
- हरि कौ बिमल जस गावति गोपँगना -सूरदास
- हरि कौ भजन करे जो कोइ -सूरदास
- हरि कौ मारग दिन -सूरदास
- हरि कौ मारग दिन प्रति जोवति -सूरदास
- हरि कौ मुख माइ -सूरदास
- हरि कौ रूप कह्यौ नहिं जाइ -सूरदास
- हरि कौं टेरत फिरति गुवारि -सूरदास
- हरि कौं टेरति है नंदरानी -सूरदास
- हरि क्रीड़ा कापै कहि जाइ -सूरदास
- हरि गारुड़ी तहाँ तब आए -सूरदास
- हरि गोकुल की प्रीति चलाई -सूरदास
- हरि ग्वालनि मिलि खेलन लागे -सूरदास
- हरि चरननि सुकदेव सिर नाइ -सूरदास
- हरि चरनारबिंद उर धरौ2 -सूरदास
- हरि चरनारबिंद उर धरौ -सूरदास
- हरि चरनारव्दि उर धरौ -सूरदास
- हरि चितए जमलार्जुन के तन -सूरदास
- हरि चितवनि चित तै नहिं टरै -सूरदास
- हरि छबि अंग नट के ख्याल -सूरदास
- हरि छबि देखि नैन ललचाने -सूरदास
- हरि जु मुरली तुम्है सुनाऊँ -सूरदास
- हरि जु सौं अब मैं कहा कहौं -सूरदास
- हरि जु हम सौं करी -सूरदास
- हरि जु हमसौ करी माई -सूरदास
- हरि जू, सुनहु वचन सुजान -सूरदास
- हरि जू, हौं यातैं दुख-पात्र -सूरदास
- हरि जू आए सो भली कीन्ही -सूरदास
- हरि जू इते दिन कहाँ लगाए -सूरदास
- हरि जू की आरती बनी -सूरदास
- हरि जू की बाल-छबि कहौं बरनि -सूरदास
- हरि जू कौं ग्वालिनि भोजन ल्याई -सूरदास
- हरि जू तुम तै कहा न होइ -सूरदास
- हरि जू वै सुख बहुरि कहाँ -सूरदास
- हरि जू सुनियत मधुबन छाए -सूरदास
- हरि ज्यौ धरयौ हंस अवतार -सूरदास
- हरि ठाकुर लोगनि सौ ऊधौ -सूरदास
- हरि ठाढे रथ चढे दुवारे -सूरदास
- हरि तब अपनी आँखि मुँदाई -सूरदास
- हरि तुम कायकू प्रीत लगाई -मीरां
- हरि तुम काहे को प्रीत लगाई -मीराँबाई
- हरि तुम बलि कौं छलि कहा लीन्यौ -सूरदास
- हरि तुम हरो जन की पीर -मीराँबाई
- हरि तुम हरो जन की भीर -मीराँबाई
- हरि तुम हरो जन की भीर -मीरां
- हरि तुम्है बारंबार सम्हारै -सूरदास
- हरि तुव माया को न विगोयौ -सूरदास
- हरि तै बिमुख होइ नर जोइ -सूरदास
- हरि तै भलौ सुपति सीता कौ -सूरदास
- हरि तैं बिमुख होइ नर जोइ2 -सूरदास
- हरि तैं बिमुख होइ नर जोइ -सूरदास
- हरि तैरौ भजन कियौ न जाइ -सूरदास
- हरि तोहिं बारंबार सँम्हारैं -सूरदास
- हरि तोहिं बारबार सँम्हारै -सूरदास
- हरि त्रिलोक-पति पूरनकामी -सूरदास
- हरि दरसन कौ तरसत अँखियाँ -सूरदास
- हरि दरसन कौ तलफत नैन -सूरदास
- हरि दरसन कौं तरसति अँखियाँ -सूरदास
- हरि दरसन सत्नाजित आयौ -सूरदास
- हरि दरसन सत्राजित आयौ -सूरदास
- हरि देखन की साध भरी -सूरदास
- हरि देखीं जुवती आवत जब -सूरदास
- हरि देखैं बिनु कल न परै -सूरदास
- हरि न मिले माइ -सूरदास
- हरि न मिले माइ जनम -सूरदास
- हरि निकट सुभट दंतवक्र आयौ -सूरदास
- हरि पतित-पावन दीन-बंधु -सूरदास
- हरि परदेस बहुत -सूरदास
- हरि परदेस बहुत दिन लाए -सूरदास
- हरि परीच्छितहि गर्भ मँझार2 -सूरदास
- हरि परीच्छितहि गर्भ मँझार -सूरदास
- हरि पिय तुम जनि चलन कहौ -सूरदास
- हरि बल सोभित इहिं अनुहार -सूरदास
- हरि बिछुरत प्रान निलज्ज रहे री -सूरदास
- हरि बिछुरत फाट्यौ न हियौ -सूरदास
- हरि बिछुरन की सूल न जाइ -सूरदास
- हरि बिछुरन निसि नींद गई री -सूरदास
- हरि बिन अपनौ को संसार -सूरदास
- हरि बिन कूँण गती मेरी -मीराँबाई
- हरि बिन कूण गती मेरी -मीराँबाई
- हरि बिन कौन -सूरदास
- हरि बिन बैरिन नींद बढ़ी -सूरदास
- हरि बिन लो लोचन मरत पियास -सूरदास
- हरि बिनु इहिं बिधि है ब्रज रहियतु -सूरदास
- हरि बिनु ऐसी बिधि ब्रज जीजै -सूरदास
- हरि बिनु को पुरवै मो स्वारथ -सूरदास
- हरि बिनु कोऊ काम न आयौ -सूरदास
- हरि बिनु कौन दरिद्र हरै -सूरदास
- हरि बिनु कौन सौ कहियै -सूरदास