"महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 35 श्लोक 1-18" के अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: पंचस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद</div>  
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: पंचस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद</div>  
  
पाप कर्म के प्रायश्चित्तों का वर्णन
 
  
[[व्यास|व्यासजी]] बोले - भरतनन्दन! मनुष्य तप से यज्ञ आदि सत्कर्मों से तथा दान के द्वारा पाप को धो-बहाकर अपने आप को पवित्र कर लेता है, परंतु यह तभी संभव होता है, जब वह फिर पाप में प्रवृत्त न हो। यदि किसी ने ब्रह्महत्या की हो तो वह भिक्षा माँगकर एक समय भोजन करे, अपना सब काम स्वयं करे, हाथ में खप्पर और खाट का पाया लिये रहे, सदा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, उद्यमशील बना रहे, किसी के दोष न देखे, जमीन पर सोये और लोक में अपना पापकर्म प्रकट करता रहे। इस प्रकार बारह वर्ष तक करने से ब्रह्महत्यारा पापमुक्त हो जाता है। अथवा प्रायश्चित्त बताने वाले विद्वानों की या अपनी इच्छा से शस्त्रधारी पुरुषों के अस्त्र-शस्त्रों का निशाना बन जाय अथवा अपने को प्रज्वलित आग में झोंक दे अथवा नीचे सिर किये किसी भी एक वेद का पाठ करते हुए तीन बार सौ-सौ योजन की यात्रा करे अथवा किसी वेदवेत्ता ब्राह्मण को अपना सर्वस्व समर्पण कर दे या जीवन-निर्वाह के लिये पर्यापत धन अथवा सब सामानों से भरा हुआ घर [[ब्राह्मण]] को दान कर दे- इस प्रकार गौओं और [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] की रक्षा करने वाला पुरुष ब्रह्महत्या से मुक्त हो जाता है। यदि बह्महत्या करने वाला पुरुष कृच्छ्व्रत के अनुसार भोजन करे तो छः वर्षों में वह शुद्ध हो जाता है और एक-एक मास में एक-एक कृच्छ्व्रत का निर्वाह करते हुए भोजन करे तो वह तीन ही वर्षों में पापमुक्त हो जाता है।
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:पापकर्म के प्रायश्चित्तों का वर्णन
यदि एक–एक मास पर भोजनक्रम बदलते हुए अत्‍यत्न्‍त तीव्र कृच्‍छुव्रत‍ के अनुसार अन्‍न ग्रहण करे तो एक वर्ष में ही ब्रह्महत्‍या से छुटकारा मिल सकता है इसमें संशय नहीं है राजन् इसी प्रकार यदि केवल उपवास करने वाला मनुष्‍य हो तो उसकी स्‍वल्‍प समय में ही शुद्धि हो जाती है। अश्‍वमेध यज्ञ करने से भी ब्रह्म हत्‍या का पाप शुद्ध हो जाता हैं। इसमें संशय नहीं है। जो इस प्रकार के लोग महाय 17:42 अपराह्न 17:42 अपराह्न 17:42 अपराह्न के लिए युद्ध में प्राण दे देता हैं, वह ही [[ब्राह्मण]] को एक लाख गौओं का दान करता है, वह सम्‍पूर्ण पापों से मुक्‍त हो जाता है। जो दूध देने वाली पचीस हजार कपिला गौओं का दान करता है, वह समस्‍त पापों से छुटकारा पा जाता है। जब मृत्‍युकाल निकट हो, उस समय सदाचारी दरिद्र ब्राह्मणों को दूध देने वाली एक हजार सवत्‍सा गौओं का दान करके भी मनुष्‍य सब पापों से मुक्‍त हो सकता है। भूपाल जो संयम–नियम से रहने वाले ब्राह्मणों को सौ काबुली घोडों का दान करता है, उसे भी पाप से छुटकारा मिल जाता है। भरतनन्‍दन जो एक ब्राह्मणों को भी उसकी मनोवांछित वस्‍तु दे देता है और देकर फिर उसकी कहीं चर्चा नहीं करता वह भी पाप से मुक्‍त हो जाता है। जो एक बार मदिरा पान करके फिर आग के समान गर्म की हुई मदिरा पी लेता है, वह इहलोक और परलोक में भी अपने को पवि‍त्र कर देता है। जलहीन देश में पर्वत से गिरकर अथवा [[अग्नि]] में प्रवेश करके या महाप्रस्‍थान की विधि से हिमालय में गलकर प्राण दे देने से मनुष्‍य सब पापों से छुटकारा पा जाता है। मदिरा पीने वाला ब्राह्मण ‘ बृहस्‍पति- सव ‘नामक यज्ञ करके शुद्ध हाने पर ब्रह्माजी की सभा में जा सकता है ऐसा श्रुति का कथन है।
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[[व्यास|व्यास जी]] बोले- भरतनन्दन! मनुष्य तप से यज्ञ आदि सत्कर्मों से तथा दान के द्वारा पाप को धो-बहाकर अपने आप को पवित्र कर लेता है, परंतु यह तभी संभव होता है, जब वह फिर पाप में प्रवृत्त न हो। यदि किसी ने ब्रह्महत्या की हो तो वह भिक्षा माँगकर एक समय भोजन करे, अपना सब काम स्वयं करे, हाथ में खप्पर और खाट का पाया लिये रहे, सदा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, उद्यमशील बना रहे, किसी के दोष न देखे, जमीन पर सोये और लोक में अपना पापकर्म प्रकट करता रहे। इस प्रकार बारह वर्ष तक करने से ब्रह्महत्यारा पापमुक्त हो जाता है। अथवा प्रायश्चित्त बताने वाले विद्वानों की या अपनी इच्छा से शस्त्रधारी पुरुषों के अस्त्र-शस्त्रों का निशाना बन जाय अथवा अपने को प्रज्वलित आग में झोंक दे अथवा नीचे सिर किये किसी भी एक वेद का पाठ करते हुए तीन बार सौ-सौ योजन की यात्रा करे अथवा किसी वेदवेत्ता ब्राह्मण को अपना सर्वस्व समर्पण कर दे या जीवन-निर्वाह के लिये पर्यापत धन अथवा सब सामानों से भरा हुआ घर [[ब्राह्मण]] को दान कर दे- इस प्रकार गौओं और [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] की रक्षा करने वाला पुरुष ब्रह्महत्या से मुक्त हो जाता है। यदि बह्महत्या करने वाला पुरुष कृच्छ्व्रत के अनुसार भोजन करे तो छः वर्षों में वह शुद्ध हो जाता है और एक-एक मास में एक-एक कृच्छ्व्रत का निर्वाह करते हुए भोजन करे तो वह तीन ही वर्षों में पापमुक्त हो जाता है।
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यदि एक–एक मास पर भोजनक्रम बदलते हुए अत्‍यत्न्‍त तीव्र कृच्‍छुव्रत‍ के अनुसार अन्‍न ग्रहण करे तो एक वर्ष में ही ब्रह्महत्‍या से छुटकारा मिल सकता है इसमें संशय नहीं है राजन् इसी प्रकार यदि केवल उपवास करने वाला मनुष्‍य हो तो उसकी स्‍वल्‍प समय में ही शुद्धि हो जाती है। अश्‍वमेध यज्ञ करने से भी ब्रह्म हत्‍या का पाप शुद्ध हो जाता हैं। इसमें संशय नहीं है। जो इस प्रकार के लोग महाय 17:42 अपराह्न 17:42 अपराह्न 17:42 अपराह्न के लिए युद्ध में प्राण दे देता हैं, वह ही [[ब्राह्मण]] को एक लाख गौओं का दान करता है, वह सम्‍पूर्ण पापों से मुक्‍त हो जाता है। जो दूध देने वाली पच्चीस हजार कपिला गौओं का दान करता है, वह समस्‍त पापों से छुटकारा पा जाता है। जब मृत्‍युकाल निकट हो, उस समय सदाचारी दरिद्र ब्राह्मणों को दूध देने वाली एक हजार सवत्‍सा गौओं का दान करके भी मनुष्‍य सब पापों से मुक्‍त हो सकता है। भूपाल जो संयम–नियम से रहने वाले ब्राह्मणों को सौ काबुली घोडों का दान करता है, उसे भी पाप से छुटकारा मिल जाता है। भरतनन्‍दन जो एक ब्राह्मणों को भी उसकी मनोवांछित वस्‍तु दे देता है और देकर फिर उसकी कहीं चर्चा नहीं करता वह भी पाप से मुक्‍त हो जाता है। जो एक बार मदिरा पान करके फिर आग के समान गर्म की हुई मदिरा पी लेता है, वह इहलोक और परलोक में भी अपने को पवि‍त्र कर देता है। जलहीन देश में पर्वत से गिरकर अथवा [[अग्नि]] में प्रवेश करके या महाप्रस्‍थान की विधि से हिमालय में गलकर प्राण दे देने से मनुष्‍य सब पापों से छुटकारा पा जाता है। मदिरा पीने वाला ब्राह्मण ‘ बृहस्‍पति- सव ‘नामक यज्ञ करके शुद्ध हाने पर ब्रह्माजी की सभा में जा सकता है ऐसा श्रुति का कथन है।
  
 
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10:52, 15 मार्च 2018 का अवतरण

panchastriansh (35) adhyay: shanti parv (rajadharmanushasan parv)

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mahabharat: shanti parv: panchastriansh adhyay: shlok 1-18 ka hindi anuvad


papakarm ke prayashchittoan ka varnan

vyas ji bole- bharatanandan! manushy tap se yajn adi satkarmoan se tatha dan ke dvara pap ko dho-bahakar apane ap ko pavitr kar leta hai, parantu yah tabhi sanbhav hota hai, jab vah phir pap mean pravritt n ho. yadi kisi ne brahmahatya ki ho to vah bhiksha maangakar ek samay bhojan kare, apana sab kam svayan kare, hath mean khappar aur khat ka paya liye rahe, sada brahmachary vrat ka palan kare, udyamashil bana rahe, kisi ke dosh n dekhe, jamin par soye aur lok mean apana papakarm prakat karata rahe. is prakar barah varsh tak karane se brahmahatyara papamukt ho jata hai. athava prayashchitt batane vale vidvanoan ki ya apani ichchha se shastradhari purushoan ke astr-shastroan ka nishana ban jay athava apane ko prajvalit ag mean jhoank de athava niche sir kiye kisi bhi ek ved ka path karate hue tin bar sau-sau yojan ki yatra kare athava kisi vedavetta brahman ko apana sarvasv samarpan kar de ya jivan-nirvah ke liye paryapat dhan athava sab samanoan se bhara hua ghar brahman ko dan kar de- is prakar gauoan aur brahmanoan ki raksha karane vala purush brahmahatya se mukt ho jata hai. yadi bahmahatya karane vala purush krichchhvrat ke anusar bhojan kare to chhah varshoan mean vah shuddh ho jata hai aur ek-ek mas mean ek-ek krichchhvrat ka nirvah karate hue bhojan kare to vah tin hi varshoan mean papamukt ho jata hai. yadi ek–ek mas par bhojanakram badalate hue ath‍yatnh‍t tivr krichh‍chhuvrat‍ ke anusar anh‍n grahan kare to ek varsh mean hi brahmahath‍ya se chhutakara mil sakata hai isamean sanshay nahian hai rajanh isi prakar yadi keval upavas karane vala manushh‍y ho to usaki sh‍valh‍p samay mean hi shuddhi ho jati hai. ashh‍vamedh yajn karane se bhi brahm hath‍ya ka pap shuddh ho jata haian. isamean sanshay nahian hai. jo is prakar ke log mahay 17:42 aparahn 17:42 aparahn 17:42 aparahn ke lie yuddh mean pran de deta haian, vah hi brahman ko ek lakh gauoan ka dan karata hai, vah samh‍poorn papoan se mukh‍t ho jata hai. jo doodh dene vali pachchis hajar kapila gauoan ka dan karata hai, vah samash‍t papoan se chhutakara pa jata hai. jab mrith‍yukal nikat ho, us samay sadachari daridr brahmanoan ko doodh dene vali ek hajar savath‍sa gauoan ka dan karake bhi manushh‍y sab papoan se mukh‍t ho sakata hai. bhoopal jo sanyam–niyam se rahane vale brahmanoan ko sau kabuli ghodoan ka dan karata hai, use bhi pap se chhutakara mil jata hai. bharatananh‍dan jo ek brahmanoan ko bhi usaki manovaanchhit vash‍tu de deta hai aur dekar phir usaki kahian charcha nahian karata vah bhi pap se mukh‍t ho jata hai. jo ek bar madira pan karake phir ag ke saman garm ki huee madira pi leta hai, vah ihalok aur paralok mean bhi apane ko pavi‍tr kar deta hai. jalahin desh mean parvat se girakar athava agni mean pravesh karake ya mahaprash‍than ki vidhi se himalay mean galakar pran de dene se manushh‍y sab papoan se chhutakara pa jata hai. madira pine vala brahman ‘ brihash‍pati- sav ‘namak yajn karake shuddh hane par brahmaji ki sabha mean ja sakata hai aisa shruti ka kathan hai.

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tika tippani aur sandarbh

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