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[[चित्र:Prev.png|link=महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 2 श्लोक 1-12]] | [[चित्र:Prev.png|link=महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 2 श्लोक 1-12]] | ||
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− | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोण पर्व: | + | ;<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोण पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 44-54 का हिन्दी अनुवाद</div> |
− | राजन ! उस समय द्रोणाचार्य को युद्ध के लिये | + | |
− | तब महाधनुर्धर द्रोणाचार्य ने अपनी सेना को | + | *राजन! उस समय [[द्रोणाचार्य]] को युद्ध के लिये उद्यत देख [[सृंजय|सृंजयों]] सहित [[पाण्डव|पाण्डवों]] ने पृथक-पृथक [[बाण अस्त्र|बाणों]] की वर्षा करते हुए उनका सामना किया। (44) |
− | शास्त्रोक्त विधि से निर्मित हुआ आचार्य | + | *जैसे [[वायु]] बादलों को उड़ाकर छिन्न–भिन्न कर देती है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य के द्वारा क्षत-विक्षत हुई पांचालों सहित पाण्डवों की विशाल सेना तितर-बितर हो गयी। (45) |
+ | *द्रोण ने युद्ध में बहुत से दिव्यास्त्रों का प्रयोग करके क्षण-भर में पाण्डवों तथा सृंजयों को पीड़ित कर दिया। (46) | ||
+ | *जैसे [[इन्द्र]] दानवों को पीड़ा देते हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य से पीड़ित हो [[धृष्टद्युम्न]] आदि पांचाल योद्धा भय से काँपने लगे। (47) | ||
+ | *तब दिव्यास्त्रों के ज्ञाता यज्ञसेन कुमार शूरवीर महारथी धृष्टद्युम्न ने अपने बाणों की वर्षा से द्रोणाचार्य की सेना को बारंबार घायल किया। (48) | ||
+ | *बलवान द्रुपदपुत्र ने अपने बाणों की वर्षा से द्रोणाचार्य की बाण वृष्टि को रोककर समस्त [[कौरव सेना |कौरव सैनिकों]] को मारना आरम्भ किया। (49) | ||
+ | *तब महाधनुर्धर द्रोणाचार्य ने अपनी सेना को काबू में करके उसे युद्ध स्थल में स्थिर भाव से खड़ा कर दिया और द्रुपदकुमार पर धावा किया। (50) | ||
+ | *जैसे क्रोध में भरे हुए इन्द्र सहसा दानवों पर [[बाण अस्त्र|बाणों]] की बौछार करतें हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य ने धृष्टद्युम्न पर बाणों की बड़ी भारी वर्षा आरम्भ कर दी। (51) | ||
+ | *जैसे सिंह दूसरे मृगों को भगा देता है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य के बाणों से विकम्पित हुए [[पाण्डव]] तथा [[सृंजय]] बारंबार युद्ध का मैदान छोड़कर भागने लगे। (52) | ||
+ | *राजन! बलवान द्रोणाचार्य पाण्डवों का सेना में अलात चक्र की भाँति चारों ओर चक्कर लगाने लगे। यह एक अद्भुत सी बात हुई। (53) | ||
+ | *शास्त्रोक्त विधि से निर्मित हुआ आचार्य द्रोण का वह श्रेष्ठ [[रथ]] आकाश चारी गन्धर्व नगर के समान जान पड़ता था। वायु के वेग से उसकी [[ध्वज |पताका]] फहरा रही थी। वह रथी के मन को आह्लाद प्रदान करने वाला था। उसके घोड़े उछल-उछलकर चल रहे थे। उसका ध्वज दण्ड स्फटिक मणि के समान स्वच्छ एवं उज्जवल था। वह शत्रुओं को भयभीत करने वाला था। उस श्रेष्ठ रथ पर आरूढ़ होकर [[द्रोणाचार्य]] शत्रु सेना का संहार कर रहे थे। (54) | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत द्रोणाभिषेकपर्व में द्रोणपराक्रमविषयक सातवॉ अध्याय पूरा हुआ ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत द्रोणाभिषेकपर्व में द्रोणपराक्रमविषयक सातवॉ अध्याय पूरा हुआ ।</div> |
18:41, 24 अप्रॅल 2016 का अवतरण
saphtam (7) adhyay: dron parv ( dronabhishek parv)
is prakar shrimahabharat dronaparv ke anhtargat dronabhishekaparv mean dronaparakramavishayak satav aau adhhyay poora hua .
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tika tippani aur sandarbh
sanbandhit lekh
varnamala kramanusar lekh khoj