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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टम अध्याय: श्लोक 31-37 का हिन्दी अनुवाद</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टम अध्याय: श्लोक 31-37 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
− | इसी प्रकार सभी राजा इस [[पृथ्वी]] को जीतते हैं और जीत कर कहने लगते | + | |
− | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार | + | इसी प्रकार सभी राजा इस [[पृथ्वी]] को जीतते हैं और जीत कर कहने लगते हैं कि 'यह मेरी है’। ठीक वैसे ही जैसे पुत्र पिता के धन को अपना बताते हैं। प्राचीनकाल में जो राजर्षि हो गये हैं, जो कि इस समय स्वर्ग में निवास करते हैं, उनके मत में भी राजधर्म की ऐसी ही व्याख्या की गयी है जैसे भरे हुए महासागर से मेघ के रूप में उठा हुआ जल सम्पूर्ण दिशाओं में बरस जाता है, उसी प्रकार धन राजाओं के यहाँ से निकलकर सम्पूर्ण पृथ्वी में फैल जाता है। पहले यह [[पृथ्वी]] वारी-वारी से राज दिलीप, नृग, [[नहुष]], [[अम्बरीष]] और [[मान्धाता]] के अधिकार में रही है, वही इस समय आपके अधीन हो गयी है। अतः आपके समक्ष सर्वस्व की दक्षिणा देकर द्रव्यमय यज्ञ के अनुष्ठान करने का अवसर प्राप्त हुआ है। |
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+ | राजन्! यदि आप यज्ञ नहीं करेंगे तो आपको सारे राज्य का पाप लगेगा। जिस देशों के राजा दक्षिणायुक्त [[अश्वमेध यज्ञ]] के द्वारा भगवान का यजन करते हैं, उनके यज्ञ की समाप्ति पर उन देशों के सभी लोग वहाँ आकर अवभृथस्नान करके पवित्र होते हैं। सम्पूर्ण विश्व जिनका स्वरूप है, उन [[महादेव|महादेव जी]] ने सर्व मेघ नामक महायज्ञ में सम्पूर्ण भूतों की तथा स्वयं अपनी भी आहुति दे दी थी। यह क्षत्रियों के लिये कल्याण का सनातन मार्ग है। इसका कभी अन्त नहीं सुना गया है। राजन्! यह वह महान् मार्ग है, जिस पर दस रथ चलते हैं, आप किसी कुत्सित मार्ग का आश्रय न लें। | ||
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+ | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासन पर्व में अर्जुनवाक्य-विषयक आठवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | ||
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13:40, 11 मार्च 2018 के समय का अवतरण
ashtam (8) adhyay: shanti parv (rajadharmanushasan parv)
mahabharat: shanti parv: ashtam adhyay: shlok 31-37 ka hindi anuvad
rajanh! yadi ap yajn nahian kareange to apako sare rajy ka pap lagega. jis deshoan ke raja dakshinayukt ashvamedh yajn ke dvara bhagavan ka yajan karate haian, unake yajn ki samapti par un deshoan ke sabhi log vahaan akar avabhrithasnan karake pavitr hote haian. sampoorn vishv jinaka svaroop hai, un mahadev ji ne sarv megh namak mahayajn mean sampoorn bhootoan ki tatha svayan apani bhi ahuti de di thi. yah kshatriyoan ke liye kalyan ka sanatan marg hai. isaka kabhi ant nahian suna gaya hai. rajanh! yah vah mahanh marg hai, jis par das rath chalate haian, ap kisi kutsit marg ka ashray n lean.
is prakar shrimahabharat shantiparv ke antargat rajadharmanushasan parv mean arjunavaky-vishayak athavaan adhyay poora hua.
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tika tippani aur sandarbh
sanbandhit lekh
varnamala kramanusar lekh khoj