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- नृत्य
- नृत्य कला
- नृत्य त स्याम नाना रंग -सूरदास
- नृत्यत अंग अभूषन बाजत -सूरदास
- नृत्यत स्याम नाना रंग -सूरदास
- नृत्यत स्याम स्यामा हेत -सूरदास
- नृत्यत है दोउ स्यामा-स्याम -सूरदास
- नृत्यत हैं दोउ स्यामा-स्याम -सूरदास
- नृत्यप्रिया
- नृप अजातशत्रु
- नृप ऐसी आवर्दा पाइ -सूरदास
- नृप कौ नाउं लेत ताही मुख -सूरदास
- नृप सुदच्छिन महादेव ध्यायौ -सूरदास
- नृप सेतुकृत
- नृपति बचन यह सबनि सुनायौ -सूरदास
- नृपति मन इहै विचार परयौ -सूरदास
- नृपति रहूगन कैं मन आई -सूरदास
- नृपति रहूगन कैं मन आई 2 -सूरदास
- नृपति रहूगन कैं मन आई 3 -सूरदास
- नृपतिरजक अंबरनृप धोवत -सूरदास
- नृपप्रेमकृत
- नृपानन्द-कारी
- नृपै पारिबर्ही
- नृपै संवृत
- नृपै संस्तुत
- नृपैर्मन्त्रकृत
- नृशंस अर्थात अत्यन्त नीच पुरुष के लक्षण
- नृसिंह अवतार
- नृसिंह अवतार की संक्षिप्त कथा
- नृसिंह जयंती
- नेता (कार्तिकेय)
- नेता (महाभारत संदर्भ)
- नेत्रमलकुण्ड
- नेपाल
- नेमहिं मैं हरि आइ रहेंगे -सूरदास
- नेमहिं मैं हरि आइ रहैंगे -सूरदास
- नेवले का सेरभर सत्तूदान को अश्वमेध यज्ञ से बढ़कर बताना
- नेह कारन श्री यमुने प्रथम आई -नंददास
- नेह न होइ पुरानी रे अलि -सूरदास
- नेहभरे नयनन्हि सों निरखत -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- नैंकु गोपालहिं मोकौं दै री -सूरदास
- नैंकु न मन तैं टरत कन्हाई -सूरदास
- नैंकु नहीं धर सौं मन लागत -सूरदास
- नैंकु नहीं भावत न्यारे री -सूरदास
- नैंकु रहौ, माखन द्यौं तुमकौं -सूरदास
- नैकपृष्ठ
- नैकहु सोच न काहू कीन्हौ -सूरदास
- नैकु नही भावत न्यारे री -सूरदास
- नैकु निकुंज कृपा करि आइयै -सूरदास
- नैगमेय
- नैगमेय (अग्नि पुत्र)
- नैगमेय (बहुविकल्पी)
- नैणा लोभी रे बहुरि सके नहिं आइ -मीराँबाई
- नैन आपने घर के री -सूरदास
- नैन उनींदे भए रँगराते -सूरदास
- नैन उनीदे भए रँगराते -सूरदास
- नैन करत घरही की चोरी -सूरदास
- नैन करे सुख, हम दुख पावैं -सूरदास
- नैन करैं सुख, हम दुख पावैं -सूरदास
- नैन कहै न मानत मेरे -सूरदास
- नैन कहैं न मानत मेरे -सूरदास
- नैन कोर हरि हेरि कै -सूरदास
- नैन खग स्याम नीकै पढ़ाए -सूरदास
- नैन खग स्याम नीकै पढाए -सूरदास
- नैन गए न फिरे री माई -सूरदास
- नैन गए री अति अकुलात -सूरदास
- नैन गए सु फिरे नहिं फेरि -सूरदास
- नैन घन घटत न एक घरी -सूरदास
- नैन चंचलता कीन्हे कहा -सूरदास
- नैन चपलता कहाँ गँवाई -सूरदास
- नैन तौ कहे मै नहीं मेरे -सूरदास
- नैन तौ कहे मैं नहीं मेरे -सूरदास
- नैन न मेरे हाथ रहे -सूरदास
- नैन निरखि अजहूँ न फिरे री -सूरदास
- नैन पर बहु लूटि मै -सूरदास
- नैन परे बहु लूटि मैं -सूरदास
- नैन परे रस-स्याम-सुधा मैं -सूरदास
- नैन परे हरि पाछै री -सूरदास
- नैन परे हरि पाछैं री -सूरदास
- नैन भए अधिकारी जाइ -सूरदास
- नैन भए बस मोहन तै -सूरदास
- नैन भए बस मोहन तैं -सूरदास
- नैन भए बोहित के काग -सूरदास
- नैन भए वोहित के काग -सूरदास
- नैन भए हरिही के -सूरदास
- नैन मिले हरि कौ ढरि भारी -सूरदास
- नैन मिले हरि कौं ढरि भारी -सूरदास
- नैन रँगीले चिहुर छबीले -सूरदास
- नैन लख्यो जब कुंजन तैं -रसखान
- नैन सफल अब भए हमारे -सूरदास
- नैन सलोने स्याम -सूरदास
- नैन स्यामसुख लूटत हैं -सूरदास
- नैन है री ये बटपारी -सूरदास
- नैन हैं री ये बटपारी -सूरदास
- नैनन नाध्यौ है झर -सूरदास
- नैनन नींद परत नहिं सजनी -सूरदास
- नैनन बनज बसाउरी -मीराँबाई
- नैनन बनज बसाउुंरी -मीराँबाई
- नैनन बनज बसाऊँ री -मीराँबाई
- नैननि उहै रूप जौ देखौ -सूरदास
- नैननि ऐसी बानि परी -सूरदास
- नैननि ऐसीयै कछु बानि -सूरदास
- नैननि कठिन बानि पकरी -सूरदास
- नैननि कोउ समुझावै री -सूरदास
- नैननि कौ मत सुनहु सयानी -सूरदास
- नैननि कौ री यहै सुहाइ -सूरदास
- नैननि कौं अब नहीं पत्याउँ -सूरदास
- नैननि कौं री यहै सुहाइ -सूरदास
- नैननि तै यह भई बड़ाई -सूरदास
- नैननि तै हरि आपुस्वारथी -सूरदास
- नैननि तैं यह भई बड़ाई -सूरदास
- नैननि तैं हरि आपुस्वारथी -सूरदास
- नैननि दसा करी यह मेरी -सूरदास
- नैननि देखिबे की ठौरि -सूरदास
- नैननि देखिवे की ठौरि -सूरदास
- नैननि ध्यान नंदकुमार -सूरदास
- नैननि नंदनंदन ध्यान -सूरदास
- नैननि नाध्यौ है झर -सूरदास
- नैननि निपट कठिनई ठानी -सूरदास
- नैननि निरखि वसीठी कीन्ही -सूरदास
- नैननि निरखि स्याम-स्वरूप -सूरदास
- नैननि निरखि हरि को रूप -सूरदास
- नैननि निरखि हरि कौ रूप -सूरदास
- नैननि नींद गई री निसि दिन -सूरदास
- नैननि प्रान चोरि लै दीने -सूरदास
- नैननि बानि परी नहिं नीकी -सूरदास
- नैननि भलौ मतौ ठहरायौ -सूरदास
- नैननि यह कुटेव पकरी -सूरदास
- नैननि साध नही सिराइँ -सूरदास
- नैननि साध नहीं सिराइँ -सूरदास
- नैननि साधै ई जु रही -सूरदास
- नैननि सिखवत हारि परी -सूरदास
- नैननि सौ झगरौ करिहौ री -सूरदास
- नैननि सौं झगरौ करिहौं री -सूरदास
- नैननि हरि कौ निठुर कराए -सूरदास
- नैननि हरि कौं निठुर कराए -सूरदास
- नैननि होड़ बदी बरषा सौ -सूरदास
- नैननि हौं समुझाइ रही -सूरदास
- नैना (माई) भूलैं अनंत न जात -सूरदास
- नैना अटके रूप मै -सूरदास
- नैना अटके रूप मैं -सूरदास
- नैना अतिही लोभ भरे -सूरदास
- नैना अतिहीं लोभ भरे -सूरदास
- नैना अब लागे पछतान -सूरदास
- नैना इहि ढँग परे -सूरदास
- नैना इहिं ढँग परे -सूरदास
- नैना उनही देखै जीवत -सूरदास
- नैना उनहीं देखैं जीवत -सूरदास
- नैना ऐसे हठी हमारे -सूरदास
- नैना ऐसे हैं बिसवासी -सूरदास
- नैना ओछे चोर अरी री -सूरदास
- नैना कह्यौ न मानै मेरौ -सूरदास
- नैना कह्यौ न मानैं मेरौ -सूरदास
- नैना कह्यौ मानत नाहिं -सूरदास
- नैना खोज परे है ऐसे -सूरदास
- नैना खोज परे हैं ऐसे -सूरदास
- नैना घूँघट मैं न समात -सूरदास
- नैना झगरत आइ कै मोसौं री माई -सूरदास
- नैना ढीठ अतिही भए -सूरदास
- नैना ढीठ अतिहीं भए -सूरदास
- नैना नहि आवै तुव पास -सूरदास
- नैना नहि आवैं तुव पास -सूरदास
- नैना नही सखी वै मेरे -सूरदास
- नैना नाहिंन कछू बिचारत -सूरदास
- नैना नाहिनै ये रहत -सूरदास
- नैना निपट बिकट छबि अटके -सूरदास
- नैना निपट विकट छवि अटके -सूरदास
- नैना नीकै उनहि रए -सूरदास
- नैना नीकैं उनहि रए -सूरदास
- नैना नैननि माँझ समाने -सूरदास
- नैना पंकज पंक खचे -सूरदास
- नैना बहुत भाँति हटके -सूरदास
- नैना बीधे दोऊ मेरे -सूरदास
- नैना भए अनाथ -सूरदास
- नैना भए अनाथ हमारे -सूरदास
- नैना भए पराए चेरे -सूरदास
- नैना भए प्रगटही चेरे -सूरदास
- नैना भए बजाइ गुलाम -सूरदास
- नैना भरे घर के चोर -सूरदास
- नैना माई भूलै अनंत न जात -सूरदास
- नैना मानअपमान सह्यौ -सूरदास
- नैना मानत नाहिंन बरज्यौ -सूरदास
- नैना मानत नाहिन बरज्यौ -सूरदास
- नैना मारेहूँ पर मारत -सूरदास
- नैना मेरे अटके री -सूरदास
- नैना मेरे तलफि तलफि भए राते -सूरदास
- नैना मेरे मिलि चले -सूरदास
- नैना मोकौ नही पत्याहिं -सूरदास
- नैना मोकौं नहीं पत्याहिं -सूरदास
- नैना रहै न मेरे हटकै -सूरदास
- नैना रहैं न मेरे हटकैं -सूरदास
- नैना लीनहरामी ये -सूरदास
- नैना लुब्धे रूप कौ -सूरदास
- नैना लुब्धे रूप कौं -सूरदास
- नैना लोनहरामी ये -सूरदास
- नैना लोभहिं लोभ भरे -सूरदास
- नैना सावन भादो जीते -सूरदास
- नैना सावन भादौं जीते -सूरदास
- नैना हरि अंगरूप लुब्धे री माई -सूरदास
- नैना हाथ न मेरै आली -सूरदास
- नैना हाथ न मेरैं आली -सूरदास
- नैमित्तिक
- नैमिष
- नैमिषारण्य
- नैमिषारण्य तीर्थ का वर्णन
- नैमिषीय तीर्थ
- नैर्ऋत
- नैर्ऋतास्त्र
- नैर्ऋत्य
- नैवेद्य
- नो लख गाय सुनी हम नंद के -रसखान
- नौकर्णी
- नौका हौं नाहीं लै आऊँ -सूरदास
- नौकाजीवी
- नौबंधन
- नौबन्धन
- न्यंकु
- न्यग्रोध
- न्यग्रोध (उग्रसेन पुत्र)
- न्यग्रोध (बहुविकल्पी)
- न्याय तजी स्यामा गोपाल -सूरदास
- न्याय तजो स्यामा गोपाल -सूरदास
- न्हात नंद सुधि करी स्याम की -सूरदास
- पंकज-नैनी जय राधे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- पंकजवन
- पंकजित
- पंकजित्
- पंकदिग्धांग
- पंक्तिदूषक ब्राह्मणों का वर्णन
- पंक्तिपावन ब्राह्मणों का वर्णन
- पंचक
- पंचकन्या
- पंचकर्पट
- पंचकष्ट
- पंचगण
- पंचचूड़ा
- पंचचूड़ा अप्सरा का नारद से स्त्री दोषों का वर्णन
- पंचजन
- पंचजन्य
- पंचजन्य शंख
- पंचतत्त्व
- पंचनद (महाभारत)
- पंचनद तीर्थ
- पंचबाण
- पंचभूतों के गुणों का विस्तार और परमात्मा की श्रेष्ठता का वर्णन
- पंचमहाभूतों के गुणों का विस्तारपूर्वक वर्णन
- पंचमहाभूतों द्वारा सुदर्शन द्वीप का संक्षिप्त वर्णन
- पंचमहायज्ञ का वर्णन
- पंचमी
- पंचमी (बहुविकल्पी)
- पंचमी नदी
- पंचयक्षा
- पंचवटी तीर्थ
- पंचवीर्य
- पंचशिख
- पंचशिख (बहुविकल्पी)
- पंचशिख (ब्रह्मा पुत्र)
- पंचश्रोतस
- पंचामृत
- पंचाल
- पंडवों का संदेश लेकर उलूक का लौटना
- पंडितक
- पंढरपुर
- पंथी इतनी कहियौ बात -सूरदास
- पक्षालिका
- पग घुँघुरू बाँध मीरा नाची, रे -मीराँबाई
- पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे -मीराँबाई
- पञ्चबाण
- पञ्चवक्त्र
- पञ्चशिख और जनक का संवाद
- पञ्चशिख के द्वारा मोक्षतत्त्व के विवेचन का वर्णन
- पटच्चर
- पटच्चर (जाति)
- पटच्चर (बहुविकल्पी)
- पटवासक
- पटह
- पटी
- पटुश
- पट्टराज्ञीभि आरात संस्तुत धनी
- पट्टिश अस्त्र
- पठवत जोग कछू जिय लाज न -सूरदास
- पढ़ौ भाइ, राम-मुकुंद-मुरारि -सूरदास
- पढौ भाइ, राम-मुकुंद ‘मुरारि -सूरदास
- पणव
- पण्डित (महाभारत संदर्भ)
- पण्डितक
- पण्ढरपुर
- पतंग (देवकी पुत्र)
- पतंग की गुडी उडावन लागे व्रजबाल -परमानंददास
- पतन
- पताका
- पताकी
- पताकी (बहुविकल्पी)
- पताकी (योद्धा)
- पताल
- पति
- पति-पत्नी का अध्यात्मविषयक संवाद
- पति (महाभारत संदर्भ)
- पतित नहीं जो होते जग में -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- पतित पावन हरि -सूरदास
- पतितपावन जानि सरन आयो -सूरदास
- पतियां मैं कैसे लिखूं -मीराँबाई
- पतिव्रता स्त्रियों के कर्तव्य का वर्णन
- पतिव्रता स्त्री और माता-पिता की सेवा का माहात्म्य
- पत्ति
- पत्ति (जनपद)
- पत्ति (बहुविकल्पी)
- पत्नी
- पत्रोर्ण
- पत्नी
- पथिक, कहियो हरि सौ यह बात -सूरदास
- पथिक कह्यौ ब्रज -सूरदास
- पथिक कह्यौ ब्रज जाइ -सूरदास
- पथिकृत
- पथिकृत्
- पद (महाभारत संदर्भ)
- पद रत्नाकर
- पदमावती
- पदाति
- पद्म
- पद्म-सौगन्धिक
- पद्म (अनुचर)
- पद्म (निधि)
- पद्म (बहुविकल्पी)
- पद्म (राजा)
- पद्म धर्यो जन ताप निवारण -परमानंददास
- पद्म पुराण
- पद्म सौगन्धिक
- पद्मक
- पद्मकेतन
- पद्मज
- पद्मनाभ
- पद्मनाभ (कृष्ण)
- पद्मनाभ (बहुविकल्पी)
- पद्मनाभ (महानाग)
- पद्मनेत्र
- पद्मपुराण
- पद्मसर
- पद्महार
- पद्मा
- पद्माकर
- पद्मावती
- पद्मावती (जयदेव पत्नी)
- पद्मावती (नदी)
- पद्मावती (बहुविकल्पी)