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बंटी कुमार (वार्ता | योगदान) |
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− | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: | + | <h4 style="text-align:center">द्विचत्वारिंश (42) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)</h4> |
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+ | [[चित्र:Prev.png|link= महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 41 श्लोक 1-17]] | ||
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+ | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: द्विचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
− | वैशम्पायनजी कहते हैं - राजन् !तदनन्तर उदार-बुद्धि राजा युधिष्ठिर ने जति,भाई और कुटुम्बीजनो मे से जो लोग युद्ध मे मारे गये थे, उन सबको अलग अलग श्रद्ध करवाये | + | वैशम्पायनजी कहते हैं - राजन् !तदनन्तर उदार-बुद्धि राजा [[युधिष्ठिर]] ने जति,भाई और कुटुम्बीजनो मे से जो लोग युद्ध मे मारे गये थे, उन सबको अलग अलग श्रद्ध करवाये |
महायशस्वी राजा धृतराष्ट्र अपने पुत्रों के श्राद्ध में समस्त कमनीय गुणों से युक्त अन्न, गो, धन और बहुमूल्य विचित्र रत्न प्रदान किये। युधिष्ठिर द्रौपदी को साथ लेकर आचार्य द्रोण, महामना कर्ण, धृष्टद्युम्न, अभिमन्यु, राक्षस घटोत्कच, विराअ आदि उपकारी सुहृद, द्रुपद तथा द्रौपदीकुमारों का श्राद्ध किया। उन्होंने प्रत्येक के उद्देश्य से हजारों ब्राह्मणों को अलग-अलग धन, रत्न, गौ और वस्त्र देकर संतुष्ट किया। इनके सिवा जो दूसरे भूपाल थे, जिनके सुहृद् या सम्बन्धी जीवित नहीं थे, उन सबके उद्देश्य से राजा युधिष्ठिर ने श्राद्ध-कर्म किया। साथ ही उनके निमित्त पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर ने धर्मशालाएँ, प्याऊ-घर और पोखरे बनवाये। <br /> | महायशस्वी राजा धृतराष्ट्र अपने पुत्रों के श्राद्ध में समस्त कमनीय गुणों से युक्त अन्न, गो, धन और बहुमूल्य विचित्र रत्न प्रदान किये। युधिष्ठिर द्रौपदी को साथ लेकर आचार्य द्रोण, महामना कर्ण, धृष्टद्युम्न, अभिमन्यु, राक्षस घटोत्कच, विराअ आदि उपकारी सुहृद, द्रुपद तथा द्रौपदीकुमारों का श्राद्ध किया। उन्होंने प्रत्येक के उद्देश्य से हजारों ब्राह्मणों को अलग-अलग धन, रत्न, गौ और वस्त्र देकर संतुष्ट किया। इनके सिवा जो दूसरे भूपाल थे, जिनके सुहृद् या सम्बन्धी जीवित नहीं थे, उन सबके उद्देश्य से राजा युधिष्ठिर ने श्राद्ध-कर्म किया। साथ ही उनके निमित्त पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर ने धर्मशालाएँ, प्याऊ-घर और पोखरे बनवाये। <br /> | ||
− | इस प्रकार उन्होंने सभी सुहृदों के श्राद्ध-कर्म सम्पन्न कराये। उन सबके ऋण से मुक्त हो वे लोक में किसी की निन्दा या आक्षेप के पात्र नहीं रह गये। राजा युधिष्ठिर धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करते हुए कृतकृत्यता का अनुभव करने लगे। धृतराष्ट्र, गान्धारी, विदुर तथा अन्य आदरणीय कौरवों की वे पहले की ही भाँति सेवा करते और भृत्यजनों का भी आदर-सत्कार करते थे। वहाँ जो कोई भी स्त्रियाँ थीं, जिनके पति और पुत्र मारे गये थे, उन सबका कृपालु कुरुवंशी राजा युधिष्ठिर बड़े आदर के साथ पालन-पोषण करते थे।। दीन-दुखियों और अन्धों के लिये घर एवं भोजन-वस्त्र की व्यवस्था करके सबके प्रति कोमलता का बर्ताव करने वाले सामथ्र्यशाली राजा युधिष्ठिर उन पर बड़ी कृपा रखते थे। इस सारी पृथ्वी को जीतकर शत्रुओं से उऋण हो शत्रुहीन राजा युधिष्ठिर सुख पूर्वक विहार करने लगे।। | + | इस प्रकार उन्होंने सभी सुहृदों के श्राद्ध-कर्म सम्पन्न कराये। उन सबके ऋण से मुक्त हो वे लोक में किसी की निन्दा या आक्षेप के पात्र नहीं रह गये। राजा युधिष्ठिर धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करते हुए कृतकृत्यता का अनुभव करने लगे। [[धृतराष्ट्र]], गान्धारी, विदुर तथा अन्य आदरणीय [[कौरव|कौरवों]] की वे पहले की ही भाँति सेवा करते और भृत्यजनों का भी आदर-सत्कार करते थे। वहाँ जो कोई भी स्त्रियाँ थीं, जिनके पति और पुत्र मारे गये थे, उन सबका कृपालु कुरुवंशी राजा युधिष्ठिर बड़े आदर के साथ पालन-पोषण करते थे।। दीन-दुखियों और अन्धों के लिये घर एवं भोजन-वस्त्र की व्यवस्था करके सबके प्रति कोमलता का बर्ताव करने वाले सामथ्र्यशाली राजा युधिष्ठिर उन पर बड़ी कृपा रखते थे। इस सारी पृथ्वी को जीतकर शत्रुओं से उऋण हो शत्रुहीन राजा युधिष्ठिर सुख पूर्वक विहार करने लगे।। |
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासन पर्व में श्राद्धकर्म विषयक बयालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासन पर्व में श्राद्धकर्म विषयक बयालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | ||
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+ | [[चित्र:Next.png|link=महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 43 श्लोक 1-17]] | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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15:43, 20 सितम्बर 2015 का अवतरण
dvichatvariansh (42) adhyay: shanti parv (rajadharmanushasan parv)
mahabharat: shanti parv: dvichatvariansh adhyay: shlok 1-20 ka hindi anuvad
vaishampayanaji kahate haian - rajanh !tadanantar udar-buddhi raja yudhishthir ne jati,bhaee aur kutumbijano me se jo log yuddh me mare gaye the, un sabako alag alag shraddh karavaye
mahayashasvi raja dhritarashtr apane putroan ke shraddh mean samast kamaniy gunoan se yukt ann, go, dhan aur bahumooly vichitr ratn pradan kiye. yudhishthir draupadi ko sath lekar achary dron, mahamana karn, dhrishtadyumn, abhimanyu, rakshas ghatotkach, viraa adi upakari suhrid, drupad tatha draupadikumaroan ka shraddh kiya. unhoanne pratyek ke uddeshy se hajaroan brahmanoan ko alag-alag dhan, ratn, gau aur vastr dekar santusht kiya. inake siva jo doosare bhoopal the, jinake suhridh ya sambandhi jivit nahian the, un sabake uddeshy se raja yudhishthir ne shraddh-karm kiya. sath hi unake nimitt panduputr yudhishthir ne dharmashalaean, pyaoo-ghar aur pokhare banavaye. is prakar shrimahabharat shantiparv ke antargat rajadharmanushasan parv mean shraddhakarm vishayak bayalisavaan adhyay poora hua.
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tika tippani aur sandarbh
sanbandhit lekh
varnamala kramanusar lekh khoj