"महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 7 श्लोक 22-43" के अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोण पर्व: सप्‍तम अध्याय: श्लोक 22-43 का हिन्दी अनुवाद</div>
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;<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोण पर्व: सप्‍तम अध्याय: श्लोक 22-43 का हिन्दी अनुवाद</div>
  
अपनी भुजाओं से सुशोभित होने वाले भीष्‍म ने तो युद्ध में कुन्‍तीकुमारों की रक्षा की है; परंतु कर्ण अपने तीखे बाणों द्वारा उनका विनाश कर डालेगा । प्रजानाथ ! इस प्रकार प्रसन्‍न होकर परस्‍पर बात करते तथा राधानन्‍दन कर्णकी प्रंशसा और आदर करते हुए आपके सैनिक युद्ध के लिये चले । उस समय द्रोणाचार्यने हमारी सेना के द्वारा शकटव्‍यूह का निमार्ण किया था । राजन ! हमारे मनमनस्‍वी शत्रुओं की सेना का क्रौचव्‍यूह दिखायी देता था । भारत ! धर्मराज युधिष्ठिर ने स्‍वयं ही प्रसन्‍नतापूर्वक उस व्‍यूह की रचना की थी । पाण्‍डवों के उस व्‍यूह के अग्रभागमें अपनी वानरध्‍वजा को बहुत ऊँचेतक फहराते हुए पुरुषोतम भगवान श्रीकृष्‍ण और अर्जुन खड़े हुए थे । अमित तेजस्‍वी अर्जुन का वह ध्‍वज सूर्य के मार्गतक फैला हुआ था । <br />
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वह सम्‍पूर्ण सेनाओं के लिये श्रेष्‍ठ आश्रय तथा समस्‍त धनुर्धरों के तेजका पुज था । वह ध्‍वज पाण्‍डुनन्‍दन महात्‍मा युधिष्ठिर सेनाको अपनी दिव्‍य प्रभासे उन्‍द्रासित कर रहा था ।  जैसे प्रलयकाल में प्रज्‍वलित सूर्य सारी वसुधा को देदीप्‍य मान करते दिखाये देते हैं, उसी प्रकार बुद्धिमान् अर्जुन का वह विशाल ध्‍वज सर्वत्र प्रकाशमान दिखायी देता था । समस्‍त योद्धाओं में अर्जुन श्रेष्‍ठ हैं, धनुषों में गाण्‍डीव श्रेष्‍ठ है, सम्‍पूर्ण चेतन सत्‍ताओं में सच्चिदानन्‍दघन वसुदेवनन्‍दन भगवान श्रीकृष्‍ण श्रेष्‍ठ है और चक्रों में सुदर्शन श्रेष्‍ठ है । श्‍वेत घोड़ों से सुशोभित वह रथ इन चार तेजोंको धारण करता हुआ शत्रुओं के सामने उठे हुए कालचक्र के समान खड़ा हुआ । इस प्रकार वे दोनो महात्‍मा श्रीकृष्‍ण और अर्जुन अपनी सेनाके अग्रभाग में सुशोभित हो रहे थे । <br />
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*अपनी भुजाओं से सुशोभित होने वाले [[भीष्‍म]] ने तो युद्ध में [[कुन्‍ती]] कुमारों की रक्षा की है; परंतु [[कर्ण]] अपने तीखे [[बाण|बाणों]] द्वारा उनका विनाश कर डालेगा। (22)
राजन ! आपका सेना के प्रमुख भाग मे कर्ण और शत्रुओं की सेना के अग्रभाग मे अर्जुन खड़े थे । वे दोनों उस समय विजय के लिये रोषावेश में भरकर एक-दूसरे का वध करनेकी इच्‍छासे रणक्षेत्र में परस्‍पर दृष्टिपात करने लगे । तदनन्‍तर सहसा महारथी द्रोणाचार्य आगे बढ़े । फिर तो भयंकर आर्तनाद के साथ सारी पृथ्‍वी कॉप उठी । इसके बाद प्रचण्‍ड वायुके वेग से बड़े जोरकी धूल उठी, जो रेशमी वस्‍त्रों के समुदाय सी प्रतीत होती थी । उस तीव्र एवं भयंकर धूलने सूर्यसहित समूचे आकाश को ढक लिया । आकाशमें मेघों की घटा नहीं थी, तो भी वहां से मास, रक्‍त तथा हडिडयों की वर्षा होने लगी । नरेश्‍वर ! उस समय गीध, बाज, बगले, कंक और हजारों कौवे आपकी सेना के ऊपर- ऊपर उड़ने लगे । गीदड़ जोर-जोर से दारुण एवं भयदायक बोली बोलने लगे और मांस खाने तथा रक्‍त पीने की इच्‍छा से बारबार आपकी सेना को दाहिने करके घूमने लगे । उस समय एक प्रज्‍वलित एवं देदीप्‍यमान उल्‍का युद्ध स्‍थल में अपने पुच्‍छभाग द्वारा सबको घेरकर भारी गर्जना और कम्‍पन के साथ पृथ्‍वी पर गिरी। <br />
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*प्रजानाथ! इस प्रकार प्रसन्‍न होकर परस्‍पर बात करते तथा राधानन्‍दन कर्ण की प्रंशसा और आदर करते हुए आपके सैनिक युद्ध के लिये चले। उस समय [[द्रोण|द्रोणाचार्य]] ने हमारी सेना के द्वारा शकटव्‍यूह का निर्माण किया था। (23-24)
राजन ! सेनापति द्रोण के युद्ध के लिये प्रस्‍थान करते ही सूर्य के चारों ओर बहुत बड़ा घेरा पड़ गया और बिजली चमकने के साथ ही मेघ-गर्जना सुनायी देने लगी। ये तथा और भी बहुत से भयंकर उत्‍पात प्रकट हुए, जो युद्ध में वीरों की जीवन-लीला के विनाश की सूचना देनेवाले थे । तदनन्‍तर एक दूसरे के वध की इच्‍छावाले कौरवों तथा पाण्‍डवों की सेनाओं में भयंकर युद्ध होने लगा और उनके कोलाहल में सारा जगत् व्‍याप्‍त हो गया। कोध्र मे भरे हुए पाण्‍डव तथा कौरव विजयकी अभिलाषा लेकर एक-दूसरे को तीखे अस्‍त्र-शस्‍त्रो द्वारा मारने लगे । वे सभी योद्धा प्रहार करनेमें कुशल थे । महाधनुर्धर महातेजस्‍वी द्रोणाचार्यने पाण्‍डवों की विशाल सेनापर सैकड़ों पैने बाणोंकी वर्षा करते हुए बड़े वेगसे आक्रमण किया । 
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*राजन! हमारे महामनस्‍वी शत्रुओं की सेना का क्रौंचव्‍यूह दिखायी देता था। भारत! [[युधिष्ठिर|धर्मराज युधिष्ठिर]] ने स्‍वयं ही प्रसन्‍नता पूर्वक उस [[व्‍यूह]] की रचना की थी। (24)
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*[[पाण्‍डव|पाण्‍डवों]] के उस व्‍यूह के अग्रभाग में अपनी वानर [[ध्वज |ध्‍वजा]] को बहुत ऊँचे तक फहराते हुए पुरुषोतम [[कृष्‍ण|भगवान श्रीकृष्‍ण]] और [[अर्जुन]] खड़े हुए थे। (25)
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*अमित तेजस्‍वी [[अर्जुन]] का वह ध्‍वज [[सूर्य]] के मार्ग तक फैला हुआ था। वह सम्‍पूर्ण सेनाओं के लिये श्रेष्‍ठ आश्रय तथा समस्‍त धनुर्धरों के तेज का पुंज था। वह ध्‍वज पाण्‍डुनन्‍दन महात्‍मा युधिष्ठिर की सेना को अपनी दिव्‍य प्रभा से उद्भासित कर रहा था। (27)
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*जैसे प्रलय काल में प्रज्‍वलित सूर्य सारी वसुधा को देदीप्‍यमान करते दिखाये देते हैं, उसी प्रकार बुद्धिमान अर्जुन का वह विशाल ध्‍वज सर्वत्र प्रकाश मान दिखायी देता था। (28)
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*समस्‍त योद्धाओं में अर्जुन श्रेष्‍ठ हैं, धनुषों में [[गांडीव धनुष|गाण्‍डीव]] श्रेष्‍ठ है, सम्‍पूर्ण चेतन सत्‍ताओं में सच्चिदानन्‍दघन वसुदेवनन्‍दन भगवान श्रीकृष्‍ण श्रेष्‍ठ हैं और चक्रों में [[सुदर्शन]] श्रेष्‍ठ है। (29)
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*श्‍वेत घोड़ों से सुशोभित वह रथ इन चार तेजों को धारण करता हुआ शत्रुओं के सामने उठे हुए काल चक्र के समान खड़ा हुआ। इस प्रकार वे दोनों महात्‍मा श्रीकृष्‍ण और अर्जुन अपनी सेना के अग्रभाग में सुशोभित हो रहे थे। (30-31)
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*राजन! आपकी सेना के प्रमुख भाग मे [[कर्ण]] और शत्रुओं की सेना के अग्रभाग में अर्जुन खड़े थे। वे दोनों उस समय विजय के लिये रोषावेश में भरकर एक-दूसरे का वध करने की इच्‍छा से रणक्षेत्र में परस्‍पर दृष्टिपात करने लगे। (32)
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*तदनन्‍तर सहसा महारथी [[द्रोणाचार्य]] आगे बढ़े। फिर तो भयंकर आर्त नाद के साथ सारी पृथ्‍वी काँप उठी। (33)
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*इसके बाद प्रचण्‍ड [[वायु]] के वेग से बड़े जोर की धूल उठी, जो रेशमी वस्‍त्रों के समुदाय- सी प्रतीत होती थी। उस तीव्र एवं भयंकर धूल ने [[सूर्य]] सहित समूचे [[आकाश]] को ढक लिया। आकाश में मेघों की घटा नहीं थी, तो भी वहाँ से मास, रक्‍त तथा हड्डियों की वर्षा होने लगी। (34-35)
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*नरेश्‍वर! उस समय गीध, बाज, बगले, कंक और हजारों कौवे आपकी सेना के ऊपर- ऊपर उड़ने लगे। (36)
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*गीदड़ जोर-जोर से दारुण एवं भयदायक बोली बोलने लगे और मांस खाने तथा रक्‍त पीने की इच्‍छा से बारंबार आपकी सेना को दाहिने करके घूमने लगे। (37)
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*उस समय एक प्रज्‍वलित एवं देदीप्‍यमान उल्‍का युद्ध स्‍थल में अपने पुच्‍छ भाग द्वारा सबको घेरकर भारी गर्जना और कम्‍पन के साथ पृथ्‍वी पर गिरी। (38)
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*राजन! [[सेनापति]] [[द्रोण]] के युद्ध के लिये प्रस्‍थान करते ही सूर्य के चारों ओर बहुत बड़ा घेरा पड़ गया और बिजली चमकने के साथ ही मेघ-गर्जना सुनायी देने लगी। (39)
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*ये तथा और भी बहुत से भयंकर उत्‍पात प्रकट हुए, जो युद्ध में वीरों की जीवन-लीला के विनाश की सूचना देने वाले थे। (40)
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*तदनन्‍तर एक-दूसरे के वध की इच्‍छा वाले [[कौरव|कौरवों]] तथा [[पाण्‍डव|पाण्‍डवों]] की सेनाओं में भयंकर युद्ध होने लगा और उनके कोलाहल में सारा जगत व्‍याप्‍त हो गया। (41)
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*कोध्र में भरे हुए पाण्‍डव तथा कौरव विजय की अभिलाषा लेकर एक-दूसरे को तीखे [[अस्त्र|अस्‍त्र]]-[[शस्त्र |शस्‍त्रों]] द्वारा मारने लगे। वे सभी योद्धा प्रहार करने में कुशल थे। (42)
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*महाधनुर्धर महातेजस्‍वी द्रोणाचार्य ने पाण्‍डवों की विशाल सेना पर सैकड़ों पैने [[बाण अस्त्र|बाणों]] की वर्षा करते हुए बड़े वेग से आक्रमण किया। (43)
  
 
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17:57, 24 अप्रॅल 2016 का अवतरण

saph‍tam (7) adhyay: dron parv ( dronabhishek parv)

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mahabharat: dron parv: saph‍tam adhyay: shlok 22-43 ka hindi anuvad


  • apani bhujaoan se sushobhit hone vale bhishh‍m ne to yuddh mean kunh‍ti kumaroan ki raksha ki hai; parantu karn apane tikhe banoan dvara unaka vinash kar dalega. (22)
  • prajanath! is prakar prasanh‍n hokar parash‍par bat karate tatha radhananh‍dan karn ki pranshasa aur adar karate hue apake sainik yuddh ke liye chale. us samay dronachary ne hamari sena ke dvara shakatavh‍yooh ka nirman kiya tha. (23-24)
  • rajan! hamare mahamanash‍vi shatruoan ki sena ka krauanchavh‍yooh dikhayi deta tha. bharat! dharmaraj yudhishthir ne sh‍vayan hi prasanh‍nata poorvak us vh‍yooh ki rachana ki thi. (24)
  • panh‍davoan ke us vh‍yooh ke agrabhag mean apani vanar dhh‍vaja ko bahut ooanche tak phaharate hue purushotam bhagavan shrikrishh‍n aur arjun kh de hue the. (25)
  • amit tejash‍vi arjun ka vah dhh‍vaj soory ke marg tak phaila hua tha. vah samh‍poorn senaoan ke liye shreshh‍th ashray tatha samash‍t dhanurdharoan ke tej ka puanj tha. vah dhh‍vaj panh‍dunanh‍dan mahath‍ma yudhishthir ki sena ko apani divh‍y prabha se udbhasit kar raha tha. (27)
  • jaise pralay kal mean prajh‍valit soory sari vasudha ko dediph‍yaman karate dikhaye dete haian, usi prakar buddhiman arjun ka vah vishal dhh‍vaj sarvatr prakash man dikhayi deta tha. (28)
  • samash‍t yoddhaoan mean arjun shreshh‍th haian, dhanushoan mean ganh‍div shreshh‍th hai, samh‍poorn chetan sath‍taoan mean sachchidananh‍daghan vasudevananh‍dan bhagavan shrikrishh‍n shreshh‍th haian aur chakroan mean sudarshan shreshh‍th hai. (29)
  • shh‍vet gho doan se sushobhit vah rath in char tejoan ko dharan karata hua shatruoan ke samane uthe hue kal chakr ke saman kh da hua. is prakar ve donoan mahath‍ma shrikrishh‍n aur arjun apani sena ke agrabhag mean sushobhit ho rahe the. (30-31)
  • rajan! apaki sena ke pramukh bhag me karn aur shatruoan ki sena ke agrabhag mean arjun kh de the. ve donoan us samay vijay ke liye roshavesh mean bharakar ek-doosare ka vadh karane ki ichh‍chha se ranakshetr mean parash‍par drishtipat karane lage. (32)
  • tadananh‍tar sahasa maharathi dronachary age badhe. phir to bhayankar art nad ke sath sari prithh‍vi kaanp uthi. (33)
  • isake bad prachanh‍d vayu ke veg se b de jor ki dhool uthi, jo reshami vash‍troan ke samuday- si pratit hoti thi. us tivr evan bhayankar dhool ne soory sahit samooche akash ko dhak liya. akash mean meghoan ki ghata nahian thi, to bhi vahaan se mas, rakh‍t tatha haddiyoan ki varsha hone lagi. (34-35)
  • nareshh‍var! us samay gidh, baj, bagale, kank aur hajaroan kauve apaki sena ke oopar- oopar u dane lage. (36)
  • gid d jor-jor se darun evan bhayadayak boli bolane lage aur maans khane tatha rakh‍t pine ki ichh‍chha se baranbar apaki sena ko dahine karake ghoomane lage. (37)
  • us samay ek prajh‍valit evan dediph‍yaman ulh‍ka yuddh sh‍thal mean apane puchh‍chh bhag dvara sabako gherakar bhari garjana aur kamh‍pan ke sath prithh‍vi par giri. (38)
  • rajan! senapati dron ke yuddh ke liye prash‍than karate hi soory ke charoan or bahut b da ghera p d gaya aur bijali chamakane ke sath hi megh-garjana sunayi dene lagi. (39)
  • ye tatha aur bhi bahut se bhayankar uth‍pat prakat hue, jo yuddh mean viroan ki jivan-lila ke vinash ki soochana dene vale the. (40)
  • tadananh‍tar ek-doosare ke vadh ki ichh‍chha vale kauravoan tatha panh‍davoan ki senaoan mean bhayankar yuddh hone laga aur unake kolahal mean sara jagat vh‍yaph‍t ho gaya. (41)
  • kodhr mean bhare hue panh‍dav tatha kaurav vijay ki abhilasha lekar ek-doosare ko tikhe ash‍tr-shash‍troan dvara marane lage. ve sabhi yoddha prahar karane mean kushal the. (42)
  • mahadhanurdhar mahatejash‍vi dronachary ne panh‍davoan ki vishal sena par saik doan paine banoan ki varsha karate hue b de veg se akraman kiya. (43)

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