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रिंकू बघेल (वार्ता | योगदान) |
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोण पर्व: अष्टम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोण पर्व: अष्टम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
− | द्रोणाचार्य के पराक्रम और वध का संक्षिप्त समाचार | + | ;द्रोणाचार्य के पराक्रम और वध का संक्षिप्त समाचार |
− | संजय कहते हैं- महाराज ! द्रोणाचार्य को इस प्रकार घोड़े, सारथि, रथ और हाथियों का संहार करते देखकर भी व्यथित हुए पाण्डव-सैनिक उन्हें रोक न | + | *[[संजय]] कहते हैं- महाराज! [[द्रोणाचार्य]] को इस प्रकार घोड़े, [[सारथि]], [[रथ]] और हाथियों का संहार करते देखकर भी व्यथित हुए [[पाण्डव सेना|पाण्डव-सैनिक]] उन्हें रोक न सके। (1) |
− | उस रणक्षेत्र में पाण्डवों द्वारा सुरक्षित हुई उनकी | + | *तब [[युधिष्ठिर|राजा युधिष्ठिर]] ने [[धृष्टद्युम्न]] और [[अर्जुन]] से कहा– वीरों! मेरे सैनिकों को सब ओर से प्रयत्न शील होकर द्रोणाचार्य को रोकना चाहिये। (2) |
− | राजन ! उन घोड़ों की नस्ल अच्छी थी और वे बिना विश्राम किये निरन्तर दौड़ लगाते रहते | + | *यह सुनकर वहां अर्जुन और सेवकों सहित धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य को रोका। फिर तो सभी महारथी उन पर टूट पड़े। (3) |
− | आर्य ! | + | *राजन! केकय राजकुमार, [[भीमसेन]], [[अभिमन्यु]], [[घटोत्कच]], युधिष्ठिर, [[नकुल]]-[[सहदेव]], मत्स्य देशीय सैनिक, [[द्रुपद]] के सभी [[पुत्र]], हर्ष और उत्साह में भरे हुए [[द्रौपदी]] के पाँचों पुत्र, [[धृष्टकेतु (बहुविकल्पी)|धृष्टकेतु]], [[सात्यकि]], कुपित [[चेकितान]] और [[युयुत्सु|महारथी युयुत्सु]]– ये तथा और भी जो भूमिपाल पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर के अनुयायी थे, वे सब अपने कुल और पराक्रम के अनुकूल अनेक प्रकार के वीरोचित कार्य करने लगे। (4-6) |
+ | *उस रणक्षेत्र में [[पाण्डव|पाण्डवों]] द्वारा सुरक्षित हुई उनकी सेना की ओर द्रोणाचार्य ने क्रोध पूर्वक आँखे फाड़-फाड़कर देखा। (7) | ||
+ | *जैसे [[वायु]] बादलों को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार [[रथ]] पर बैठे हुए रण दुर्जय वीर [[द्रोणाचार्य]] प्रचण्ड कोप धारण करके [[पाण्डव सेना]] का संहार करने लगे। (8) | ||
+ | *वे बूढ़े होकर भी जवान के समान फुर्तीले थे। द्रोणाचार्य उन्मत की भाँति युद्ध स्थल में इधर-उधर चारों और विचरते और रथों, घोड़ों पैदल मनुष्यों तथा हाथियों पर धावा करते थे। (9) | ||
+ | *उनके घोड़े स्वभावत: लाल रंग के थे। उस पर भी उनके सारे अंग खून से लथ पथ होने के कारण वे और भी लाल दिखायी देते थे। उनका वेग वायु के समान तीव्र था। राजन! उन घोड़ों की नस्ल अच्छी थी और वे बिना विश्राम किये निरन्तर दौड़ लगाते रहते थे। (10) | ||
+ | *नियम पूर्वक व्रत का पालन करने वाले द्रोणाचार्य को क्रोध में भरे हुए काल के समान आते देख पाण्डु नन्दन युधिष्ठिर के सारे सैनिक इधर-उधर भाग चले। (11) | ||
+ | *वे कभी भागते, कभी पुन: लौटते और कभी चुपचाप खड़े होकर युद्ध देखते थे; इस प्रकार की हल चल में पड़े हुए उन योद्धाओं का अत्यन्त दारुण भंयकर कोलाहल चारों ओर गूँज उठा। (12) | ||
+ | *वह कोलाहल शूर वीरों का हर्ष और कायरों का भय बढ़ाने वाला था। वह [[आकाश]] और पृथ्वी के बीच में सब ओर व्याप्त हो गया। (13) | ||
+ | *तब द्रोणाचार्य ने पुन: रणभूमि में अपना नाम सुना-सुनाकर शत्रुओं पर सैकड़ों [[बाण अस्त्र|बाणों]] की वर्षा करते हुए अपने भयंकर स्वरूप को प्रकट किया। (14) | ||
+ | *आर्य! बलवान द्रोणाचार्य वृद्ध होकर भी तरुण के समान फुर्ती दिखाते हुए पाण्डु पुत्र [[युधिष्ठिर]] की सेनाओं में काल के समान विचरने लगे। (15) | ||
+ | *वे योद्धाओं के मस्तकों और आभूषण से भूषित भयंकर भुजाओं को भी काटकर रथ की बैठकों को सूनी कर देते और महारथियों की ओर देख-देखकर दहाड़ते थे। (16) | ||
+ | *प्रभो! उनके हर्ष पूर्वक किये हुए सिंहनाद अथवा बाणों के वेग से उस रणक्षेत्र में समस्त योद्धा सर्दी से पीड़ित हुई गायों की भाँति थर-थर काँपने लगे। (17) | ||
+ | *[[द्रोणाचार्य]] के [[रथ]] की घरघराहट, प्रत्यंचा को दबा-दबाकर खींचने के शब्द और [[धनुष]] की टंकार से [[आकाश]] में महान कोलाहल होने लगा। (18) | ||
+ | *द्रोणाचार्य के धनुष से सहस्त्रों बाण निकल कर सम्पूर्ण दिशाओं में व्याप्त हो हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सैनिकों पर बड़े वेग से गिरने लगे। (19) | ||
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11:34, 26 अप्रॅल 2016 का अवतरण
ashhtam (8) adhyay: dron parv ( dronabhishek parv)
mahabharat: dron parv: ashhtam adhyay: shlok 1-19 ka hindi anuvad
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tika tippani aur sandarbh
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