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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: पंचस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 33-51 का हिन्दी अनुवाद</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: पंचस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 33-51 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
− | इसी प्रकार इन पापों के गौरव और लाघवाक का निश्चय करना चाहिए। पशु-पक्षियों का वध दूसरे दूसरे बहुत से वृक्षों का उच्छेद करके पायुक्त हुआ | + | इसी प्रकार इन पापों के गौरव और लाघवाक का निश्चय करना चाहिए। पशु-पक्षियों का वध दूसरे दूसरे बहुत से वृक्षों का उच्छेद करके पायुक्त हुआ पुरुष अपनी शुद्धि के लिये तीन दिन, तीन रात केवल हवा पीकर रहे और अपना पाप कर्म लोगो पर प्रकट करता रहे ।राजन जो स्त्री समागम करने के योग्य नहीं है, उसके साथ समागम कर लेने पर प्रायश्चित का का विधान है उसे छ माह तक गिले वस्त्र पहनकर घुमना और राख के ढेर पर सोना चाहिए । जितने न करने योग्य पाप कर्म हैं, उस सबके लिए यही विधी है। ब्राह्माण ग्रन्थों में बतायी हुई विधि से दुष्टान्त बताने वाले शास्त्रों की युक्तयों से इसी तरह पाप शुद्धि के लिये प्रायश्चित करना चाहिये । जो पवित्र स्थान में मिताहारी हो हिंसा का सर्वथा त्याग करके राग द्वेष, मान–अपमान आदि से शून्य हो मौन भाव से गायत्री मन्त्र का जप करता है , वह सब पापों से मुक्त हो जाता है । मनुष्य को चाहिये कि वह दिन में खडा रहे रात में चुले मैदान में सोये, तीन बार दिन में और तीन बार रात में वस्त्रों सहित जल में घुसकर स्नान करे और इस व्रत का पालन करते समय स्त्रि शुद्ध और पति से बातचीत न करे, ऐसा नियम लेने वाला दिव्ज अज्ञानवश किये हुए सब पापों से मुक्त हो जाता है । मनुष्य शुभ और अशुभ जो कर्म करता है, उसके पांच महाभूत साक्षी होते हैं । <br /> |
उन शुभ और अशुभ कर्मों का फल मृत्यु के पश्चात उसे प्राप्त होता है । उन दोनों प्रकार के कर्मों में जो अधिक होता है, उसी का फल कर्ता को प्राप्त होता है। इसलिये यदि मनुष्य से अशुभ कर्म बन जाय ता वह दान तपस्या और सत्कर्म के द्रारा शुभ फल की वृद्धि कर लिससे उसके पास अशुभ को दबाकर शुभ का ही संग्रह अधिक हो जाय। मनुष्य को चाहिये हि कि वह शुभ कर्मों का ही अनुष्ठान करे पाप कर्म से सर्वथा दूर रहे तथा प्रतिदिन धन का दान करे ऐसा करने से वह पापों से मुक्त हो जाता है । मैंने तुम्हारे सामने पाप के अनुरुप प्रायश्वचत बतलाया है परंतु महापात को से भिन्न पापों के लिये ही ऐसा प्रायचित किया जाता है। राजन भक्ष्य, अभक्ष्यवाच्य और अवाच्य तथा जान बूझ कर और बिना जाने किये हुए पापों के लिये प्राश्यचित कहे गये हैं विज्ञ पुरुष केा समझ कर इनका अनुष्ठान करना चाहिये। जान बूझकर किया हुआ सारा पाप भारी होता है और अनजाने में वैसा पाप बन जाने पर कम दोष लगता है। इस प्रकार भारी और हल के पाप के अनुसार ही उसे प्रायश्चित का विधान है। शास्त्रोक्त विधि से प्रायश्चित करके सारा पाप दूर किया जा सकता है । परंतु यह विधि आस्तिक और श्रद्धालु पुरुषों लिये ही कही गई है । जिनमें दम्भा और द्वेषा की प्रधानता है उन नास्तिक और श्रद्धाहीन पुरुषों के लिये कभी ऐसे प्रायश्चित का विधान नहीं देखा जाता है । <br /> | उन शुभ और अशुभ कर्मों का फल मृत्यु के पश्चात उसे प्राप्त होता है । उन दोनों प्रकार के कर्मों में जो अधिक होता है, उसी का फल कर्ता को प्राप्त होता है। इसलिये यदि मनुष्य से अशुभ कर्म बन जाय ता वह दान तपस्या और सत्कर्म के द्रारा शुभ फल की वृद्धि कर लिससे उसके पास अशुभ को दबाकर शुभ का ही संग्रह अधिक हो जाय। मनुष्य को चाहिये हि कि वह शुभ कर्मों का ही अनुष्ठान करे पाप कर्म से सर्वथा दूर रहे तथा प्रतिदिन धन का दान करे ऐसा करने से वह पापों से मुक्त हो जाता है । मैंने तुम्हारे सामने पाप के अनुरुप प्रायश्वचत बतलाया है परंतु महापात को से भिन्न पापों के लिये ही ऐसा प्रायचित किया जाता है। राजन भक्ष्य, अभक्ष्यवाच्य और अवाच्य तथा जान बूझ कर और बिना जाने किये हुए पापों के लिये प्राश्यचित कहे गये हैं विज्ञ पुरुष केा समझ कर इनका अनुष्ठान करना चाहिये। जान बूझकर किया हुआ सारा पाप भारी होता है और अनजाने में वैसा पाप बन जाने पर कम दोष लगता है। इस प्रकार भारी और हल के पाप के अनुसार ही उसे प्रायश्चित का विधान है। शास्त्रोक्त विधि से प्रायश्चित करके सारा पाप दूर किया जा सकता है । परंतु यह विधि आस्तिक और श्रद्धालु पुरुषों लिये ही कही गई है । जिनमें दम्भा और द्वेषा की प्रधानता है उन नास्तिक और श्रद्धाहीन पुरुषों के लिये कभी ऐसे प्रायश्चित का विधान नहीं देखा जाता है । <br /> | ||
धार्मात्माओं में श्रेष्ठ पुरुषसिंह जो इहलोक और परलोक में सुख चाहता हो उसे श्रेष्ठ पुरुषों के आचार तथा उनके उपदेश किये हुए धर्म का सदा ही सेवन करना चाहिए । नरेश्वर तुमने तो अपने प्राणों की रक्षा धन की प्राप्ति अथवा राजोचित कर्तव्य का पालन करने के लिये ही शत्रूओं का वध किया है अत इतना ही पर्याप्त कारण है जिससे तुम पाप मुक्त हो जाओगे । अथवा यदि तुम्हारे मन में उन अतीत घटनाओं के कारण कोई घृणा या ग्लानि हो तो उनके लिये प्रायश्चित कर लेना परन्तु इस प्रकार अनार्य पुरुषों द्वारा सेवित खेद या रोष के वशीभूत होकर आत्म हत्या न करो । जन मे जय भगवान व्यास के ऐसा कहने पर धर्मराज युधिष्ठिर ने दो घड़ी तक कुछ सोच विचार करके तपोधन व्यास जी से इस प्रकार कहा । | धार्मात्माओं में श्रेष्ठ पुरुषसिंह जो इहलोक और परलोक में सुख चाहता हो उसे श्रेष्ठ पुरुषों के आचार तथा उनके उपदेश किये हुए धर्म का सदा ही सेवन करना चाहिए । नरेश्वर तुमने तो अपने प्राणों की रक्षा धन की प्राप्ति अथवा राजोचित कर्तव्य का पालन करने के लिये ही शत्रूओं का वध किया है अत इतना ही पर्याप्त कारण है जिससे तुम पाप मुक्त हो जाओगे । अथवा यदि तुम्हारे मन में उन अतीत घटनाओं के कारण कोई घृणा या ग्लानि हो तो उनके लिये प्रायश्चित कर लेना परन्तु इस प्रकार अनार्य पुरुषों द्वारा सेवित खेद या रोष के वशीभूत होकर आत्म हत्या न करो । जन मे जय भगवान व्यास के ऐसा कहने पर धर्मराज युधिष्ठिर ने दो घड़ी तक कुछ सोच विचार करके तपोधन व्यास जी से इस प्रकार कहा । |
01:02, 2 नवम्बर 2015 का अवतरण
panchastriansh (35) adhyay: shanti parv (rajadharmanushasan parv)
mahabharat: shanti parv: panchastriansh adhyay: shlok 33-51 ka hindi anuvad
isi prakar in papoan ke gaurav aur laghavak ka nishhchay karana chahie. pashu-pakshiyoan ka vadh doosare doosare bahut se vrikshoan ka uchhchhed karake payukht hua purush apani shuddhi ke liye tin din, tin rat keval hava pikar rahe aur apana pap karm logo par prakat karata rahe .rajan jo stri samagam karane ke yoghy nahian hai, usake sath samagam kar lene par prayashchit ka ka vidhan hai use chh mah tak gile vastr pahanakar ghumana aur rakh ke dher par sona chahie . jitane n karane yoghy pap karm haian, us sabake lie yahi vidhi hai. brahman granhthoan mean batayi huee vidhi se dushhtanht batane vale shashtroan ki yuktayoan se isi tarah pap shuddhi ke liye prayashchit karana chahiye . jo pavitr shthan mean mitahari ho hiansa ka sarvatha thyag karake rag dvesh, man–apaman adi se shoonhy ho maun bhav se gayatri manhtr ka jap karata hai , vah sab papoan se mukht ho jata hai . manushhy ko chahiye ki vah din mean khada rahe rat mean chule maidan mean soye, tin bar din mean aur tin bar rat mean vashtroan sahit jal mean ghusakar shnan kare aur is vrat ka palan karate samay stri shuddh aur pati se batachit n kare, aisa niyam lene vala divhj ajnanavash kiye hue sab papoan se mukht ho jata hai . manushhy shubh aur ashubh jo karm karata hai, usake paanch mahabhoot sakshi hote haian . |
tika tippani aur sandarbh
sanbandhit lekh
varnamala kramanusar lekh khoj