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रिंकू बघेल (वार्ता | योगदान) |
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कर्ण की रणयात्रा | कर्ण की रणयात्रा | ||
− | संजय कहते हैं- राजन ! | + | *संजय कहते हैं- राजन ! अधिरथ नन्दन सूतपुत्र कर्ण यह जानकर कि [[भीष्म|भीष्मजी]] के मारे जाने पर कौरवों की सेना अगाध महासागर में टूटी हुई नौका के समान संकट में पड़ गयी है, सगे भाई के समान आपके [[पुत्र]] की सेना को संकट से उबारने के लिये चला। (1) |
− | कर्ण | + | *राजन ! तत्पश्चात योद्धाओं के मुख से अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होने वाले पुरुषप्रवर शान्तनुनन्दन महारथी भीष्म के मारे जाने का विस्तृत वृत्तान्त सुनकर धनुर्धरों मे श्रेष्ठ शत्रुसूदन [[कर्ण]] सहसा [[दुर्योधन]] के समीप चल दिया। (2) |
− | जब | + | *रथियों मे श्रेष्ठ भीष्म के शत्रुओं द्वारा मारे जाने पर, जैसे पिता अपने पुत्रों को संकट से बचाने के लिये जाता हो, उसी प्रकार सूतपुत्र कर्ण डूबती हुई नौका के समान आपके पुत्र की सेना को संकट से उबारने के लिये बड़ी उतावली के साथ दुर्योधन के निकट आ पहुँचा। (3) |
− | संजय कहते हैं- महान प्रभावशाली वर देने में समर्थ लोकेश्वर शासक तथा अमित तेजस्वी भीष्म के मारे | + | *शत्रु समूह का विनाश करने वाले कर्ण ने [[परशुराम|परशुराम जी]] के दिये हुए [[धनुष|दिव्य धनुष]] पर प्रत्यंचा चढ़ा ली और उस पर हाथ फेरकर कालाग्नि तथा [[वायु]] के समान शक्तिशाली [[बाण अस्त्र|बाणों]] को ऊपर उठाते हुए इस प्रकार कहा। |
+ | *कर्ण बोला– ब्राह्माणों के शत्रुओं का विनाश करने वाले तथा अपने ऊपर किये हुए उपकारों का आभार मानने वाले जिन वीर शिरोमणि भीष्म जी में चन्द्रमा में सदा सुशोभित होने वाले शशचिह्न के समान सदा [[धृति]], बुद्धि, पराक्रम, ओज, सत्य, स्मृति, विनय, लज्जा, प्रिय वाणी तथा अनसूया<ref>दोषदृष्टि का अभाव</ref>– ये सभी विरोचित गुण तथा दिव्यास्त्र शोभा पाते थे, वे शत्रुवीरों के हन्ता [[देवव्रत]] यदि सदा के लिये शान्त हो गये तो मैं सम्पूर्ण वीरों को मारा गया ही मानता हूँ। (4-5) | ||
+ | *निश्चय ही इस संसार में कमों के अनित्य सम्बन्ध से कभी कोई वस्तु स्थिर नहीं रहती है। श्रेष्ठ एवं महान व्रतधारी [[भीष्म|भीष्म जी]] के मारे जाने पर कौन संशय रहित होकर कह सकता है कि कल सूर्योदय होगा ही<ref>अर्थात जीवन अनित्य होने के कारण हम में से कौन कल का सूर्योदय देख सकेगा, यह कहना कठिन है। जब मृत्युंजयी भीष्म जी मारे गये, तब हमारे जीवन की क्या आशा है?</ref>। (6) | ||
+ | *भीष्म जी में [[वसु|वसु देवताओं]] के समान प्रभाव था। वसुओं के समान शक्तिशाली [[शांतनु|महाराज शान्तनु]] से उनकी उत्पति हुई थी। ये वसुधा के स्वामी भीष्म अब वसु देवताओं को ही प्राप्त हो गये हैं; अत: उनके अभाव में तुम सभी लोग अपने धन, [[पुत्र]], वसुन्धरा, [[कुरुवंश|कुरूवंश]], कुरूदेश की प्रजा तथा इस [[कौरव सेना]] के लिये शोक करो। (7) | ||
+ | *संजय कहते हैं- महान प्रभावशाली वर देने में समर्थ लोकेश्वर शासक तथा अमित तेजस्वी भीष्म के मारे जाने पर भरत वंशियों की पराजय होने से [[कर्ण]] मन-ही-मन बहुत दुखी हो नेत्रों से आँसू बहाता हुआ लंबी साँस खीचनें लगा। (8) | ||
+ | *राजन ! राधानन्दन कर्ण की यह बात सुनकर आपके [[पुत्र]] और सैनिक एक दूसरे की ओर देखकर शोकवश बारंबार फूट-फूटकर रोने तथा नेत्रों से आँसू बहाने लगे। (9) | ||
+ | *[[पांडव सेना|पाण्डव सेना]] के राजा लोगों द्वारा जब [[कौरव सेना|कौरव-सेना]] का ध्वंस होने लगा और बड़ा भारी संग्राम आरम्भ हो गया, तब सम्पूर्ण महारथियों मे श्रेष्ठ कर्ण समस्त श्रेष्ठ रथियों का हर्ष और उत्साह बढ़ाता हुआ इस प्रकार बोला। (10) | ||
+ | *‘सदा [[मृत्यु|मृत्यु]] की ओर दौड़ लगाने वाले इस अनित्य संसार में आज मुझे बहुत चिन्तन करने पर भी कोई वस्तु स्थिर नहीं दिखायी देती; अन्यथा युद्ध में आप जैसे शूरवीरों के रहते हुए पर्वत के समान प्रकाशित होने वाले कुरूश्रेष्ठ भीष्म कैसे मार गिराये गये? (11) | ||
+ | *‘महारथी शान्तनुनन्दन भीष्म का रण में गिराया जाना [[सूर्य]] के [[आकाश]] से गिरकर पृथ्वी पर आ पड़ने के समान है। यह हो जाने पर समस्त भूपाल [[अर्जुन]] का वेग सहन करने में असमर्थ हैं, जैसे पर्वतों को भी ढोने वाले [[वायु]] का वेग साधारण वृक्ष नहीं सह सकते हैं। (12) | ||
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12:44, 23 अप्रॅल 2016 का अवतरण
dvitiy (2) adhyay: dron parv ( dronabhishek parv)
mahabharat: dron parv: dvitiy adhyay: shlok 1-12 ka hindi anuvad
karn ki ranayatra
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tika tippani aur sandarbh
- ↑ doshadrishti ka abhav
- ↑ arthat jivan anithy hone ke karan ham mean se kaun kal ka sooryoday dekh sakega, yah kahana kathin hai. jab mrithyuanjayi bhishhm ji mare gaye, tab hamare jivan ki khya asha hai?
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