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*उस सेना के भिन्न-भिन्न सैनिक, नरेशगण अत्यन्त भयभीत हो देवव्रत भीष्म के बिना मानो [[पाताल]] में डूब रहे थे। (31) | *उस सेना के भिन्न-भिन्न सैनिक, नरेशगण अत्यन्त भयभीत हो देवव्रत भीष्म के बिना मानो [[पाताल]] में डूब रहे थे। (31) | ||
*उस समय [[कौरव|कौरवों]] ने [[कर्ण]] का स्मरण किया । जैसे गृहस्थ का मन अतिथि की ओर तथा आपत्ति में पड़े हुए मनुष्य का मन अपने मित्र या [[भाई]]-बन्धु की ओर जाता है, उसी प्रकार [[कौरव|कौरवों]] का मन समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ एवं तेजस्वी वीर कर्ण की ओर गया; क्योकि वही [[भीष्म]] के समान पराक्रमी समझा जाता था। भारत ! वहाँ सब राजा ‘कर्ण ! कर्ण !’ की पुकार करने लगे। (32-33) | *उस समय [[कौरव|कौरवों]] ने [[कर्ण]] का स्मरण किया । जैसे गृहस्थ का मन अतिथि की ओर तथा आपत्ति में पड़े हुए मनुष्य का मन अपने मित्र या [[भाई]]-बन्धु की ओर जाता है, उसी प्रकार [[कौरव|कौरवों]] का मन समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ एवं तेजस्वी वीर कर्ण की ओर गया; क्योकि वही [[भीष्म]] के समान पराक्रमी समझा जाता था। भारत ! वहाँ सब राजा ‘कर्ण ! कर्ण !’ की पुकार करने लगे। (32-33) | ||
− | *वे कहने लगे कि ‘राधानन्दन सूतपुत्र कर्ण हमारा हितैषी है । हमारे लिये अपना शरीर निछावर किये हुए है । अपने मन्त्रियों और बन्धुओं के साथ महायशस्वी कर्ण ने दस दिनों तक युद्ध नहीं किया है । उसे | + | *वे कहने लगे कि ‘राधानन्दन सूतपुत्र कर्ण हमारा हितैषी है । हमारे लिये अपना शरीर निछावर किये हुए है । अपने मन्त्रियों और बन्धुओं के साथ महायशस्वी कर्ण ने दस दिनों तक युद्ध नहीं किया है । उसे शीघ्र बुलाओ। देर न करो। (34) |
*राजन ! बात यह हुई थी कि जब बल और पराक्रम से सुशोभित रथियों की गणना की जा रही थी, उस समय समस्त [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] के देखते-देखते भीष्म जी ने महाबाहु नरश्रेष्ठ कर्ण को अर्धरथी बता दिया । यद्यपि वह दो रथियों के समान है। (35) | *राजन ! बात यह हुई थी कि जब बल और पराक्रम से सुशोभित रथियों की गणना की जा रही थी, उस समय समस्त [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] के देखते-देखते भीष्म जी ने महाबाहु नरश्रेष्ठ कर्ण को अर्धरथी बता दिया । यद्यपि वह दो रथियों के समान है। (35) | ||
*रथियों और अतिरथियों की संख्या में वह अग्रगण्य और शूरवीर के सम्मान का पात्र है। रणक्षेत्र में [[असुर|असुरों]] सहित सम्पूर्ण देवेश्ररों के साथ भी वह युद्ध करने का उत्साह रखता है। (37) | *रथियों और अतिरथियों की संख्या में वह अग्रगण्य और शूरवीर के सम्मान का पात्र है। रणक्षेत्र में [[असुर|असुरों]] सहित सम्पूर्ण देवेश्ररों के साथ भी वह युद्ध करने का उत्साह रखता है। (37) |
18:12, 22 अप्रॅल 2016 का अवतरण
pratham (1) adhyay: dron parv ( dronabhishek parv)
mahabharat: dron parv: pratham adhyay: shlok 21-40 ka hindi anuvad
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tika tippani aur sandarbh
- ↑ avivek
sanbandhit lekh
varnamala kramanusar lekh khoj