"महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 36 श्लोक 30-50" के अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: षट्त्रिंश अध्याय: श्लोक 30-50 का हिन्दी अनुवाद</div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: षट्त्रिंश अध्याय: श्लोक 30-50 का हिन्दी अनुवाद</div>
  
जिन्‍हें किसी ने समाज या गायन में दोषी ठहराया हूँ जो नर्तकी के द्वारा अपनी जीविका चलाने चलाते हो छोटे भाई का ब्‍याह हो जाने पर भी कुंवारे रह गए हो बंदी (चारण या भाट)- का काम करते हो या जुवारी हो ऐसे लोगों का अन्‍न ग्रहण करने योग्य नहीं है । बाईं हाथ से लाया अथवा परोसा गया अन्‍न, बासी भात, शराब मिला हुआ झूठा और घर वालों को न देकर उसके लिए बचाया हुआ अन्‍न भी अखाध्‍य है ।इसी प्रकार जो पदार्थ आटे, ईख के रस साग या दूध को बिगाड़ कर या सडाकर कर बनाए गए हो सत्तू, भुने हुए जौ और दही मिश्रित सत्तू विकृत करके बनाएं हुए पदार्थ यदि बहुत देर के बने हो तो उन्‍हे नहीं खाना चाहिए । खीर, खिचडी, फल का गुदा, फलका गूदा और पुए यदि देवता के उद्देश्य से न बनाए हो तो गृहस्‍थ ब्राह्माण के लिए खाने पीने योग्य नहीं है । ग्रहस्‍थ को चाहिए कि वह पहले देवताओं, ऋषियों, मनुष्‍यों (अतिथियों ), पितरा और घर के देवताओं को पूजन करके पीछे अपने भोजन करे। जैसे ग्रहत्‍यागी संन्‍यासी घर के प्रति अनासक्त होता है उसी प्रकार गणेश को भी ममता ओर आसक्ति छोडकर ही घर मे रहना चाहिए जो इस प्रकार सदाचार का पालन करते हुए अपनी प्रिय पत्नी के साथ घर में निवास करता है वह धर्म का पूरा पूरा फल प्राप्त कर लेता है । धर्मात्मा पुरुष को चाहिए कि वह यश के लोभ से भय के कारण अथवा अपने उपकार करने वाले दो दान न दे अर्थात उसे जो दिया जाए वह दान नहीं है, ऐसा समझना चाहिए जो नाचने गाने वाले हंसी मजाक करने वाले (भांड आदि), मदमत, उन्मत, चोर, निन्‍दक, गूंगे क्रांति उत्‍पन्‍न अंगहीन बोने दूषित कुल में उत्पन्न तथा व्रत संस्कार से सुनी हो उन्‍हें भी दान न दे श्रोत्रिय के सिवा वेद ज्ञान सुन्‍य ब्राह्माण को दान नहीं देना चाहिए। जो उत्तम विधि से दिया नहीं गया हो तथा जिसे उत्तम विधि से साथ ग्रहण नहीं किया गया हो वह दोनों ही देने ओर लेने वालो के लिए अनर्थकारी होते हैं ।<br />
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जिन्‍हें किसी ने समाज या गायन में दोषी ठहराया हूँ जो नर्तकी के द्वारा अपनी जीविका चलाने चलाते हो छोटे भाई का ब्‍याह हो जाने पर भी कुंवारे रह गए हो बंदी (चारण या भाट)- का काम करते हो या जुवारी हो ऐसे लोगों का अन्‍न ग्रहण करने योग्य नहीं है । बाईं हाथ से लाया अथवा परोसा गया अन्‍न, बासी भात, शराब मिला हुआ झूठा और घर वालों को न देकर उसके लिए बचाया हुआ अन्‍न भी अखाध्‍य है ।इसी प्रकार जो पदार्थ आटे, ईख के रस साग या दूध को बिगाड़ कर या सडाकर कर बनाए गए हो सत्तू, भुने हुए जौ और दही मिश्रित सत्तू विकृत करके बनाएं हुए पदार्थ यदि बहुत देर के बने हो तो उन्‍हे नहीं खाना चाहिए । खीर, खिचडी, फल का गुदा, फलका गूदा और पुए यदि देवता के उद्देश्य से न बनाए हो तो गृहस्‍थ ब्राह्मण के लिए खाने पीने योग्य नहीं है । ग्रहस्‍थ को चाहिए कि वह पहले देवताओं, ऋषियों, मनुष्‍यों (अतिथियों ), पितरा और घर के देवताओं को पूजन करके पीछे अपने भोजन करे। जैसे ग्रहत्‍यागी संन्‍यासी घर के प्रति अनासक्त होता है उसी प्रकार गणेश को भी ममता ओर आसक्ति छोडकर ही घर मे रहना चाहिए जो इस प्रकार सदाचार का पालन करते हुए अपनी प्रिय पत्नी के साथ घर में निवास करता है वह धर्म का पूरा पूरा फल प्राप्त कर लेता है । धर्मात्मा पुरुष को चाहिए कि वह यश के लोभ से भय के कारण अथवा अपने उपकार करने वाले दो दान न दे अर्थात उसे जो दिया जाए वह दान नहीं है, ऐसा समझना चाहिए जो नाचने गाने वाले हंसी मजाक करने वाले (भांड आदि), मदमत, उन्मत, चोर, निन्‍दक, गूंगे क्रांति उत्‍पन्‍न अंगहीन बोने दूषित कुल में उत्पन्न तथा व्रत संस्कार से सुनी हो उन्‍हें भी दान न दे श्रोत्रिय के सिवा वेद ज्ञान सुन्‍य ब्राह्मण को दान नहीं देना चाहिए। जो उत्तम विधि से दिया नहीं गया हो तथा जिसे उत्तम विधि से साथ ग्रहण नहीं किया गया हो वह दोनों ही देने ओर लेने वालो के लिए अनर्थकारी होते हैं ।<br />
जैसे खेर की लकडी या पत्थर की सिला का सहारा लेकर समुद्र पार करने वाला मनुष्य डूब जाता है उसी प्रकार विधिपूर्वक दान देने लेने वाले यजमान और पुरोहित दोनों डूब जाते है । जिस गीली लकडी से ढकी हुई आग प्रज्वलित नहीं होती उसी प्रकार तपस्या स्वाध्याय तथा सदाचारी से हीन ब्राह्माण यदि दान ग्रहण कर ले तो वह उसे पचा नहीं सकता । जैसे मनुष्य की खोपड़ी में भरा हुआ जल और कुत्ते की खाल में रखा हुआ दूध आश्रय दोष से अपवित्र होता है उसी प्रकार सदाचार हिन ब्रह्ममन का शास्त्र ज्ञान बी आश्रय स्थान के दोष से दूषित हो जाता है। जो ब्राह्माण वेद ज्ञान से सुनने और शास्त्र जान से रहित होते हुए भी दूसरों में दोष नहीं देखता तथा संतुष्ट रहता है उसे कथा व्रत शून्‍यदीनहीन को दया करके दान देना चाहिए । पर जो दूसरों का बुरा करने वाला हो वह यदि दीन हो तो उसे दया करके नहीं देना चाहिए वह स्टोर का आचार है ओर यही धर्म है । <br />
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जैसे खेर की लकडी या पत्थर की सिला का सहारा लेकर समुद्र पार करने वाला मनुष्य डूब जाता है उसी प्रकार विधिपूर्वक दान देने लेने वाले यजमान और पुरोहित दोनों डूब जाते है । जिस गीली लकडी से ढकी हुई आग प्रज्वलित नहीं होती उसी प्रकार तपस्या स्वाध्याय तथा सदाचारी से हीन ब्राह्मण यदि दान ग्रहण कर ले तो वह उसे पचा नहीं सकता । जैसे मनुष्य की खोपड़ी में भरा हुआ जल और कुत्ते की खाल में रखा हुआ दूध आश्रय दोष से अपवित्र होता है उसी प्रकार सदाचार हिन ब्रह्ममन का शास्त्र ज्ञान बी आश्रय स्थान के दोष से दूषित हो जाता है। जो ब्राह्मण वेद ज्ञान से सुनने और शास्त्र जान से रहित होते हुए भी दूसरों में दोष नहीं देखता तथा संतुष्ट रहता है उसे कथा व्रत शून्‍यदीनहीन को दया करके दान देना चाहिए । पर जो दूसरों का बुरा करने वाला हो वह यदि दीन हो तो उसे दया करके नहीं देना चाहिए वह स्टोर का आचार है ओर यही धर्म है । <br />
वेदविहीन ब्राह्माणों को दिया हुआ दान अपात्र दोष से निरर्थक हो जाता है इसमें कोइ विचार करने की बात नहीं है ।जैसे लकडी का हाथी और चाम का बना हुआ मर्ग हो, उसी प्रकार वेद शास्त्र के अध्यन से शून्‍य ब्राह्माण है ये तीनों नाम मात्र धारण करते हैं (परंतु नाम के अनुसार काम नहीं देते) जैसे नपुंसक मनुष्य स्त्रियों के पास जाकर निष्फल होता है गाय गाय से ही संयुक्त होने पर कोई फल नहीं दे सकती और जिस बिना पंख का पक्षी उड़ नहीं सकता उसी प्रकार वेद मंत्रों के ज्ञान से शून्‍य ब्राह्माण भी व्‍यर्थ हो जाता है। जिस प्रकार अन्‍न हीन ग्राम, जल रहित कुआं और राख में की हुई आहूति व्‍यर्थ नहीं होती है उसी प्रकार मुर्ख ब्राह्माण को दीया दान भी व्‍यर्थ ही है । मूर्ख ब्राह्माण देवताओं के यज्ञ और पितरो के श्राद्ध का नाश करने वाला होता है वह धन का अपहरण करने वाला शत्रु है वह दान देने वालों को उत्तम लोक में नहीं पहुंचा सकता है। भारत भूषण युधिष्ठिर ये सब वृत्तांत यथावत रुप से थोडे़ में बताया गया। यह महत्वपूर्ण प्रसन्‍न सब को सुनना चाहिए।  
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वेदविहीन ब्राह्मणों को दिया हुआ दान अपात्र दोष से निरर्थक हो जाता है इसमें कोइ विचार करने की बात नहीं है ।जैसे लकडी का हाथी और चाम का बना हुआ मर्ग हो, उसी प्रकार वेद शास्त्र के अध्यन से शून्‍य ब्राह्मण है ये तीनों नाम मात्र धारण करते हैं (परंतु नाम के अनुसार काम नहीं देते) जैसे नपुंसक मनुष्य स्त्रियों के पास जाकर निष्फल होता है गाय गाय से ही संयुक्त होने पर कोई फल नहीं दे सकती और जिस बिना पंख का पक्षी उड़ नहीं सकता उसी प्रकार वेद मंत्रों के ज्ञान से शून्‍य ब्राह्मण भी व्‍यर्थ हो जाता है। जिस प्रकार अन्‍न हीन ग्राम, जल रहित कुआं और राख में की हुई आहूति व्‍यर्थ नहीं होती है उसी प्रकार मुर्ख ब्राह्मण को दीया दान भी व्‍यर्थ ही है । मूर्ख ब्राह्मण देवताओं के यज्ञ और पितरो के श्राद्ध का नाश करने वाला होता है वह धन का अपहरण करने वाला शत्रु है वह दान देने वालों को उत्तम लोक में नहीं पहुंचा सकता है। भारत भूषण युधिष्ठिर ये सब वृत्तांत यथावत रुप से थोडे़ में बताया गया। यह महत्वपूर्ण प्रसन्‍न सब को सुनना चाहिए।  
  
 
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01:11, 25 मार्च 2017 का अवतरण

shattriansh (36) adhyay: shanti parv (rajadharmanushasan parv)

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mahabharat: shanti parv: shattriansh adhyay: shlok 30-50 ka hindi anuvad

jinh‍hean kisi ne samaj ya gayan mean doshi thaharaya hooan jo nartaki ke dvara apani jivika chalane chalate ho chhote bhaee ka bh‍yah ho jane par bhi kuanvare rah ge ho bandi (charan ya bhat)- ka kam karate ho ya juvari ho aise logoan ka anh‍n grahan karane yogy nahian hai . baeean hath se laya athava parosa gaya anh‍n, basi bhat, sharab mila hua jhootha aur ghar valoan ko n dekar usake lie bachaya hua anh‍n bhi akhadhh‍y hai .isi prakar jo padarth ate, eekh ke ras sag ya doodh ko biga d kar ya sadakar kar banae ge ho sattoo, bhune hue jau aur dahi mishrit sattoo vikrit karake banaean hue padarth yadi bahut der ke bane ho to unh‍he nahian khana chahie . khir, khichadi, phal ka guda, phalaka gooda aur pue yadi devata ke uddeshy se n banae ho to grihash‍th brahman ke lie khane pine yogy nahian hai . grahash‍th ko chahie ki vah pahale devataoan, rrishiyoan, manushh‍yoan (atithiyoan ), pitara aur ghar ke devataoan ko poojan karake pichhe apane bhojan kare. jaise grahath‍yagi sannh‍yasi ghar ke prati anasakt hota hai usi prakar ganesh ko bhi mamata or asakti chhodakar hi ghar me rahana chahie jo is prakar sadachar ka palan karate hue apani priy patni ke sath ghar mean nivas karata hai vah dharm ka poora poora phal prapt kar leta hai . dharmatma purush ko chahie ki vah yash ke lobh se bhay ke karan athava apane upakar karane vale do dan n de arthat use jo diya jae vah dan nahian hai, aisa samajhana chahie jo nachane gane vale hansi majak karane vale (bhaand adi), madamat, unmat, chor, ninh‍dak, gooange kraanti uth‍panh‍n aangahin bone dooshit kul mean utpann tatha vrat sanskar se suni ho unh‍hean bhi dan n de shrotriy ke siva ved jnan sunh‍y brahman ko dan nahian dena chahie. jo uttam vidhi se diya nahian gaya ho tatha jise uttam vidhi se sath grahan nahian kiya gaya ho vah donoan hi dene or lene valo ke lie anarthakari hote haian .
jaise kher ki lakadi ya patthar ki sila ka sahara lekar samudr par karane vala manushy doob jata hai usi prakar vidhipoorvak dan dene lene vale yajaman aur purohit donoan doob jate hai . jis gili lakadi se dhaki huee ag prajvalit nahian hoti usi prakar tapasya svadhyay tatha sadachari se hin brahman yadi dan grahan kar le to vah use pacha nahian sakata . jaise manushy ki khop di mean bhara hua jal aur kutte ki khal mean rakha hua doodh ashray dosh se apavitr hota hai usi prakar sadachar hin brahmaman ka shastr jnan bi ashray sthan ke dosh se dooshit ho jata hai. jo brahman ved jnan se sunane aur shastr jan se rahit hote hue bhi doosaroan mean dosh nahian dekhata tatha santusht rahata hai use katha vrat shoonh‍yadinahin ko daya karake dan dena chahie . par jo doosaroan ka bura karane vala ho vah yadi din ho to use daya karake nahian dena chahie vah stor ka achar hai or yahi dharm hai .
vedavihin brahmanoan ko diya hua dan apatr dosh se nirarthak ho jata hai isamean koi vichar karane ki bat nahian hai .jaise lakadi ka hathi aur cham ka bana hua marg ho, usi prakar ved shastr ke adhyan se shoonh‍y brahman hai ye tinoan nam matr dharan karate haian (parantu nam ke anusar kam nahian dete) jaise napuansak manushy striyoan ke pas jakar nishphal hota hai gay gay se hi sanyukt hone par koee phal nahian de sakati aur jis bina pankh ka pakshi u d nahian sakata usi prakar ved mantroan ke jnan se shoonh‍y brahman bhi vh‍yarth ho jata hai. jis prakar anh‍n hin gram, jal rahit kuaan aur rakh mean ki huee ahooti vh‍yarth nahian hoti hai usi prakar murkh brahman ko diya dan bhi vh‍yarth hi hai . moorkh brahman devataoan ke yajn aur pitaro ke shraddh ka nash karane vala hota hai vah dhan ka apaharan karane vala shatru hai vah dan dene valoan ko uttam lok mean nahian pahuancha sakata hai. bharat bhooshan yudhishthir ye sab vrittaant yathavat rup se thode़ mean bataya gaya. yah mahatvapoorn prasanh‍n sab ko sunana chahie.

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