"महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 2 श्लोक 1-12" के अवतरणों में अंतर

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कर्ण की रणयात्रा
 
कर्ण की रणयात्रा
  
संजय कहते हैं- राजन ! अधिरथनन्‍दन सूतपुत्र कर्ण यह जानकर कि भीष्‍मजी के मारे जाने पर कौरवों की सेना अगाध महासागर में टूटी हुई नौका के समान संकट में पड़ गयी है, सगे भाई के समान आपके पुत्र की सेना को संकट से उबारने के लिये चला । राजन ! तत्‍पश्‍चात् योद्धाओं के मुखसे अपनी मर्यादा से कभी च्‍युत न होने वाले पुरुषप्रवर शान्‍तनुनन्‍दन महारथी भीष्‍म के मारे जाने का विस्‍तृत वृतान्‍त सुनकर धनुर्धरों मे श्रेष्‍ठ शत्रुसूदन कर्ण सहसा दुर्योधनके समीप चल दिया रथियोंमे श्रेष्‍ठ भीष्‍मके शत्रुओं द्वारा मारे जानेपर, जैसे पिता अपने पुत्रोंको संकट से बचाने के लिये जाता हो, उसी प्रकार सूतपुत्र कर्ण डूबती हुई नौकाके समान आपके पुत्रकी सेना को संकटसे उबारने के लिये बड़ी उतावलीके साथ दुर्योधन के निकट आ पहॅुचा । शत्रुसमूहका विनाश करने वाले कर्णने परशुरामजीके दिये हुए दिव्‍य धनुषपर प्रत्‍यचा चढ़ा ली और उसपर हाथ फेरकर कालागि तथा वायु के समान शक्तिशाली बाणोंको ऊपर उठाते हुए इस प्रकार कहा । <br />
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*संजय कहते हैं- राजन ! अधिरथ नन्‍दन सूतपुत्र कर्ण यह जानकर कि [[भीष्‍म|भीष्‍मजी]] के मारे जाने पर कौरवों की सेना अगाध महासागर में टूटी हुई नौका के समान संकट में पड़ गयी है, सगे भाई के समान आपके [[पुत्र]] की सेना को संकट से उबारने के लिये चला। (1)
कर्ण बोला – ब्राह्माणों के शत्रुओं का विनाश करने वाले तथा अपने ऊपर किये हुए उपकारों का आभार मानने वाले जिन वीर शिरोमणि भीष्‍मजी में चन्‍द्रमा में सदा सुशोभित होनेवाले शशचिह्र के समान सदा धृति, बुद्धि, पराक्रम, ओज, सत्‍य, स्‍मृति, विनय, लज्‍जा, प्रिय वाणी तथा अनसूया (दोषदृष्टि का अभाव) – ये सभी विरोचित गुण तथा दिव्‍यास्‍त्र शोभा पाते थे, वे शत्रुवीरों के हन्‍ता देवव्रत यदि सदा के लिये शान्‍त हो गये तो मैं सम्‍पूर्ण वीरों को मारा गया ही मानता हूँ । निश्‍चय ही इस संसार में कमों के अनित्‍य सम्‍बन्‍ध से कभी कोई वस्‍तु स्थिर नहीं रहती है । श्रेष्‍ठ एवं महान् व्रतधारी भीष्‍मजी के मारे जाने पर कौन संशयरहित होकर कह सकता है कि कल सूर्योदय होगा ही (अर्थात जीवन अनित्‍य होने के कारण हममें से कौन कलका सूर्योदय देख सकेगा, यह कहना कठिन है । <br />
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*राजन ! तत्‍पश्‍चात योद्धाओं के मुख से अपनी मर्यादा से कभी च्‍युत न होने वाले पुरुषप्रवर शान्‍तनुनन्‍दन महारथी भीष्‍म के मारे जाने का विस्‍तृत वृत्तान्‍त सुनकर धनुर्धरों मे श्रेष्‍ठ शत्रुसूदन [[कर्ण]] सहसा [[दुर्योधन]] के समीप चल दिया। (2)
जब मृत्‍युंजी भीष्‍म जी मारे गये, तब हमारे जीवनकी क्‍या आशा है ?)भीष्‍मजी में वसु देवताओं के समान प्रभाव था । वसुओं के समान शक्तिशाली महाराज शान्‍तुन से उनकी उत्‍पति हुई थी । ये वसुधा के स्‍वामी भीष्‍म अब वसु देवताओं को ही प्राप्‍त हो गये है; अत: उनके अभाव में तुम सभी लोग अपने धन, पुत्र, वसुन्‍धरा, कुरूवंश, कुरूदेशकी प्रजा तथा इस कौरव सेना के लिये शोक करो ।
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*रथियों मे श्रेष्‍ठ भीष्‍म के शत्रुओं द्वारा मारे जाने पर, जैसे पिता अपने पुत्रों को संकट से बचाने के लिये जाता हो, उसी प्रकार सूतपुत्र कर्ण डूबती हुई नौका के समान आपके पुत्र की सेना को संकट से उबारने के लिये बड़ी उतावली के साथ दुर्योधन के निकट आ पहुँचा। (3)
संजय कहते हैं- महान प्रभावशाली वर देने में समर्थ लोकेश्‍वर शासक तथा अमित तेजस्‍वी भीष्‍म के मारे जानेपर भरतवंशियों की पराजय होने से कर्ण मन ही मन बहुत दुखी हो नेत्रों से ऑसू बहाता हुआ लंबी सॉस खीचनें लगा ।<br />राजन ! राधानन्‍दन कर्ण की यह बात सुनकर आपके पुत्र और सैनिक एक दूसरे की ओर देखकर शोकवश बारंबार फूट-फूटकर रोने तथा नेत्रों से ऑसू बहाने लगे । पाण्‍डव सेना के राजा लोगों द्वारा जब कौरव-सेनाका ध्‍वंस होने लगा और बड़ा भारी संग्राम आरम्‍भ हो गया, तब सम्‍पूर्ण महारथियों मे श्रेष्‍ठ कर्ण समस्‍त श्रेष्‍ठ रथियों का हर्ष और उत्‍साह बढ़ाता हुआ इस प्रकार बोला । ‘सदा मृत्‍यु की ओर दौड़ लगाने वाले इस अनित्‍य संसार में आज मुझे बहुत चिन्‍तन करने पर भी कोई वस्‍तु स्थिर नहीं दिखायी देती ; अन्‍यथा युद्धमें आप जैसे शूरवीरों के रहते हुए पर्वत के समान प्रकाशित होनेवाले कुरूश्रेष्‍ठ भीष्‍म कैसे मार गिराये गये ? ‘महारथी शान्‍तनुनन्‍दन भीष्‍म का रण में गिराया जाना सूर्य के आकाश से गिरकर पृथ्‍वी पर आ पड़ने के समान है । यह हो जाने पर समस्‍त भूपाल अर्जुन का वेग सहन करने में असमर्थ हैं, जैसे पर्वतों को भी ढोने वाले वायु का वेग साधारण वृक्ष नहीं सह सकते है ।
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*शत्रु समूह का विनाश करने वाले कर्ण ने [[परशुराम|परशुराम जी]] के दिये हुए [[धनुष|दिव्‍य धनुष]] पर प्रत्‍यंचा चढ़ा ली और उस पर हाथ फेरकर कालाग्नि तथा [[वायु]] के समान शक्तिशाली [[बाण अस्त्र|बाणों]] को ऊपर उठाते हुए इस प्रकार कहा।
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*कर्ण बोला– ब्राह्माणों के शत्रुओं का विनाश करने वाले तथा अपने ऊपर किये हुए उपकारों का आभार मानने वाले जिन वीर शिरोमणि भीष्‍म जी में चन्‍द्रमा में सदा सुशोभित होने वाले शशचिह्न के   समान सदा [[धृति]], बुद्धि, पराक्रम, ओज, सत्‍य, स्‍मृति, विनय, लज्‍जा, प्रिय वाणी तथा अनसूया<ref>दोषदृष्टि का अभाव</ref>– ये सभी विरोचित गुण तथा दिव्‍यास्‍त्र शोभा पाते थे, वे शत्रुवीरों के हन्‍ता [[देवव्रत]] यदि सदा के लिये शान्‍त हो गये तो मैं सम्‍पूर्ण वीरों को मारा गया ही मानता हूँ। (4-5)
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*निश्‍चय ही इस संसार में कमों के अनित्‍य सम्‍बन्‍ध से कभी कोई वस्‍तु स्थिर नहीं रहती है। श्रेष्‍ठ एवं महान व्रतधारी [[भीष्‍म|भीष्‍म जी]] के मारे जाने पर कौन संशय रहित होकर कह सकता है कि कल सूर्योदय होगा ही<ref>अर्थात जीवन अनित्‍य होने के कारण हम में से कौन कल का सूर्योदय देख सकेगा, यह कहना कठिन है। जब मृत्‍युंजयी भीष्‍म जी मारे गये, तब हमारे जीवन की क्‍या आशा है?</ref>(6)
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*भीष्‍म जी में [[वसु|वसु देवताओं]] के समान प्रभाव था। वसुओं के समान शक्तिशाली [[शांतनु|महाराज शान्‍तनु]] से उनकी उत्‍पति हुई थी। ये वसुधा के स्‍वामी भीष्‍म अब वसु देवताओं को ही प्राप्‍त हो गये हैं; अत: उनके अभाव में तुम सभी लोग अपने धन, [[पुत्र]], वसुन्‍धरा, [[कुरुवंश|कुरूवंश]], कुरूदेश की प्रजा तथा इस [[कौरव सेना]] के लिये शोक करो। (7)
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*संजय कहते हैं- महान प्रभावशाली वर देने में समर्थ लोकेश्‍वर शासक तथा अमित तेजस्‍वी भीष्‍म के मारे जाने पर भरत वंशियों की पराजय होने से [[कर्ण]] मन-ही-मन बहुत दुखी हो नेत्रों से आँसू बहाता हुआ लंबी साँस खीचनें लगा। (8)
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*राजन ! राधानन्‍दन कर्ण की यह बात सुनकर आपके [[पुत्र]] और सैनिक एक दूसरे की ओर देखकर शोकवश बारंबार फूट-फूटकर रोने तथा नेत्रों से आँसू बहाने लगे। (9)
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*[[पांडव सेना|पाण्‍डव सेना]] के राजा लोगों द्वारा जब [[कौरव सेना|कौरव-सेना]] का ध्‍वंस होने लगा और बड़ा भारी संग्राम आरम्‍भ हो गया, तब सम्‍पूर्ण महारथियों मे श्रेष्‍ठ कर्ण समस्‍त श्रेष्‍ठ रथियों का हर्ष और उत्‍साह बढ़ाता हुआ इस प्रकार बोला। (10)
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*‘सदा [[मृत्यु|मृत्‍यु]] की ओर दौड़ लगाने वाले इस अनित्‍य संसार में आज मुझे बहुत चिन्‍तन करने पर भी कोई वस्‍तु स्थिर नहीं दिखायी देती; अन्‍यथा युद्ध में आप जैसे शूरवीरों के रहते हुए पर्वत के समान प्रकाशित होने वाले कुरूश्रेष्‍ठ भीष्‍म कैसे मार गिराये गये? (11)
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*‘महारथी शान्‍तनुनन्‍दन भीष्‍म का रण में गिराया जाना [[सूर्य]] के [[आकाश]] से गिरकर पृथ्‍वी पर आ पड़ने के समान है। यह हो जाने पर समस्‍त भूपाल [[अर्जुन]] का वेग सहन करने में असमर्थ हैं, जैसे पर्वतों को भी ढोने वाले [[वायु]] का वेग साधारण वृक्ष नहीं सह सकते हैं। (12)
  
 
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12:44, 23 अप्रॅल 2016 का अवतरण

dvitiy (2) adhyay: dron parv ( dronabhishek parv)

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mahabharat: dron parv: dvitiy adhyay: shlok 1-12 ka hindi anuvad

karn ki ranayatra

  • sanjay kahate haian- rajan ! adhirath nanh‍dan sootaputr karn yah janakar ki bhishh‍maji ke mare jane par kauravoan ki sena agadh mahasagar mean tooti huee nauka ke saman sankat mean p d gayi hai, sage bhaee ke saman apake putr ki sena ko sankat se ubarane ke liye chala. (1)
  • rajan ! tath‍pashh‍chat yoddhaoan ke mukh se apani maryada se kabhi chh‍yut n hone vale purushapravar shanh‍tanunanh‍dan maharathi bhishh‍m ke mare jane ka vish‍trit vrittanh‍t sunakar dhanurdharoan me shreshh‍th shatrusoodan karn sahasa duryodhan ke samip chal diya. (2)
  • rathiyoan me shreshh‍th bhishh‍m ke shatruoan dvara mare jane par, jaise pita apane putroan ko sankat se bachane ke liye jata ho, usi prakar sootaputr karn doobati huee nauka ke saman apake putr ki sena ko sankat se ubarane ke liye b di utavali ke sath duryodhan ke nikat a pahuancha. (3)
  • shatru samooh ka vinash karane vale karn ne parashuram ji ke diye hue divh‍y dhanush par prath‍yancha chadha li aur us par hath pherakar kalagni tatha vayu ke saman shaktishali banoan ko oopar uthate hue is prakar kaha.
  • karn bola– brahmanoan ke shatruoan ka vinash karane vale tatha apane oopar kiye hue upakaroan ka abhar manane vale jin vir shiromani bhishh‍m ji mean chanh‍drama mean sada sushobhit hone vale shashachihn ke saman sada dhriti, buddhi, parakram, oj, sath‍y, sh‍mriti, vinay, lajh‍ja, priy vani tatha anasooya[1]– ye sabhi virochit gun tatha divh‍yash‍tr shobha pate the, ve shatruviroan ke hanh‍ta devavrat yadi sada ke liye shanh‍t ho gaye to maian samh‍poorn viroan ko mara gaya hi manata hooan. (4-5)
  • nishh‍chay hi is sansar mean kamoan ke anith‍y samh‍banh‍dh se kabhi koee vash‍tu sthir nahian rahati hai. shreshh‍th evan mahan vratadhari bhishh‍m ji ke mare jane par kaun sanshay rahit hokar kah sakata hai ki kal sooryoday hoga hi[2]. (6)
  • bhishh‍m ji mean vasu devataoan ke saman prabhav tha. vasuoan ke saman shaktishali maharaj shanh‍tanu se unaki uth‍pati huee thi. ye vasudha ke sh‍vami bhishh‍m ab vasu devataoan ko hi praph‍t ho gaye haian; at: unake abhav mean tum sabhi log apane dhan, putr, vasunh‍dhara, kuroovansh, kuroodesh ki praja tatha is kaurav sena ke liye shok karo. (7)
  • sanjay kahate haian- mahan prabhavashali var dene mean samarth lokeshh‍var shasak tatha amit tejash‍vi bhishh‍m ke mare jane par bharat vanshiyoan ki parajay hone se karn man-hi-man bahut dukhi ho netroan se aansoo bahata hua lanbi saans khichanean laga. (8)
  • rajan ! radhananh‍dan karn ki yah bat sunakar apake putr aur sainik ek doosare ki or dekhakar shokavash baranbar phoot-phootakar rone tatha netroan se aansoo bahane lage. (9)
  • panh‍dav sena ke raja logoan dvara jab kaurav-sena ka dhh‍vans hone laga aur b da bhari sangram aramh‍bh ho gaya, tab samh‍poorn maharathiyoan me shreshh‍th karn samash‍t shreshh‍th rathiyoan ka harsh aur uth‍sah badhata hua is prakar bola. (10)
  • ‘sada mrith‍yu ki or dau d lagane vale is anith‍y sansar mean aj mujhe bahut chinh‍tan karane par bhi koee vash‍tu sthir nahian dikhayi deti; anh‍yatha yuddh mean ap jaise shooraviroan ke rahate hue parvat ke saman prakashit hone vale kurooshreshh‍th bhishh‍m kaise mar giraye gaye? (11)
  • ‘maharathi shanh‍tanunanh‍dan bhishh‍m ka ran mean giraya jana soory ke akash se girakar prithh‍vi par a p dane ke saman hai. yah ho jane par samash‍t bhoopal arjun ka veg sahan karane mean asamarth haian, jaise parvatoan ko bhi dhone vale vayu ka veg sadharan vriksh nahian sah sakate haian. (12)

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tika tippani aur sandarbh

  1. doshadrishti ka abhav
  2. arthat jivan anith‍y hone ke karan ham mean se kaun kal ka sooryoday dekh sakega, yah kahana kathin hai. jab mrith‍yuanjayi bhishh‍m ji mare gaye, tab hamare jivan ki kh‍ya asha hai?

sanbandhit lekh

varnamala kramanusar lekh khoj

   a    a    i    ee    u    oo    e    ai    o    au    aan    k    kh    g    gh    n    ch    chh    j    jh    n    t    th    d    dh    n    t    th    d    dh    n    p    ph    b    bh    m    y    r    l    v    sh    sh    s    h    ksh    tr    jn    rri    rri    aau    shr    aah