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रिंकू बघेल (वार्ता | योगदान) छो (रिंकू बघेल ने महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 10 श्लोक 27-42 पृष्ठ महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 10 श्लोक 19-42...) |
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− | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत | + | ;<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 10 श्लोक 19-42 का हिन्दी अनुवाद</div> |
− | जिस समय भयंकर गर्जना करने वाले | + | |
+ | *जिस समय भयंकर गर्जना करने वाले रौद्र रूप धारी बुद्धिमान [[अर्जुन]] ने युद्ध में [[गाण्डीव धनुष|गाण्डीव]] धारण करके सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए गृध्र पंख युक्त [[बाण|बाणों]] द्वारा [[दुर्योधन]] आदि मेरे [[पुत्र|पुत्रों]] और सैनिकों को घायल करना आरम्भ किया, उस समय तुम लोगों के मन की कैसी अवस्था हुई थी? (19-20) | ||
+ | *वानर के चिह्न से युक्त श्रेष्ठ [[ध्वज|ध्वजा]] वाले अर्जुन जब [[आकाश]] को अपने बाणों से ठसाठस भरते हुए तुम लोगों पर चढ़ आये थे, उस समय उन्हें देखकर तुम्हारे मन की कैसी दशा हुई थी? (21) | ||
+ | *जिस समय अर्जुन नें भयंकर सिंहनाद करते हुए तुम लोगों का पीछा किया था, उस समय गाण्डीव की टंकार सुनकर हमारी सेना भाग तो नहीं गयी थी? (22) | ||
+ | *उस अवसर पर [[पार्थ]] ने अपने बाणों द्वारा तुम्हारे सैनिकों के प्राण तो नहीं ले लिये थे? जैसे [[वायु]] वेग पूर्वक चलकर मेघों की घटा को छिन्न-छिन्न कर देती है, उसी प्रकार अर्जुन ने वेग से चलाये हुए बाण-समूहों द्वारा विपक्षी नरेशों को घायल कर दिया होगा। (23) | ||
+ | *सेना के प्रमुख भाग में जिनका नाम सुनकर ही सारे सैनिक विदीर्ण हो जाते<ref>भाग निकलते</ref> हैं, उन्हीं गाण्डीव धारी अर्जुन का वेग रणक्षेत्र में कौन मनुष्य सह सकता है? (24) | ||
+ | *जहाँ सारी सेनाएँ काँप उठी, समस्त वीरों के मन में भय समा गया, वहाँ किन वीरों ने द्रोणाचार्य का साथ नहीं छोड़ा और कौन-कौन से अधम सैनिक भय के मारे मैदान छोड़कर भाग गये? (25) | ||
+ | *मानवेतर प्राणियों<ref>[[देवता|देवताओं]] और दैत्यों</ref> पर भी विजय पाने वाले वीर अर्जुन को युद्ध में अपने प्रतिकूल पाकर किन वीरों ने वहाँ अपने शरीरों को निछावर करके मृत्यु को स्वीकार किया? (26) | ||
+ | *मेरे सैनिक श्वेत वाहन अर्जुन के वेग और वर्षा काल के मेघ की गम्भीर गर्जना की भाँति गाण्डीव धनुष की टंकार ध्वनि को नहीं सह सकेंगे। (27) | ||
+ | *जिसके [[सारथि]] भगवान [[श्रीकृष्ण]] और योद्धा वीर [[धनंजय]] हैं, उस [[रथ]] को जीतना मैं [[देवता|देवताओं]] तथा असुरों के लिये भी असम्भव मानता हूँ। (28) | ||
+ | *सुकुमार, तरुण, शूरवीर, दर्शनीय<ref>सुन्दर</ref>, मेधावी, युद्ध कुशल, बुद्धिमान और सत्य पराक्रमी [[पाण्डु]] [[पुत्र]] [[नकुल]] जब युद्ध में जोर-जोर से गर्जना करके समस्त सैनिकों को पीड़ित करते हुए [[द्रोणाचार्य]] पर चढ़ आये, उस समय किन वीरों ने उन्हें रोका था? (29-30) | ||
+ | *विषधर सर्प के समान क्रोध में भरे हुए तथा तेज से दुर्जय [[सहदेव]] जब युद्ध में शत्रुओं का संहार करते हुए द्रोणाचार्य के सामने आये, उस समय श्रेष्ठ व्रतधारी अमोघ बाणों वाले लज्जा शील और अपराजित वीर सहदेव को आते देख किन शूरवीरों ने उन्हें रोका था? (31-32) | ||
+ | *जिन्होंने [[सौवीर]] राज की विशाल सेना को मथकर उनकी सर्वांग सुन्दरी कमनीय कन्या भोजा को अपनी रानी बनाने के लिये हर लिया था, उन पुरुष शिरोमणि [[सात्यकि]] में सत्य, धैर्य, शौर्य और विशुद्ध ब्रह्मचर्य आदि सारे सद्गुण विधमान रहते हैं। (33-34) | ||
+ | *वे सात्यकि बलवान, सत्य पराक्रमी, उदार, अपराजित युद्ध में वसुदेव नन्दन [[श्रीकृष्ण]] के समान शक्तिशाली, अवस्था में उनसे कुछ छोटे, अर्जुन से ही शिक्षा पाकर [[बाण]] विद्या में श्रेष्ठ [[अस्त्र|अस्त्रों]] के संचालन में [[कुंती]] कुमार अर्जुन के तुल्य यशस्वी हैं। उन वीरवर सात्यकि को किसने द्रोणाचार्य के पास आने से रोका? (35-36) | ||
+ | *वृष्णि वंश के श्रेष्ठ शूरवीर सात्यकि सम्पूर्ण धनुर्धरों में उत्तम हैं। वे अस्त्र विधा, यश तथा पराक्रम में [[परशुराम]] जी के समान हैं। (37) | ||
+ | *जैसे भगवान श्रीकृष्ण में तीनों लोक स्थित हैं, उसी प्रकार सात्वत वंशी सात्यकि में सत्य, धैर्य, बुद्धि, शौर्य तथा परम उत्तम [[ब्रह्मास्त्र |ब्रह्मास्त्र]] विद्यमान हैं। (38) | ||
+ | *इस प्रकार सर्व सद्गुण सम्पन्न महाधनुर्धर सात्यकि को रोकना देवताओं के लिये भी अत्यन्त कठिन है। उनके पास पहुँचकर किन शूरवीरों ने उन्हें आगे बढ़ने से रोका? (39) | ||
+ | *पांचालों मे उत्तम श्रेष्ठ कुल एवं ख्याति के प्रेमी, सदा सत्कर्म करने वाले, संग्राम में उत्तम आत्म बल का परिचय देने वाले, अर्जुन के हितसाधन में तत्पर, मेरा अनर्थ करने के लिये उद्यत रहने वाले, [[यमराज]], [[कुबेर]], [[सूर्य]], [[इन्द्र]] और [[वरुण]] के समान तेजस्वी, विख्यात महारथी तथा भयंकर युद्ध में अपने प्राणों को निछावर करके द्रोणाचार्य से भिड़ने के लिये सदा तैयार रहने वाले वीर [[धृष्टद्युम्न |धृष्टद्युम्न]] को किन शूरवीरों ने रोका? (40-42) | ||
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[[चित्र:Next.png|link=महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 10 श्लोक 43-62]] | [[चित्र:Next.png|link=महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 10 श्लोक 43-62]] |
18:04, 26 अप्रॅल 2016 का अवतरण
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