"महाभारत वन पर्व अध्याय 200 श्लोक 78-95" के अवतरणों में अंतर

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मार्कण्‍डेयजी ने कहा- राजन् । शौच तीन प्रकार का होता है- वाक्‍शौच (वाणी की पवित्रता ), कर्मशौच (क्रिया की पवित्रता) तथा जल शौच (जल से शरीर की शुद्धि) । जो इस तीन प्रकार के शौच से सम्‍पन्न है, वह स्‍वर्गलोक का अधिकारी है, इसमें संशय नहीं । जो ब्राह्मण प्रात: और सांय-इन दोनों समय की संध्‍या और सबको पवित्र करने वाली वेदमाता गायत्री देवी के मन्‍त्र का जप करता है; वह ब्राह्मण उन्‍हीं गायत्री देवी की कृपा से परम पवित्र और निष्‍पाप हो जाता है। वह समुद्र पर्यन्‍त सारी पृथ्‍वी का भी दान ग्रहण कर ले, तो भी किसी संकट में नहीं पड़ता । इतना ही नहीं, आकाश के सूर्य आदि ग्रहों में से जो कोई भी उसके लिये भंयकर होते हैं, वे उपर्युक्‍त गायत्री-जप के प्रभाव से उसके लिये सदा सौम्‍य, सुखद एवं परम मगडलकारी हो जाते हैं ।  
 
मार्कण्‍डेयजी ने कहा- राजन् । शौच तीन प्रकार का होता है- वाक्‍शौच (वाणी की पवित्रता ), कर्मशौच (क्रिया की पवित्रता) तथा जल शौच (जल से शरीर की शुद्धि) । जो इस तीन प्रकार के शौच से सम्‍पन्न है, वह स्‍वर्गलोक का अधिकारी है, इसमें संशय नहीं । जो ब्राह्मण प्रात: और सांय-इन दोनों समय की संध्‍या और सबको पवित्र करने वाली वेदमाता गायत्री देवी के मन्‍त्र का जप करता है; वह ब्राह्मण उन्‍हीं गायत्री देवी की कृपा से परम पवित्र और निष्‍पाप हो जाता है। वह समुद्र पर्यन्‍त सारी पृथ्‍वी का भी दान ग्रहण कर ले, तो भी किसी संकट में नहीं पड़ता । इतना ही नहीं, आकाश के सूर्य आदि ग्रहों में से जो कोई भी उसके लिये भंयकर होते हैं, वे उपर्युक्‍त गायत्री-जप के प्रभाव से उसके लिये सदा सौम्‍य, सुखद एवं परम मगडलकारी हो जाते हैं ।  
  
भयंकर रुप और विशाल शरीर वाले, समस्‍त क्रूरकर्मा, मांसभक्षी राक्षस भी गायत्रीजपपरायण उस श्रेष्‍ठ द्विज पर आक्रमण नहीं कर सकते । वे संध्‍योपासक ब्राह्मण प्रज्‍वलित अग्रि के समान तेजस्‍वी होते हैं। पढ़ाने, यज्ञ कराने अथवा दूसरे से दान लेने के कारण भी उन्‍हें दोष नहीं छू सकता (क्‍योंकि वे उनकी जीविका के कर्म हैं) । ब्राह्मण अच्‍छी तरह वेद पढ़े हों या न पढ़े हो, उत्तम संसकारों से युक्‍त हों या प्राकृत मनुष्‍यों की भांति संस्‍कार शून्‍य हों, उनका अपमान नहीं करना चाहिये; क्‍योंकि वे राख में छिपी हुई आग के समान हैं । जैसे प्रज्‍वलित अग्रि शमशान में भी दूषित नहीं होती, उसी प्रकार ब्राह्मण विद्वान् हो या अविद्वान्, उसे महान् देवता ही मानना चाहिये । चहारदीवारियों, नगर द्वारों और भिन्न-भिन्न महलों से भी नगरों की तब तक शोभा नहीं होती, जब तक वहां श्रेष्‍ठ ब्राहण न रहें ।  
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भयंकर रुप और विशाल शरीर वाले, समस्‍त क्रूरकर्मा, मांसभक्षी राक्षस भी गायत्रीजपपरायण उस श्रेष्‍ठ द्विज पर आक्रमण नहीं कर सकते । वे संध्‍योपासक ब्राह्मण प्रज्‍वलित अग्नि के समान तेजस्‍वी होते हैं। पढ़ाने, यज्ञ कराने अथवा दूसरे से दान लेने के कारण भी उन्‍हें दोष नहीं छू सकता (क्‍योंकि वे उनकी जीविका के कर्म हैं) । ब्राह्मण अच्‍छी तरह वेद पढ़े हों या न पढ़े हो, उत्तम संसकारों से युक्‍त हों या प्राकृत मनुष्‍यों की भांति संस्‍कार शून्‍य हों, उनका अपमान नहीं करना चाहिये; क्‍योंकि वे राख में छिपी हुई आग के समान हैं । जैसे प्रज्‍वलित अग्नि शमशान में भी दूषित नहीं होती, उसी प्रकार ब्राह्मण विद्वान् हो या अविद्वान्, उसे महान् देवता ही मानना चाहिये । चहारदीवारियों, नगर द्वारों और भिन्न-भिन्न महलों से भी नगरों की तब तक शोभा नहीं होती, जब तक वहां श्रेष्‍ठ ब्राहण न रहें ।  
  
 
राजन् । वेदज्ञ, सदाचारी, ज्ञानी और तपस्‍वी ब्राह्मण जहां निवास करते हों, उसी का नाम नगर है । कुन्‍तीनन्‍दन् । व्रज (गौओं के रहने का स्‍थान) हो या वन, जहां बहुश्रुत विद्वान् रहते हों, उसे ‘नगर’ कहा गया है, वह तीर्थ भी माना गया है । प्रजा की रक्षा करने वाले राजा और तपस्‍वी ब्राह्मणके पास जाकर उनकी सेवा-पूजा करके मनुष्‍य तत्‍काल सब पापों से मुक्‍त हो जाता है । पुण्‍यतीर्थो में स्‍नान, पवित्र मन्‍त्रों का वर्णन कीर्तन और श्रेष्‍ठ पुरुषों से वार्तालाप-इन सबको विद्वान पुरुषों ने उत्तम बताया है ।सत्संग से पवित्र किये हुए वाणी के सुन्‍दर सम्‍भाषण रुप जल से अभिषित्त श्रेष्‍ठ पुरुष अपने को सदा पवित्र हुआ मानते हैं ।
 
राजन् । वेदज्ञ, सदाचारी, ज्ञानी और तपस्‍वी ब्राह्मण जहां निवास करते हों, उसी का नाम नगर है । कुन्‍तीनन्‍दन् । व्रज (गौओं के रहने का स्‍थान) हो या वन, जहां बहुश्रुत विद्वान् रहते हों, उसे ‘नगर’ कहा गया है, वह तीर्थ भी माना गया है । प्रजा की रक्षा करने वाले राजा और तपस्‍वी ब्राह्मणके पास जाकर उनकी सेवा-पूजा करके मनुष्‍य तत्‍काल सब पापों से मुक्‍त हो जाता है । पुण्‍यतीर्थो में स्‍नान, पवित्र मन्‍त्रों का वर्णन कीर्तन और श्रेष्‍ठ पुरुषों से वार्तालाप-इन सबको विद्वान पुरुषों ने उत्तम बताया है ।सत्संग से पवित्र किये हुए वाणी के सुन्‍दर सम्‍भाषण रुप जल से अभिषित्त श्रेष्‍ठ पुरुष अपने को सदा पवित्र हुआ मानते हैं ।

01:05, 4 मार्च 2016 का अवतरण

dvishatatam (200) adhh‍yay: van parv (tirthayatraparv )

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mahabharat: van parv: dvishatatam adhh‍yay: shlok 78-95 ka hindi anuvad

brahmanoan ka krodh hi ash‍tr-shash‍tr hai. brahman lohe ke hathiyaroan se l da karate haian. jaise hath mean vajr liye hue inh‍dr asuroan ka sanhar kar dalate hean, usi prakar brahman krodh se hi aparadhi ko nashh‍t kar dete haian .

nishh‍pap yudhishthir . yah maianne dharmayukh‍t katha kahi hai. ise sunakar naimisharanh‍yanivasi muni b de prasann hue the . rajanh is katha ko sunakar manushh‍y shok, bhay, krodh aur pap se rahit ho phir is sansar mean janh‍m nahian lete haian .

yudhishthir ne poochha-dharmath‍maoan mean shreshh‍th mahaprajn maharshe. vah shauch kh‍ya hai jisase brahman sada shuddh bana rahata hai . maian use sunana chahata hooan .

markanh‍deyaji ne kaha- rajanh . shauch tin prakar ka hota hai- vakh‍shauch (vani ki pavitrata ), karmashauch (kriya ki pavitrata) tatha jal shauch (jal se sharir ki shuddhi) . jo is tin prakar ke shauch se samh‍pann hai, vah sh‍vargalok ka adhikari hai, isamean sanshay nahian . jo brahman prat: aur saany-in donoan samay ki sandhh‍ya aur sabako pavitr karane vali vedamata gayatri devi ke manh‍tr ka jap karata hai; vah brahman unh‍hian gayatri devi ki kripa se param pavitr aur nishh‍pap ho jata hai. vah samudr paryanh‍t sari prithh‍vi ka bhi dan grahan kar le, to bhi kisi sankat mean nahian p data . itana hi nahian, akash ke soory adi grahoan mean se jo koee bhi usake liye bhanyakar hote haian, ve uparyukh‍t gayatri-jap ke prabhav se usake liye sada saumh‍y, sukhad evan param magadalakari ho jate haian .

bhayankar rup aur vishal sharir vale, samash‍t kroorakarma, maansabhakshi rakshas bhi gayatrijapaparayan us shreshh‍th dvij par akraman nahian kar sakate . ve sandhh‍yopasak brahman prajh‍valit agni ke saman tejash‍vi hote haian. padhane, yajn karane athava doosare se dan lene ke karan bhi unh‍hean dosh nahian chhoo sakata (kh‍yoanki ve unaki jivika ke karm haian) . brahman achh‍chhi tarah ved padhe hoan ya n padhe ho, uttam sansakaroan se yukh‍t hoan ya prakrit manushh‍yoan ki bhaanti sansh‍kar shoonh‍y hoan, unaka apaman nahian karana chahiye; kh‍yoanki ve rakh mean chhipi huee ag ke saman haian . jaise prajh‍valit agni shamashan mean bhi dooshit nahian hoti, usi prakar brahman vidvanh ho ya avidvanh, use mahanh devata hi manana chahiye . chaharadivariyoan, nagar dvaroan aur bhinn-bhinn mahaloan se bhi nagaroan ki tab tak shobha nahian hoti, jab tak vahaan shreshh‍th brahan n rahean .

rajanh . vedajn, sadachari, jnani aur tapash‍vi brahman jahaan nivas karate hoan, usi ka nam nagar hai . kunh‍tinanh‍danh . vraj (gauoan ke rahane ka sh‍than) ho ya van, jahaan bahushrut vidvanh rahate hoan, use ‘nagar’ kaha gaya hai, vah tirth bhi mana gaya hai . praja ki raksha karane vale raja aur tapash‍vi brahmanake pas jakar unaki seva-pooja karake manushh‍y tath‍kal sab papoan se mukh‍t ho jata hai . punh‍yatirtho mean sh‍nan, pavitr manh‍troan ka varnan kirtan aur shreshh‍th purushoan se vartalap-in sabako vidvan purushoan ne uttam bataya hai .satsang se pavitr kiye hue vani ke sunh‍dar samh‍bhashan rup jal se abhishitt shreshh‍th purush apane ko sada pavitr hua manate haian .

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tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh

varnamala kramanusar lekh khoj

   a    a    i    ee    u    oo    e    ai    o    au    aan    k    kh    g    gh    n    ch    chh    j    jh    n    t    th    d    dh    n    t    th    d    dh    n    p    ph    b    bh    m    y    r    l    v    sh    sh    s    h    ksh    tr    jn    rri    rri    aau    shr    aah