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- जिसने शुभ-धारा सब खोई -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिससे परम सुखी हों मेरे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिससे मुझ ‘आनन्द-रूप’ को -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिहि तन गोकुलनाथ भज्यौ -सूरदास
- जिहि दिन तजी ब्रज की भीर -सूरदास
- जिहिं तन हरि भजिबौ न कियौ -सूरदास
- जिहिं बिधि मिलनि मिलैं वै माधौ -सूरदास
- जिह्यग
- जिह्वा
- जिह्वा के मम अग्र भाग पर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जी कोउ कहै बात सुनाइ -सूरदास
- जीती जीती है रन बंसी -सूरदास
- जीत्यौ जरासंध बँदि छोरी -सूरदास
- जीमूत
- जीमूत (बहुविकल्पी)
- जीमूत (महात्मा)
- जीमूत (सूर्य)
- जीव की सत्ता तथा नित्यता को युक्तियों से सिद्ध करना
- जीव की सत्ता पर अनेक युक्तियों से शंका उपस्थित करना
- जीव के गर्भ-प्रवेश का वर्णन
- जीव गोस्वामी
- जीवंजीवक
- जीवन (महाभारत संदर्भ)
- जीवन (सूर्य)
- जीवन को संगीत बना दो -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जीवन मुख देखे कौ नीकौ -सूरदास
- जीवल
- जीवात्मा और परमात्मा का योग द्वारा साक्षात्कार
- जीविका (महाभारत संदर्भ)
- जीवोत्पत्ति के दोष और बंधनों से मुक्त तथा विषय शक्ति के त्याग का उपदेश
- जुए के अनौचित्य के सम्बन्ध में युधिष्ठिर-शकुनि संवाद
- जुए में शकुनि के छल से युधिष्ठिर की हार
- जुगल किशोर मंदिर, वृन्दावन
- जुगल किशोर मंदिर वृन्दावन
- जुगल किशोर मन्दिर, वृन्दावन
- जुगल किशोर मन्दिर वृन्दावन
- जुगल छबि हरति हिये की पीर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जुगल बर परम मधुर रमनीय -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जुगलबर एक तत्त्व -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जुगलबर एक तव, दो रूप -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जुगलबर एक तव -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जुबति इक जमुना-जल कौं आई -सूरदास
- जुबती जुरि राधा-ढिग आई -सूरदास
- जुरि चली हें बधावन नंद महर घर -नंददास
- जुरि चली हें बधावन नंद महर घर 2 -नंददास
- जुवति-अंग छवि निरखत स्याम -सूरदास
- जुवति अंग-सिंगार संवारति -सूरदास
- जुवति इक आवति देखी स्याम -सूरदास
- जुवति गई घर नैंकु औरै और बतावत -सूरदास
- जुवति गईं घर नैंकु न भावत -सूरदास
- जुवति दल पेलि कै छेकि -सूरदास
- जुवति बोधि सब घरहिं पठाई -सूरदास
- जुवती कहतिं कान्हन रिस पायौ -सूरदास
- जुवती जुरि राधा-ढिग आईं -सूरदास
- जुवती ब्रज घर जान बिचारति -सूरदास
- जुवती ब्रज घर जान बिचारतिं -सूरदास
- जुवती ब्रज घ्र जान बिचारति -सूरदास
- जुवतो कहतिं कान्हन रिस पायौ -सूरदास
- जूता, शकट, तिल, भूमि, गौ और अन्न के दान का माहात्म्य
- जे जन सरन भजे वनवारी -सूरदास
- जे लोभी ते देहि कहा री -सूरदास
- जे लोभो ते देहि कहा री -सूरदास
- जेंवत कान्ह नंद इकठौरे -सूरदास
- जेंवत छाक गाइ बिसराई -सूरदास
- जेंवत देव नंद सुख पायौ -सूरदास
- जेंवत स्याम नंद की कनियाँ -सूरदास
- जेवत देव नंद सुख पायौ -सूरदास
- जेहि बिनु जाने कछुहि नहिं -रसखान
- जै गोबिंद माधव मुकुंद हरि -सूरदास
- जै गोविद माघव मुकुंद हरि -सूरदास
- जै जै धुनि तिहुँ लोक भई -सूरदास
- जै लौ माई हौ जीवन भरि जीवौ -सूरदास
- जै लौं माई हौं जीवन भरि जीवौं -सूरदास
- जैगीषव्य
- जैगीषव्य का असित-देवल को समत्वबुद्धि का उपदेश
- जैत्र
- जैत्र (बहुविकल्पी)
- जैत्र (रथ)
- जैत्र (सेवक)
- जैमिनि
- जैमिनी
- जैसी-जैसी बातैं करैं कहत न आवै री -सूरदास
- जैसे कहे स्याम है तैसे -सूरदास
- जैसे तुम गज कौ पाउं छुड़ायौ -सूरदास
- जैसे भयौ कूर्म-अवतार -सूरदास
- जैसे भयौ कूर्म-अवतारै कहौ सुनौ सो अब चित धार -सूरदास
- जैसें भयौ बामन अवतार -सूरदास
- जैसै जन की पैज न जाइ -सूरदास
- जैसै राखहु तैसैं रहौं -सूरदास
- जैसैं भयौ कूर्म-अवतार -सूरदास
- जैसैं भयौ बामन अवतार -सूरदास
- जैसौ कियौ तुम्हारै प्रभु अलि -सूरदास
- जैहै कहाँ मोतिसरि मोरी -सूरदास
- जो कोउ प्रीति करै पद-अंवुज -सूरदास
- जो घट अंतर हरि सुमिरै -सूरदास
- जो चाहो तुम, जैसे चाहो -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जो जन ऊधौ मोहिं न बिसारत -सूरदास
- जो तुम तोड़ो पिया मैं नहिं तोड़ूँ -मीराँबाई
- जो परतन्त्र सदा प्रिय-सुख के -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जो पै कोउ मधुबन लौ जाइ -सूरदास
- जो पै तुमहीं बिरद बिसारौ -सूरदास
- जो पै नंद सुवन -सूरदास
- जो पै नंदसुवन ब्रज होते -सूरदास
- जो पै मुरली को हित मानौ -सूरदास
- जो पै यहै प्रेम की बात -सूरदास
- जो मेरे भक्तनि दुखदाई -सूरदास
- जो मेरे भक्तलि दुखदाई -सूरदास
- जो लौं मन-कामना न छूटैं -सूरदास
- जो सुख ब्रज मैं एक घरी -सूरदास
- जो सुख स्याम करत वृंदावन -सूरदास
- जो सुख स्याम प्रिया सँग कीन्हौ -सूरदास
- जो सुख होत गुपालहि गाऐं -सूरदास
- जो हरि करै सो होइ2 -सूरदास
- जो हरि करै सो होइ -सूरदास
- जोग उलटि लै जाहु -सूरदास
- जोग की गति सुनत मेरै -सूरदास
- जोग जुगुति जद्यपि हम लीनी -सूरदास
- जोग ज्ञान की बातै ऊधौ -सूरदास
- जोग ठगौरी ब्रज न बिकहै -सूरदास
- जोग भलौ जौ मोहन पावै -सूरदास
- जोग सँदेसौ ब्रज मैं लावत -सूरदास
- जोग सौ कौनै हरि पाए -सूरदास
- जोगबिधि मधुबन सिखिहै जाइ -सूरदास
- जोगिया जी आवो ने या देस -मीराँबाई
- जोगिया जी छाइ परदेस -मीराँबाई
- जोगिया ने कहज्यो जी आदेस -मीराँबाई
- जोगिया मैं कहज्यो जी आदेस -मीराँबाई
- जोगिया से प्रीत कियां दुख होइ -मीराँबाई
- जोगिया सों प्रीत कियाँ दुख होय -मीराँबाई
- जोगियाजी निसिदिन जोऊं बाट -मीराँबाई
- जोगियारी प्रोतड़ी है दुखड़ा रो मूल -मीराँबाई
- जोगियारी सूरत मन में बसी -मीराँबाई
- जोगियो आँणि मिल्यो अनुरागी -मीराँबाई
- जोगी आ जा आ जा -मीराँबाई
- जोगी मत जा मत जा मत जा -मीराँबाई
- जोगी म्हाँने, दरस दियाँ सुख होइ -मीराँबाई
- जोगी म्हांने, दरस दियां सुख होइ -मीराँबाई
- जोगी होइ सो जोग बखानै -सूरदास
- जोतिक
- जोबन-दान लेउंगौ तुमसौं -सूरदास
- जोरति छाक प्रेम सौं मैया -सूरदास
- जोसीड़ा ने लाख बधाई रे -मीराँबाई
- जौ अपनौ मन हरि सौं रांचै -सूरदास
- जौ कोउ विरहिनि कौ दुख जानै -सूरदास
- जौ गिरिधर मुरली हौ पाऊँ -सूरदास
- जौ जग और बियौ कोउ पाऊँ
- जौ जग और बियौ कोउ पाऊँ -सूरदास
- जौ जागौ तो कोऊ नाही -सूरदास
- जौ जागौं तौ कोऊ नाहीं -सूरदास
- जौ तुम सुनहुँ जसोदा गोरी -सूरदास
- जौ तुमहीं हौ सबके राजा -सूरदास
- जौ तुमहीं हौं सबके राजा -सूरदास
- जौ तू नैंकेहूँ उड़ि -सूरदास
- जौ तू नैकेहूँ उड़ि जाहि -सूरदास
- जौ तू राम-नाम-धन धरतौ -सूरदास
- जौ तौ कर पग नहीं कहौ -सूरदास
- जौ देखै द्रुम के तरै -सूरदास
- जौ देखैं द्रुम के तरैं -सूरदास
- जौ देखौ तो प्रीति करौ री -सूरदास
- जौ देखौं तो प्रीति करौं री -सूरदास
- जौ पै इहै हुती उनकै मन -सूरदास
- जौ पै कान्ह और ग़ति जानी -सूरदास
- जौ पै कृष्न हमहिं जिय भावत -सूरदास
- जौ पै कोउ माधौ -सूरदास
- जौ पै कोउ माधौ सौ कहै -सूरदास
- जौ पै प्रभु करुना के आले -सूरदास
- जौ पै मुरली कौ हित मानौ -सूरदास
- जौ पै मोहिं कान्ह जिय भावै -सूरदास
- जौ पै यहै बिचार परी -सूरदास
- जौ पै राखति हौ पहिचानि -सूरदास
- जौ पै राखति हौ पहिचानी -सूरदास
- जौ पै लै जाइ कोउ -सूरदास
- जौ पै लै जाइ कोउ मोहि द्वारिका कै देस -सूरदास
- जौ पै हिरदै माँझ हरी -सूरदास
- जौ पै हिलग हिए मैं है री -सूरदास
- जौ प्रभु मेरे दोष बिचारैं -सूरदास
- जौ बिधना अपबस करि पाऊ -सूरदास
- जौ मन कबहुँक हरि कौं जाँचैं -सूरदास
- जौ मन कबहुँक हरि कौं जाँचैं। -सूरदास
- जौ मेरे दीनदयाल न होते -सूरदास
- जौ लौं सत सरूप नहिं सूझत -सूरदास
- जौ सखि नाहिंनै ब्रज स्याम -सूरदास
- जौ हम भले बुरे तौ तेरे -सूरदास
- जौ हरि-व्रत निज उर न धरैगौ -सूरदास
- जौनसारी जनजाति
- ज्ञाति (महाभारत संदर्भ)
- ज्ञान
- ज्ञान-विज्ञान एवं भगवान की व्यापकता का वर्णन
- ज्ञान (धर्म पुत्र)
- ज्ञान (बहुविकल्पी)
- ज्ञान (महाभारत संदर्भ)
- ज्ञान का साधन और उसकी महिमा
- ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत की उत्पत्ति का वर्णन
- ज्ञान के साधन व ज्ञानी के लक्षण और महिमा
- ज्ञान जोग अबलनि अहीरि सौ -सूरदास
- ज्ञान बिना कहुँवै सुख नाहीं -सूरदास
- ज्ञान विज्ञान सहित जगत की उत्पत्ति का वर्णन
- ज्ञान सहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का वर्णन
- ज्ञान से ब्रह्म की प्राप्ति
- ज्ञानजृम्भनकारिणी
- ज्ञानद
- ज्ञानदाता
- ज्ञानमय उपदेश के पात्र का निर्णय
- ज्ञानवान संन्यासी का प्रशंसा
- ज्ञानवान संन्यासी की प्रशंसा
- ज्ञानी-मुक्त, सिद्ध-योगी कोई -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ज्ञानी पुरुष की स्थिति तथा अध्वर्यु और यति का संवाद
- ज्ञानेश्वरी
- ज्ञानेश्वरी पृ. 1
- ज्ञानेश्वरी पृ. 10
- ज्ञानेश्वरी पृ. 100
- ज्ञानेश्वरी पृ. 101
- ज्ञानेश्वरी पृ. 102
- ज्ञानेश्वरी पृ. 103
- ज्ञानेश्वरी पृ. 104
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- ज्ञानेश्वरी पृ. 106
- ज्ञानेश्वरी पृ. 107
- ज्ञानेश्वरी पृ. 108
- ज्ञानेश्वरी पृ. 109
- ज्ञानेश्वरी पृ. 11
- ज्ञानेश्वरी पृ. 110
- ज्ञानेश्वरी पृ. 111
- ज्ञानेश्वरी पृ. 112
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- ज्ञानेश्वरी पृ. 13
- ज्ञानेश्वरी पृ. 130
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- ज्ञानेश्वरी पृ. 2
- ज्ञानेश्वरी पृ. 20
- ज्ञानेश्वरी पृ. 200
- ज्ञानेश्वरी पृ. 201
- ज्ञानेश्वरी पृ. 202
- ज्ञानेश्वरी पृ. 203
- ज्ञानेश्वरी पृ. 204
- ज्ञानेश्वरी पृ. 205
- ज्ञानेश्वरी पृ. 206
- ज्ञानेश्वरी पृ. 207
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- ज्ञानेश्वरी पृ. 212
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