"महाभारत वन पर्व अध्याय 297 श्लोक 59-75" के अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: सप्तनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः 59-75 श्लोक का हिन्दी अनुवाद</div>
  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: सप्तनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः 59-75 श्लोक  का हिन्दी अनुवाद</div>
 
  
‘तेरे ही नाम से उनकी सदा ख्याति होगी अर्थात् वे सावित्र नाम से प्रसिद्ध होंगे। तेरे पिता के भी तेरी माता के ही गर्भ से सौ पुत्र होंगे। ‘वे तेरी मामात मालवी से उत्पन्न होने के कारण मालव नाम से विख्यात होंगे। तेरे भाई मालव क्षत्रिय पुत्र-पौत्रों से सम्पन्न तथा देवताओं के समानउ तेजस्वी होंगे’। सावित्री को इस प्रकार वरदान दे प्रतापी धर्मराज उसे लौटाकर अपने लोक में चले गये। समराज के चले जाने पर सावित्री अपने पति को पाकर उसी स्थान पर गयी; जहाँ पति का मृत शरीर पड़ा था। वह पृथ्वी पर अपने पति को पड़ा देख उनके पास गयी और पृथ्वी पर बैइ गयी, फिर पति को उठाकर उसने उनके मसतक को गोद में रख लिया। तदनन्तर पुनः चेतना प्रापत करके सत्यवान् परदेश में रहकर लौटे हुए पुरुष की भाँति बार-बार प्रेमपूर्वक सावित्री की ओर देखते हुए उससे बोले।
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‘तेरे ही नाम से उनकी सदा ख्याति होगी अर्थात् वे 'सावित्र' नाम से प्रसिद्ध होंगे। तेरे पिता के भी तेरी माता के ही गर्भ से सौ पुत्र होंगे। वे तेरी माता मालवी से उत्पन्न होने के कारण 'मालव' नाम से विख्यात होंगे। तेरे भाई मालव क्षत्रिय पुत्र-पौत्रों से सम्पन्न तथा देवताओं के समान तेजस्वी होंगे’।
  
सत्यवान् ने कहा- प्रिये! खेद है कि मैं बहुत देर तक सोता रह गया। तुमने मुझे जगा क्यों नहीं दिया ? वे श्याम वर्ण के पुरुष कहाँ हैं, जिन्होंने मुझे खींचा था ?
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[[सावित्री]] को इस प्रकार वरदान दे प्रतापी धर्मराज उसे लौटाकर अपने लोक में चले गये। [[यमराज]] के चले जाने पर सावित्री अपने पति को पाकर उसी स्थान पर गयी; जहाँ पति का मृत शरीर पड़ा था। वह पृथ्वी पर अपने पति को पड़ा देख उनके पास गयी और पृथ्वी पर बैठ गयी, फिर पति को उठाकर उसने उनके मसतक को गोद में रख लिया। तदनन्तर पुनः चेतना प्राप्त करके [[सत्यवान]] परदेश में रहकर लौटे हुए पुरुष की भाँति बार-बार प्रेमपूर्वक सावित्री की ओर देखते हुए उससे बोले। सत्यवान ने कहा- 'प्रिये! खेद है कि मैं बहुत देर तक सोता रह गया। तुमने मुझे जगा क्यों नहीं दिया? वे श्याम वर्ण के पुरुष कहाँ हैं, जिन्होंने मुझे खींचा था?'
  
सावित्री बोली- नरश्रेष्ठ! आप मेरी गोद में बहुत देर तक सोते रह गये। वे श्याम वर्ण के पुरुष प्रजा को संयम में रखने वाले साक्षात् भगवान यम थे, जो अब चले गये हैं।। महाभाग! आपने विश्राम कर लिया। राजकुमार! अब आपकी नींद भी टूट चुकी है। यदि शक्ति हो तो अठिये; देखिये, प्रगाढ़ अन्धकार युक्त रात्रि हो गयी है।
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सावित्री बोली- 'नरश्रेष्ठ! आप मेरी गोद में बहुत देर तक सोते रह गये। वे श्याम वर्ण के पुरुष प्रजा को संयम में रखने वाले साक्षात् भगवान यम थे, जो अब चले गये हैं। महाभाग! आपने विश्राम कर लिया। राजकुमार! अब आपकी नींद भी टूट चुकी है। यदि शक्ति हो तो अठिये; देखिये, प्रगाढ़ अन्धकार युक्त रात्रि हो गयी है।'
  
मार्कण्डेय कहते हैं- युधिष्ठिर! तब होश में आकर सत्यवान् सुचापूर्वक सोये हुए पुरुष की भाँति उठकर संपूर्ण दिशाओं तथा वनप्रानत की ओर दृष्टि डालकर बोले- ‘सुमध्यमे! मैं फल लाने के लिये तुम्हारे साथ घर से निकला था, फिर लकड़ी चीरते समय मेरे सिर में जोर-जोर से दर्द होने लगा था।‘शुभे! मस्तक की उस पीड़ा से संतप्त हो मैं देरतक खड़ा रहने में असमर्थ हो गया और तुम्हारी गोद में सिर रखकर सो रहा। ये सारी बातें मुझे क्रमशः साद आ रही हैं। ‘तुम्हारे अंगों का स्पर्श होने से मेरा मन नींद में खो गया। तत्पश्चात् मुझे घोर अंधकार दिखायी दिया। साथउ ही एक महातेजस्वी दिव्य पुरुष का दर्शन हुआ।
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मार्कण्डेय कहते हैं- [[युधिष्ठिर]]! तब होश में आकर सत्यवान सुखपूर्वक सोये हुए पुरुष की भाँति उठकर संपूर्ण दिशाओं तथा वनप्रान्त की ओर दृष्टि डालकर बोले- ‘सुमध्यमे! मैं फल लाने के लिये तुम्हारे साथ घर से निकला था, फिर लकड़ी चीरते समय मेरे सिर में जोर-जोर से दर्द होने लगा था। शुभे! मस्तक की उस पीड़ा से संतप्त हो मैं देर तक खड़ा रहने में असमर्थ हो गया और तुम्हारी गोद में सिर रखकर सो रहा। ये सारी बातें मुझे क्रमशः याद आ रही हैं। तुम्हारे अंगों का स्पर्श होने से मेरा मन नींद में खो गया। तत्पश्चात् मुझे घोर अंधकार दिखायी दिया। साथ ही एक महातेजस्वी दिव्य पुरुष का दर्शन हुआ। सुमध्यमे! यदि तुम जानती हो तो बताओ; वह सब क्या था? मैंने जो कुछ देखा है, वह स्वप्न तो नहीं था? अथवा वह सब सत्य ही था’।
 
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‘सुमध्यमे! यदि तुम जानती हो तो बताओ; वह सब क्या था ? मैंने जो कुद देखा है, वह स्वप्न तो नहीं था ? अथवा वह सब सत्य ही था’। तब सावित्री उनसे बोली- ‘राजकुमार!  रात बढ़ती जा रही है। कल सवेरे मैं आपसे सब बातें ठीक-ठीक बताऊँगी। ‘सुव्रत!  उठिये, उठिये, आपका कल्याण हो। आप चलकर माता-पिता का दर्शन तो कीजिये। सूर्य डूब गये तथा रात घनी हो गयी है। ये क्रूर बोली बोलने वाले निशाचर यहाँ प्रसन्नतापूर्वक विचर रहे हैं। वन में घूमते हुए मृगों के पैरों से लगातार पत्तों के मर्मर शब्द सुनायी पड़ते हैं।
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तब [[सावित्री]] उनसे बोली- ‘राजकुमार! रात बढ़ती जा रही है। कल सवेरे मैं आपसे सब बातें ठीक-ठीक बताऊँगी। सुव्रत! उठिये, उठिये, आपका कल्याण हो। आप चलकर माता-पिता का दर्शन तो कीजिये। सूर्य डूब गये तथा रात घनी हो गयी है। ये क्रूर बोली बोलने वाले निशाचर यहाँ प्रसन्नतापूर्वक विचर रहे हैं। वन में घूमते हुए मृगों के पैरों से लगातार पत्तों के मर्मर शब्द सुनायी पड़ते हैं।'
 
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[[चित्र:Next.png|link=महाभारत वन पर्व अध्याय 297 श्लोक 76-93]]

13:49, 22 मार्च 2018 के समय का अवतरण

saptanavatyadhikadvishatatam (297) adhh‍yay: van parv (pativratamahatmyaparv)

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mahabharat: van parv: saptanavatyadhikadvishatatamoadhyayah 59-75 shlok ka hindi anuvad


‘tere hi nam se unaki sada khyati hogi arthath ve 'savitr' nam se prasiddh hoange. tere pita ke bhi teri mata ke hi garbh se sau putr hoange. ve teri mata malavi se utpann hone ke karan 'malav' nam se vikhyat hoange. tere bhaee malav kshatriy putr-pautroan se sampann tatha devataoan ke saman tejasvi hoange’.

savitri ko is prakar varadan de pratapi dharmaraj use lautakar apane lok mean chale gaye. yamaraj ke chale jane par savitri apane pati ko pakar usi sthan par gayi; jahaan pati ka mrit sharir p da tha. vah prithvi par apane pati ko p da dekh unake pas gayi aur prithvi par baith gayi, phir pati ko uthakar usane unake masatak ko god mean rakh liya. tadanantar punah chetana prapt karake satyavan paradesh mean rahakar laute hue purush ki bhaanti bar-bar premapoorvak savitri ki or dekhate hue usase bole. satyavan ne kaha- 'priye! khed hai ki maian bahut der tak sota rah gaya. tumane mujhe jaga kyoan nahian diya? ve shyam varn ke purush kahaan haian, jinhoanne mujhe khiancha tha?'

savitri boli- 'narashreshth! ap meri god mean bahut der tak sote rah gaye. ve shyam varn ke purush praja ko sanyam mean rakhane vale sakshath bhagavan yam the, jo ab chale gaye haian. mahabhag! apane vishram kar liya. rajakumar! ab apaki niand bhi toot chuki hai. yadi shakti ho to athiye; dekhiye, pragadh andhakar yukt ratri ho gayi hai.'

markandey kahate haian- yudhishthir! tab hosh mean akar satyavan sukhapoorvak soye hue purush ki bhaanti uthakar sanpoorn dishaoan tatha vanaprant ki or drishti dalakar bole- ‘sumadhyame! maian phal lane ke liye tumhare sath ghar se nikala tha, phir lak di chirate samay mere sir mean jor-jor se dard hone laga tha. shubhe! mastak ki us pi da se santapt ho maian der tak kh da rahane mean asamarth ho gaya aur tumhari god mean sir rakhakar so raha. ye sari batean mujhe kramashah yad a rahi haian. tumhare aangoan ka sparsh hone se mera man niand mean kho gaya. tatpashchath mujhe ghor aandhakar dikhayi diya. sath hi ek mahatejasvi divy purush ka darshan hua. sumadhyame! yadi tum janati ho to batao; vah sab kya tha? maianne jo kuchh dekha hai, vah svapn to nahian tha? athava vah sab saty hi tha’.

tab savitri unase boli- ‘rajakumar! rat badhati ja rahi hai. kal savere maian apase sab batean thik-thik bataooangi. suvrat! uthiye, uthiye, apaka kalyan ho. ap chalakar mata-pita ka darshan to kijiye. soory doob gaye tatha rat ghani ho gayi hai. ye kroor boli bolane vale nishachar yahaan prasannatapoorvak vichar rahe haian. van mean ghoomate hue mrigoan ke pairoan se lagatar pattoan ke marmar shabd sunayi p date haian.'

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