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('<div class="bgmbdiv"> <h3 style="text-align:center">'''श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) |
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<h4 style="text-align:center">'''भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन'''</h4> | <h4 style="text-align:center">'''भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन'''</h4> | ||
− | [[भीष्म पितामह]] की बात सुनकर [[दुर्योधन]] उदास हो गया। भीष्म ने कहा-'दुर्योधन! यह क्रोध करने का समय नहीं है। अर्जुन ने मुझे जिस प्रकार जल पिलाया, तुमने अपनी आँखों से उसे देखा है। कौन है पृथ्वी पर ऐसा काम करने वाला वीर? [[श्रीकृष्ण]] और अर्जुन के अतिरिक्त सम्पूर्ण दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञाता और कौन है? उन्हें कोई नहीं जीत सकता। उनसे मेल करने में ही तुम्हारी और सारे जगत की भलाई है। जब तक तुम्हारे प्रिय परिजन जीवित हैं, तभी तक सन्धि कर लेना उत्तम है। अर्जुन ने जो कुछ किया है वह तुम्हारी सावधानी के लिये पर्याप्त है। मेरी मृत्यु ही इस हत्याकाण्ड का अन्त हो। पाण्डवों को आधा राज्य दे दो। बैर भूलकर सब लोग प्रेम से गले मिलो। तुम लोग इस समय जिस मार्ग से चल रहे हो, वह सर्वनाश का मार्ग है।' भीष्म इतना कहकर चुप हो गये। सब लोग उनसे अनुमति लेकर अपने-अपने स्थान पर चले गये। | + | [[भीष्म पितामह]] की बात सुनकर [[दुर्योधन]] उदास हो गया। भीष्म ने कहा- 'दुर्योधन! यह क्रोध करने का समय नहीं है। [[अर्जुन]] ने मुझे जिस प्रकार जल पिलाया, तुमने अपनी आँखों से उसे देखा है। कौन है [[पृथ्वी]] पर ऐसा काम करने वाला वीर? [[श्रीकृष्ण]] और अर्जुन के अतिरिक्त सम्पूर्ण दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञाता और कौन है? उन्हें कोई नहीं जीत सकता। उनसे मेल करने में ही तुम्हारी और सारे जगत की भलाई है। जब तक तुम्हारे प्रिय परिजन जीवित हैं, तभी तक सन्धि कर लेना उत्तम है। अर्जुन ने जो कुछ किया है वह तुम्हारी सावधानी के लिये पर्याप्त है। मेरी मृत्यु ही इस हत्याकाण्ड का अन्त हो। पाण्डवों को आधा राज्य दे दो। बैर भूलकर सब लोग प्रेम से गले मिलो। तुम लोग इस समय जिस मार्ग से चल रहे हो, वह सर्वनाश का मार्ग है।' भीष्म इतना कहकर चुप हो गये। सब लोग उनसे अनुमति लेकर अपने-अपने स्थान पर चले गये। |
− | जब सब लोग चले गये, तब भीष्म पितामह के पास [[कर्ण]] आया। कर्ण की आँखों में आँसू भर आये। उसने गद्गद स्वर से कहा-'पितामह! मैं राधा का पुत्र कर्ण हूँ। मेरे निरपराध होने पर भी आप मुझसे लाग-डांट रखा करते थे।' भीष्म ने कर्ण की बात सुनकर धीरे-धीरे आँख खोलीं। वहाँ से रक्षकों को हटा दिया और एक हाथ से पकड़कर उसे अपने हृदय से लगा लिया। उन्होंने कहा-'प्यारे कर्ण! आओ, आओ तुमने इस समय मेरे पास आकर बड़ा उत्तम कार्य किया है। वीर! मुझसे देवर्षि नारद और महर्षि व्यास ने कहा है कि तुम राधा के पुत्र नहीं, [[कुन्ती]] के पुत्र हो। तुम्हारे पिता अधिरथ नहीं हैं, साक्षात् भगवान् सूर्य हैं। मैं सत्य-सत्य कहता हूँ; मेरे हृदय में तुम्हारे प्रति तनिक भी द्वेषभाव नहीं है। मैंने जान-बूझकर तुम्हारे प्रति कटु वचनों का प्रयोग इसलिये किया है कि तुम्हारा तेज घटे। संसार में तुम्हारे समान पराक्रमी बहुत ही कम हैं। तुम ब्रह्मनिष्ठ, शूर और श्रेष्ठ दानी हो। तुम्हारे उत्कर्ष से कौरवों का घमण्ड और बढ़ेगा तथा वे पाण्डवों से अधिकाधिक द्वेष करेंगे इसीलिये मैं तुम्हारा अपमान किया करता था। मगधराज जरासन्ध भी तुम्हारे सामने नहीं ठहर सकते थे। इस समय यदि तुम मुझे प्रसन्न करना चाहते हो तो एक काम करो। तुम पाण्डवों से मिल जाओ। फिर युद्ध बंद हो जायेगा, मेरी मृत्यु से ही यह बैर की आग बुझ जायेगी और प्रजा में शान्ति का विस्तार होगा।' | + | जब सब लोग चले गये, तब भीष्म पितामह के पास [[कर्ण]] आया। कर्ण की आँखों में आँसू भर आये। उसने गद्गद स्वर से कहा-'पितामह! मैं राधा का पुत्र कर्ण हूँ। मेरे निरपराध होने पर भी आप मुझसे लाग-डांट रखा करते थे।' भीष्म ने [[कर्ण]] की बात सुनकर धीरे-धीरे आँख खोलीं। वहाँ से रक्षकों को हटा दिया और एक हाथ से पकड़कर उसे अपने हृदय से लगा लिया। उन्होंने कहा-'प्यारे कर्ण! आओ, आओ तुमने इस समय मेरे पास आकर बड़ा उत्तम कार्य किया है। वीर! मुझसे देवर्षि नारद और [[महर्षि व्यास]] ने कहा है कि तुम राधा के पुत्र नहीं, [[कुन्ती]] के पुत्र हो। तुम्हारे पिता अधिरथ नहीं हैं, साक्षात् भगवान् सूर्य हैं। मैं सत्य-सत्य कहता हूँ; मेरे हृदय में तुम्हारे प्रति तनिक भी द्वेषभाव नहीं है। मैंने जान-बूझकर तुम्हारे प्रति कटु वचनों का प्रयोग इसलिये किया है कि तुम्हारा तेज घटे। संसार में तुम्हारे समान पराक्रमी बहुत ही कम हैं। तुम ब्रह्मनिष्ठ, शूर और श्रेष्ठ दानी हो। तुम्हारे उत्कर्ष से कौरवों का घमण्ड और बढ़ेगा तथा वे पाण्डवों से अधिकाधिक द्वेष करेंगे इसीलिये मैं तुम्हारा अपमान किया करता था। मगधराज [[जरासन्ध]] भी तुम्हारे सामने नहीं ठहर सकते थे। इस समय यदि तुम मुझे प्रसन्न करना चाहते हो तो एक काम करो। तुम पाण्डवों से मिल जाओ। फिर युद्ध बंद हो जायेगा, मेरी मृत्यु से ही यह बैर की आग बुझ जायेगी और प्रजा में शान्ति का विस्तार होगा।' |
| style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 80]] | | style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 80]] |
15:34, 31 मार्च 2018 के समय का अवतरण
vishay soochi
shri bhishm pitamah -svami akhandanand sarasvati
bhishm ke dvara shrikrishn ka mahatmy kathan, bhishm ki pratijna-raksha ke liye pun: bhagavanh ka pratijna bhang, bhishm ka ran mean patanbhishm pitamah ki bat sunakar duryodhan udas ho gaya. bhishm ne kaha- 'duryodhan! yah krodh karane ka samay nahian hai. arjun ne mujhe jis prakar jal pilaya, tumane apani aankhoan se use dekha hai. kaun hai prithvi par aisa kam karane vala vir? shrikrishn aur arjun ke atirikt sampoorn divy astr-shastroan ka jnata aur kaun hai? unhean koee nahian jit sakata. unase mel karane mean hi tumhari aur sare jagat ki bhalaee hai. jab tak tumhare priy parijan jivit haian, tabhi tak sandhi kar lena uttam hai. arjun ne jo kuchh kiya hai vah tumhari savadhani ke liye paryapt hai. meri mrityu hi is hatyakand ka ant ho. pandavoan ko adha rajy de do. bair bhoolakar sab log prem se gale milo. tum log is samay jis marg se chal rahe ho, vah sarvanash ka marg hai.' bhishm itana kahakar chup ho gaye. sab log unase anumati lekar apane-apane sthan par chale gaye. jab sab log chale gaye, tab bhishm pitamah ke pas karn aya. karn ki aankhoan mean aansoo bhar aye. usane gadgad svar se kaha-'pitamah! maian radha ka putr karn hooan. mere niraparadh hone par bhi ap mujhase lag-daant rakha karate the.' bhishm ne karn ki bat sunakar dhire-dhire aankh kholian. vahaan se rakshakoan ko hata diya aur ek hath se pak dakar use apane hriday se laga liya. unhoanne kaha-'pyare karn! ao, ao tumane is samay mere pas akar b da uttam kary kiya hai. vir! mujhase devarshi narad aur maharshi vyas ne kaha hai ki tum radha ke putr nahian, kunti ke putr ho. tumhare pita adhirath nahian haian, sakshath bhagavanh soory haian. maian saty-saty kahata hooan; mere hriday mean tumhare prati tanik bhi dveshabhav nahian hai. maianne jan-boojhakar tumhare prati katu vachanoan ka prayog isaliye kiya hai ki tumhara tej ghate. sansar mean tumhare saman parakrami bahut hi kam haian. tum brahmanishth, shoor aur shreshth dani ho. tumhare utkarsh se kauravoan ka ghamand aur badhega tatha ve pandavoan se adhikadhik dvesh kareange isiliye maian tumhara apaman kiya karata tha. magadharaj jarasandh bhi tumhare samane nahian thahar sakate the. is samay yadi tum mujhe prasann karana chahate ho to ek kam karo. tum pandavoan se mil jao. phir yuddh band ho jayega, meri mrityu se hi yah bair ki ag bujh jayegi aur praja mean shanti ka vistar hoga.' |
tika tippani aur sandarbh
sanbandhit lekh
kram sankhya | vishay | prishth sankhya |
varnamala kramanusar lekh khoj