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- झगरिनि तैं हौं बहुत खिझाई -सूरदास
- झर्झर
- झाई न मिटत न पाई -सूरदास
- झिरकि कै नारि, दै गागि गिरिधारि तब -सूरदास
- झिरकि कै नारि -सूरदास
- झिल्लिक
- झिल्लीबभ्रु
- झुक आई बदरिया सावन की -मीराँबाई
- झुनक स्याम की पैजनियाँ -सूरदास
- झुलावत निज कर नंद-किसोर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- झुलावति स्यामा स्याम-कुमार -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- झूँमक सारी तन गोरै हो -सूरदास
- झूँमक सारी तन गोरैं हो -सूरदास
- झूठहिं सुतहिं लगावतिं खोरि -सूरदास
- झूठी बात कहा मैं जानौं -सूरदास
- झूठी बात न होति भलाई -सूरदास
- झूठे ही लगि जनम गँवायौ
- झूठे ही लगि जनम गँवायौ -सूरदास
- झूठेहिं मोहिं लगावति ग्वारि -सूरदास
- झूर रहे दृग रूप-दरस कौं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- झूलत अभिराम स्याम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- झूलत कुंजनि प्रेम हिंडोरैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- झूलत नंदनंदन डोल -सूरदास
- झूलत फूल हिंडोरे स्याम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- झूलत राधामोहन -नंददास
- झूलत सघन कुंज पिय-प्यारी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- झूलत सुंदर जुगल किसोर -सूरदास
- झूलत स्याम स्यामा संग -सूरदास
- झूलत हरित कुंज पिय-प्यारी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- झूलन आईं रंग हिंडोरैं -सूरदास
- झूलन आईं रंग हिडोरै -सूरदास
- झूलहिं तहाँ ब्रजसुंदरी रति रूप -सूरदास
- टरति न टारै छबि -सूरदास
- टरति न टारैं छबि -सूरदास
- टिट्टिभ
- टूट गया तब मनका बन्धन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ठकुरायत गिरिधर की सांची -सूरदास
- ठगति फिरति ठगिनी तुम नारि -सूरदास
- ठाकुरजी की शयन झाँकी
- ठाड़ी कुँवरि राधिका लोचन मीचत -सूरदास
- ठाढ़ी कृष्न-कृष्न यौं बोलै -सूरदास
- ठाढ़ी देखी नंददुवारै हौ -सूरदास
- ठाढ़ी हो ब्रज खोरी ढोटा कौन कौ -सूरदास
- ठाढ़े देखत हैं ब्रजवासी -सूरदास
- ठाढ़े नंदद्वार गुपाल -सूरदास
- ठाढ़े रहौ आँगनहीं हो पिय -सूरदास
- ठाढ़े स्याम जमुना तीर -सूरदास
- ठाढ़े ह्वै एक पाइ रहत तनु त्रिभंग -सूरदास
- ठाढी कृष्ण-कृष्ण यौं बोलै -सूरदास
- ठाढे नंदद्वार गुपाल -सूरदास
- ठाढे रहौ आँगनही हो पिय -सूरदास
- ठाढे़ स्याम जमुना तीर -सूरदास
- ठाढे़ ह्वै एक पाइ रहत तनु त्रिभंग -सूरदास
- ठाढ़ी अजिर, जसोदा अपनैं -सूरदास
- डगमगात ऐंड़ात जँभावत आई -सूरदास
- डगमगात ऐडात जँभावत आई -सूरदास
- डफ बाजन लागे हेली -सूरदास
- डम्बर
- डरें नहीं कोई भी मुझसे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- डसी री स्याम भुअंगम कारे -सूरदास
- डाकिनियाँ
- डाकिनी
- डाकू भगत
- डाकौर
- डारि गयो मनमोहन पासी -मीराँबाई
- डिण्डिक
- डिम्भक
- डुण्डुभ
- डुण्डुभ की आत्मकथा
- डोल देखि व्रजवासी फूलै -सूरदास
- डोल देखि व्रजवासी फूलैं -सूरदास
- डोल माई झूलत हैं ब्रजनाथ -परमानंददास
- डोलत बाँकी कुंज गली -सूरदास
- डोलत महल महल इहिं टहलनि -सूरदास
- ढाढ़ी दान-मान के भाई -सूरदास
- ढाढी तै पढि नंद रिझायौ -सूरदास
- ढीठ कन्हाई बोलि न जानै -सूरदास
- ढीठ भए ये डोलत हैं -सूरदास
- ढोटा कौन कौ यह री -सूरदास
- ढोटा नंद कौ यह री -सूरदास
- ढोलक
- तंगण
- तंगण (बहुविकल्पी)
- तंगण देश
- तंजोर चित्रकला
- तंजौर चित्रकला
- तंतिपाल
- तंत्र
- तंसु
- तउ गुपाल गोकुल -सूरदास
- तऊ गँवारिं अहीरी -सूरदास
- तऊ गुपाल गोकुल के वासी -सूरदास
- तऊ न गोरस छाँड़ि दियौ -सूरदास
- तक्ष (भरत पुत्र)
- तक्षक
- तक्षक का इंद्र की शरण में जाना
- तक्षक द्वारा कुण्डलों का अपहरण
- तक्षक नाग
- तक्षक नाग और कश्यप
- तक्षशिला
- तजौ नंद-लाल अति निठुरई गहि -सूरदास
- तजौ मन हरि बिमुखनि कौ संग -सूरदास
- तड़ित्प्रभा
- तडित्प्रभा
- तत वाद्य
- तत्सुख-सुखी त्यागमय अनुपम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तदनन्तर आकाश स्थित -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तन कौ कन-कन मेरौ होवै -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तन मन धन अर्पन कियौ -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तन मन नारि डारतिं वारि -सूरदास
- तन सिंगार कछू देखति नहिं -सूरदास
- तनक कनक की दोहनी -सूरदास
- तनक दै री माइ माखन -सूरदास
- तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर -मीराँबाई
- तनक हरि चितवौजी मोरी ओर -मीराँबाई
- तनय
- तनवाल
- तनु
- तनु बिष रह्यौ है छहरि -सूरदास
- तनु मुनि का वीरद्युम्न को आशा के स्वरूप का परिचय देना
- तन्तिपाल
- तन्तु
- तन्तुमान
- तन्त्र
- तन्दुलिकाश्रम
- तप
- तप (अग्नि)
- तप (बहुविकल्पी)
- तप (महाभारत संदर्भ)
- तप की प्रशंसा तथा गृहस्थ के उत्तम कर्तव्य का निर्देश
- तप की महिमा
- तप की श्रेष्ठता
- तपती
- तपती और संवरण की बातचीत
- तपन
- तपन लाग्यौ घाम, परत अति धूप भैया -नंददास
- तपस्या
- तपस्या का प्रभाव
- तपस्वी
- तपस्वी ऊँट के आलस्य का कुपरिणाम और राजा का कर्तव्य
- तपस्वी तथा स्वधर्मपरायण ब्राह्मणों का माहात्म्य
- तपस्वी श्रीकृष्ण के पास ऋषियों का आना
- तपस्वी सुवर्ण और मनु का संवाद
- तपोबल की श्रेष्ठता व दृढ़तापूर्वक स्वधर्मपालन का आदेश
- तपोलोक
- तपोवन और कण्व के आश्रम का वर्णन
- तप्तकुंड
- तप्तकुण्ड
- तप्तक्षारोदकुण्ड
- तप्तपाषाणकुंड
- तप्तपाषाणकुण्ड
- तप्तसुराकुंड
- तप्तसुराकुण्ड
- तप्तसूर्मिकुंड
- तप्तसूर्मिकुण्ड
- तब अंगद यह बचन कह्यौ -सूरदास
- तब अंगद यह वचन कह्यौ -सूरदास
- तब अक्रूर कहत नृप आगै -सूरदास
- तब अक्रूर कहत नृप आगैं -सूरदास
- तब इक सखी प्रियतम कहति -सूरदास
- तब ऊधौ हरि निकट बुलायौ -सूरदास
- तब काहे कौ भए उपकारी -सूरदास
- तब काहे कौं भए -सूरदास
- तब तक डोरि लगाइ -सूरदास
- तब तुम मेरै काहे कौ आए -सूरदास
- तब तू मारिबोई करति -सूरदास
- तब तू मोरिबोई करति -सूरदास
- तब तै इन सबहिनि सचु पायौ -सूरदास
- तब तै छीन सरीर सुबाहु -सूरदास
- तब तै नैन अनाथ भए -सूरदास
- तब तै नैन रहे इकटकही -सूरदास
- तब तै बहुरि न कोऊ आयौ -सूरदास
- तब तै मिटे सब आनंद -सूरदास
- तब तै मृगनि चौकरी भूली -सूरदास
- तब तैं गोबिंद क्यौं न सँभारे -सूरदास
- तब तैं नैन अनाथ भए -सूरदास
- तब तैं नैन रहे इकटकहीं -सूरदास
- तब तैं बहुरि न कोऊ -सूरदास
- तब तैं बांधे ऊखल आनि -सूरदास
- तब तैं मिटे सब आनंद -सूरदास
- तब तैं मृगनि चौकरी भूली -सूरदास
- तब तैं मेरौ ज्यौ न रहि सकत -सूरदास
- तब देत भांवरि कुंज मंडप 2 -सूरदास
- तब न बिचारी ही यह बात -सूरदास
- तब नागरि जिय गर्ब बढ़ायौ -सूरदास
- तब नागरि जिय गर्व बढ़ायौ -सूरदास
- तब नागरि मन हरष बढ़ायौ -सूरदास
- तब नागरि मन हरष भई -सूरदास
- तब नागरि रिस भूलि गई -सूरदास
- तब नागरी कहति सखियनि सौ एते पर ए सौह करै -सूरदास
- तब नागरी कहति सखियनि सौं एते पर ए सौंह करैं -सूरदास
- तब नारद कर जोरि कह्यौ -सूरदास
- तब बसुदेव हरषित गात -सूरदास
- तब बोले हरि नंद सौं -सूरदास
- तब राधा इक भाव बतावति -सूरदास
- तब राधा सखियनि पैं आई -सूरदास
- तब राधा सखियानि पैं आई -सूरदास
- तब रिस करिकै मोहि बुलायौ -सूरदास
- तब रिस करिकै मोहिं बुलायौ -सूरदास
- तब रिस कियौ महावत भारि -सूरदास
- तब लगि सबै सयान रहै -सूरदास
- तब लगि हों बैकुंठ न जैहों -सूरदास
- तब विलंब नहिं कियौ -सूरदास
- तब सत कलप पलक सम जाते -सूरदास
- तब हरि अर्जुन पहुँचे तहाँ -सूरदास
- तब हरि कौं टेरति नंदरानी -सूरदास
- तब हरि भए अंतरधान -सूरदास
- तब हरि यह चतुरई करी -सूरदास
- तब हरि रच्यौ दूती रूप -सूरदास
- तब हरि हरयौ बिधि कौ गर्ब -सूरदास
- तब हरि हरयौ विधि कौ गर्व -सूरदास
- तब हौं नगर अजोध्या जैहौं -सूरदास
- तबतै बहुरि दरस नहिं दीन्हौ -सूरदास
- तबहिं उपँगसुत आइ गए -सूरदास
- तबहिं जसोदा माखन ल्याई -सूरदास
- तबहिं स्याम इक बुद्धि उपाई -सूरदास
- तबही तै भयौ हरष हिये री -सूरदास
- तबही मेरौ मन चोरयौ री -सूरदास
- तबहीं तैं भयौ हरष हिये री -सूरदास
- तबहीं तैं हरि हाथ बिकानी -सूरदास
- तम
- तम ऋषि
- तम गुण
- तम गुणों का वर्णन
- तमसा
- तमसा नदी
- तमो गुण
- तमोघ्न
- तमोनुद
- तमोऽन्तकृत
- तरंतुक
- तरकश
- तरकस
- तरखान
- तरणि तनया तीर आवत हें प्रात समे -कृष्णदास
- तरनि तनया तट आवत है -कृष्णदास
- तरन्तुक
- तरपत नभ डरपत ब्रज-लोग -सूरदास
- तरल
- तरु तमाम गोपाल लाल बने -सूरदास
- तरु तमाल तरे त्रिभंगी -सूरदास
- तरु दोउ धरनि गिरे भहराइ -सूरदास
- तरुनी-मनि दच्छनि श्रीराधा -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तरुनी गई सब बिलखाइ -सूरदास
- तरुनी निरखि हरि-प्रति-अंग -सूरदास
- तरुनी स्याम रस मतवारि -सूरदास
- तरुनीं निकसि निकसि तट आईं -सूरदास
- तरू तमाल तरे त्रिभंगी कान्ह कुँवर -सूरदास
- तरू दोउ धरनि गिरे भहराइ -सूरदास
- तरूनी निरखि हरि-प्रति-अंग -सूरदास
- तरूनी स्याम रस मतवारि -सूरदास
- तर्क (महाभारत संदर्भ)
- तलत्र
- तलत्राण
- तलवार
- तलातल
- तव अनन्त आशा का दीपक -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तहँ स्याम सुंदर कमल -सूरदास
- तहँइ जाहु जह निसा बसे हो -सूरदास
- तहँइ जाहु जह निसा वसे हो -सूरदास
- तहँइ जाहु जहँ रैनि गँवाई -सूरदास
- तहँइ जाहु जहँ रैनि बसे हौ -सूरदास
- तहँइ जाहु जहँ रैनि रहे बसि -सूरदास
- तहँइ जाहु जहँ रैनि हुते -सूरदास
- ता कारन लछिमन सर लाग्यौक -सूरदास
- ताऊ
- ताकौ कहा निहोरौ हमकौ -सूरदास
- ताज बेगम
- ताडकायन
- ताड़का
- ताण्ड्य
- ताण्ड्य (ऋषि)
- ताण्ड्य (बहुविकल्पी)
- तात
- तात गोवर्धन पूजहु जाइ -सूरदास
- तात वचन रघुनाथ माथ धरि -सूरदास
- ताते श्री यमुने यमुने जु गावो -नंददास
- तातै अति मरियत अपसोसनि -सूरदास
- तातै जानि भजे बनवारी -सूरदास
- तातै तरकि कह्यौ बनमाली -सूरदास
- तातै तुम्हरौ भरोसौ आवै -सूरदास
- तातै द्वितिया और न कोइ2 -सूरदास
- तातै द्वितिया और न कोइ3 -सूरदास
- तातैं अति मरियत -सूरदास
- तातैं बिपति-उघारन गायौ -सूरदास
- तातैं मन इतनौ दुख पावत -सूरदास
- तातैं मुरली कै बस स्याम -सूरदास
- तातैं मुरली कैं बस स्याम -सूरदास
- तातैं विपति-उधारन गायौ -सूरदास
- तातैं सेइयै श्री जदुराई -सूरदास
- तापसवन
- तापसारण्य
- तामस
- तामस मनु
- ताम्रकुंड
- ताम्रकुण्ड
- ताम्रचूड़ा
- ताम्रजाक्ष
- ताम्रतप्त
- ताम्रद्वीप
- ताम्रपर्णी
- ताम्रपर्णी (नदी)
- ताम्रपर्णी (बहुविकल्पी)
- ताम्रपर्णी (बहुविकल्पी शब्द)
- ताम्रपर्णी नदी
- ताम्रलिप्तक
- ताम्रवती
- ताम्रा
- ताम्रा (नदी)
- ताम्रा (बहुविकल्पी)
- ताम्रारुण तीर्थ
- ताम्रारुणतीर्थ
- ताम्रावती
- ताम्रोष्ठ
- ताम्रौष्ठ
- तार
- तारक
- तारकासुर
- तारकासुर के भय से देवताओं का ब्रह्मा की शरण में जाना
- तारा
- तारा (बहुविकल्पी)
- तारा (बालि की पत्नी)
- तारा (बाली)
- तारा (बाली की पत्नी)
- तारा (बृहस्पति की पत्नी)
- ताराक्ष
- तार्क्ष्य
- तार्क्ष्य (ऋषि)
- तार्क्ष्य (काश्यप)
- तार्क्ष्य (बहुविकल्पी)
- तार्क्ष्यमुनि और सरस्वती का संवाद
- तालचर
- तालचिह्नो यदु
- तालजंघ
- तालजंघ (दानव)
- तालजंघ (बहुविकल्पी)
- तालजंघ (वत्स पुत्र)
- तालन पै ताल पै तमालन पै मालन पै -पद्माकर
- तालभुक
- तालवन
- तालाकट
- तिगर्तगण
- तितिक्षु
- तित्तिर
- तित्तिर (ऋषि)