सभी पृष्ठ | पिछला पृष्ठ (युधिष्ठिर का अपशकुन देखना एवं यादवों के विनाश का समाचार सुनना) | अगला पृष्ठ (राणाँजी म्हारो काँई करसी -मीराँबाई) |
- रंकु
- रंग जी मन्दिर वृन्दावन
- रंग नाथ जी मन्दिर वृन्दावन
- रंग में उनके सराबोर हूँ मैं -गोकुलदास
- रंगजी मन्दिर वृन्दावन
- रंगदेवी
- रंगनाथ जी मंदिर, वृन्दावन
- रंगनाथ जी मंदिर वृन्दावन
- रंगनाथ जी मन्दिर, वृन्दावन
- रंगनाथ जी मन्दिर वृन्दावन
- रंगभरी रंगभरी रंग सूं भरीरी -मीराँबाई
- रंगभूमि आए अति नंदसुवन बारे -सूरदास
- रंगभूमिप्रवेशी
- रंगीली तीज गनगौर आज चलो भामिनी -कृष्णदास
- रंगेश्वर महादेव मथुरा
- रंचक चाखन देरी दह्यो -परमानंददास
- रंतिदेव
- रंभा
- रक्त नदी का वर्णन और पांडव महारथियों द्वारा कौरव सेना का विध्वंस
- रक्तकुण्ड
- रक्तमयी रणनदी का वर्णन
- रक्तांग
- रक्षक
- रक्षक को सम्मान का पात्र स्वीकार करना
- रक्षा बंधन को दिन आयो -परमानंददास
- रक्षिता
- रक्षोवाह
- रग भरि आए लाल बातैं कहौ अटपटी -सूरदास
- रघु
- रघु केवट
- रघुकुल प्रगटे हैं रघुबीर -सूरदास
- रघुनन्दन आगे नाचँगी -मीराँबाई
- रघुनन्दन आगे नाचूँगी -मीराँबाई
- रघुनाथ
- रघुनाथ दास गोस्वामी
- रघुनाथ पियारे, आजु रहौ -सूरदास
- रघुनाथदास
- रघुनाथदास की चैतन्यदेव से भेंट
- रघुनाथदास की पुरी यात्रा
- रघुनाथदास गोस्वामी
- रघुपति, जौ न इंद्रजित मारौं -सूरदास
- रघुपति, बेगि जनत अब कीजै -सूरदास
- रघुपति, मन संदेह न कीजै -सूरदास
- रघुपति अपनौ प्रन प्रतिपारयौ -सूरदास
- रघुपति कहि प्रिय नाम पुकारत -सूरदास
- रघुपति चित्त विचार-करयौ2 -सूरदास
- रघुपति चित्त विचार-करयौ -सूरदास
- रघुपति जबै सिंधु-तट आए -सूरदास
- रघुपति निरखि गोध सिर नायौ -सूरदास
- रङ्गकारप्रणाशी
- रचि रस रास स्याम सुजान -सूरदास
- रच्यौ रास रंग स्याम -सूरदास
- रच्यौ रास रंग स्याम सबहिन सुख दोन्हौ -सूरदास
- रज
- रज गुण
- रज गुणों का वर्णन
- रज रसाल लीला
- रजक मारि हरि प्रथम हीं नृप बसन लुटाए -सूरदास
- रजनी-मुख बन तैं बने आवत -सूरदास
- रजि
- रजो गुण
- रजोगुण के कार्य का वर्णन और उसके जानने का फल
- रटति कृष्न गोविंद हरि हरि मुरारी2 -सूरदास
- रटति कृष्न गोविंद हरि हरि मुरारी -सूरदास
- रटे जा राधे-राधे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रणछोड़
- रणछोड़ जी मंदिर, द्वारका
- रणनदी का वर्णन
- रणयज्ञ में प्राणोत्सर्ग की महिमा
- रणी
- रणोत्कट
- रतन-धन किये निछावर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रतनभूमि पर चलत बकैयाँ -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रता
- रति
- रति-संग्राम-बीर-रस माते -सूरदास
- रति-संग्राम-वीर-रस माते -सूरदास
- रति (अप्सरा)
- रति (देवी)
- रति (बहुविकल्पी)
- रति बाढ़ी गोपाल सौं -सूरदास
- रतिगुण
- रतीश
- रत्न जटित कनक थाल -चतुर्भुजदास
- रत्नमाला
- रत्नाकर कुंड, कोकिलावन
- रत्नाकर कुंड कोकिलावन
- रत्नाकर कुण्ड, कोकिलावन
- रत्नाकर कुण्ड कोकिलावन
- रथ
- रथ का मेला वृन्दावन
- रथ पर देखि हरिबलराम -सूरदास
- रथंतरी
- रथचित्रा
- रथध्वान
- रथन्तर
- रथन्तरी
- रथप्रभु
- रथवाहन
- रथसेन
- रथस्थ
- रथस्था
- रथाक्ष
- रथावर्त्त
- रथी
- रथी (कृष्ण)
- रथी (बहुविकल्पी)
- रथीपुत्ररूप
- रथोष्मा
- रन्तिदेव
- रबिया
- रभेणक
- रमइया बिनि यो जिवड़ौ दुख पावै -मीराँबाई
- रमइया बिनि यौ जिवड़ौ दुख पावै -मीराँबाई
- रमइया बिनि रहोइ न जाय -मीराँबाई
- रमठ
- रमण
- रमण वन
- रमणक
- रमणक, हिरण्यक, शृंगवान पर्वत तथा ऐरावतवर्ष का वर्णन
- रमणचीन
- रमस्याँ सादूड़ाँ री लार -मीराँबाई
- रमा
- रमानाथ
- रमेश
- रमेश धरानाथ
- रमैया बिन नींद न आवै, प्रेम की आँच ढुलावै -मीराँबाई
- रमैया बिन नींद न आवै -मीराँबाई
- रमैया मैं तो थारे रँग राती -मीराँबाई
- रम्भा
- रम्भाशुभोरु
- रम्यकवर्ष
- रम्यग्राम
- रम्या
- रवि
- रवि (देवता)
- रवि (बहुविकल्पी)
- रवि (राजकुमार)
- रवि (सूर्य)
- रवि सौ बिनय करति कर जोरे -सूरदास
- रवि सौं बिनय करतिं कर जोरे -सूरदास
- रवितनया को सलिल गंभीर -सूरदास
- रविबंसी भयौ रैवत राजा -सूरदास
- रश्मिवान
- रस को मिले चोप अपनी सो -सूरदास
- रस बस स्याम कीन्हो ग्वारि -सूरदास
- रसखान
- रसखान- अभिधा शक्ति
- रसखान- उपादान लक्षणा
- रसखान- जहदजहल्लक्षणा
- रसखान- धारावाहिकता
- रसखान- नादात्मकता
- रसखान- प्रयोजनवती लक्षणा
- रसखान- रूढ़ि लक्षणा
- रसखान- लक्षण लक्षणा
- रसखान- लक्षणा शक्ति
- रसखान- व्यंजना शक्ति
- रसखान का कला-पक्ष
- रसखान का दर्शन
- रसखान का प्रकृति वर्णन
- रसखान का भक्तिरस
- रसखान का भाव-पक्ष
- रसखान का रस संयोजन
- रसखान का वात्सल्य रस
- रसखान का शांतरस
- रसखान का श्रृंगार रस
- रसखान की अलंकार योजना
- रसखान की कविताएँ
- रसखान की छंद योजना
- रसखान की भक्ति-भावना
- रसखान की भाषा
- रसखान की साहित्यिक विशेषताएँ
- रसखान के मुक्तक
- रसखान व्यक्तित्व और कृतित्व
- रसना जुगल रसनिधि बोल -सूरदास
- रसमय, रसिक, रससुधा-सागर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रसमयी संग रसिक-बर राज -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रसस्थ
- रसस्वरूप श्रीकृष्ण परात्पर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रसाक्त
- रसाढ्य
- रसातल
- रसारक्तचित्त
- रसिक रसिकई जानि परी -सूरदास
- रसिक राधे बोली नंदकुमार -सूरदास
- रसिक सिरोमनि ढोरि लगावत -सूरदास
- रसिक स्याम की जो सदा -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रसिकमुरारि
- रसिकिनि रस में रहत गड़ी -कुम्भनदास
- रसिया
- रसी
- रसी रासकृत
- रह जाती वचित वह -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रह जाती वञ्चित वह -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रहता पुरी द्वारिका में मैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रहता पुरी द्वारिका मैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रहता पुरी द्वारिकामें मैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रहते घुले-मिले ही तुम नित -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रहस्या
- रहि रहि देख्यौ तेरौ ज्ञान -सूरदास
- रहि री मानिनि मान न कीजै -सूरदास
- रहित रैनि दिन हरि हरि हरि रट -सूरदास
- रही इकटक साँस बिनु -सूरदास
- रही ग्वालि हरि कौ मुख चाहि -सूरदास
- रही जहाँ सो तहाँ सब ठाढ़ी -सूरदास
- रही जहाँ सो तहाँ सब ठाढी -सूरदास
- रही दै घूँघट पट की ओट -सूरदास
- रही री लाज नहिं काज आजु हरि -सूरदास
- रहीं जहाँ सो तहाँ सब ठाढ़ीं -सूरदास
- रहु रहु रे बिहँग -सूरदास
- रहु रहु रे बिहंग बनवासी -सूरदास
- रहु रे मधुकर मधु मतवारे -सूरदास
- रहे हरि रैनि कुमुदा गेह -सूरदास
- रहै न रंचक राग-रति -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रहो गोपिकाज्ञानद
- रह्यौ मन सुमिरन कौ पछितायौ -सूरदास
- राका
- राका (अंगिरा पुत्री)
- राका (बहुविकल्पी)
- राक्षस
- राक्षसीनाशकर्ता
- राक्षसों और वानरों का घोर संग्राम
- राक्षसों द्वार कृतघ्न की हत्या व उसके माँस को अभक्ष्य बताना
- राखि लियौ ब्रज नंद किसोर -सूरदास
- राखि लेहु अब नंद-कुमार -सूरदास
- राखि लेहु अब नंदकिसोर -सूरदास
- राखि लेहु गोकुल के नायक -सूरदास
- राखी बांधत जसोदा मैया -परमानंददास
- राखूँ उर-मंदिर बाँधि प्रेम की डोरी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- राखौ पति गिरिवर गिरिधारी -सूरदास
- राग (महाभारत संदर्भ)
- राग सोरठ नहिं अस जनम बारंबार -सूरदास
- रागा
- राघव आवत हैं अवध आज -सूरदास
- राघौ जू, कितिक बात, तजि चिंत -सूरदास
- राज दियौ सुग्रीव कौं -सूरदास
- राज रवनि गावतिं हरि कौ जस -सूरदास
- राजकन्याअभिराम
- राजकुमार उत्तर
- राजकुमार उत्तर
- राजकुमारों का रंगभूमि में अस्त्र-कौशल दिखाना
- राजत जुगल किसोर किसोरी -सूरदास
- राजत तेरै बदन ससी री -सूरदास
- राजत दोउ निकुंज खमे -सूरदास
- राजत दोउ रति-रंग-भरे -सूरदास
- राजत री बनमाल गरे हरि आवत बन तैं -सूरदास
- राजति राधे अलक भली री -सूरदास
- राजति रोम-राजी रेष -सूरदास
- राजदूतस्तुत
- राजधर्म (महाभारत संदर्भ)
- राजधर्म का वर्णन
- राजधर्म का साररूप में वर्णन
- राजधर्म के पालन से चारों आश्रमों के धर्म का फल
- राजधर्मा और गौतम का पुन: जीवित होना
- राजनी
- राजनीतिज्ञ भगवान श्रीकृष्ण -लौटूसिंह गौतम
- राजनीतिविद कुशल, राज्य-निर्माता -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- राजपुर
- राजर्धम का वर्णन
- राजस
- राजसूय यज्ञ
- राजसूय यज्ञ का वर्णन
- राजसूय यज्ञ की समाप्ति
- राजसूय यज्ञ में ब्राह्मणों तथा राजाओं का समागम
- राजसूय यज्ञ में राजाओं, कौरवों तथा यादवों का आगमन
- राजसूयार्थकारी
- राजस्थान
- राजस्व (महाभारत संदर्भ)
- राजा (महाभारत संदर्भ)
- राजा (महाभारत संदर्भ) 2
- राजा (महाभारत संदर्भ) 3
- राजा (महाभारत संदर्भ) 4
- राजा अम्बरीष का चरित्र
- राजा अम्बरीष की गायी हुई आध्यात्मिक स्वराज्यविषयक गाथा
- राजा अश्वपति को सावित्री नामक कन्या की प्राप्ति
- राजा आसकरण
- राजा इक पंडित पौरि तुम्हारी -सूरदास
- राजा इक्ष्वाकु और ब्राह्मण का संवाद
- राजा की आवश्यकता का प्रतिपादन
- राजा की परिहासशीलता तथा मृदुता में प्रकट होने वाले दोष
- राजा की व्यावहारिक नीति व मंत्रीमण्डल का संघटन
- राजा कुशिक और उनकी रानी द्वारा महर्षि च्यवन की सेवा
- राजा के कर्तव्य का वर्णन
- राजा के कृर्त्तव्य के विषय में बिडाल व चूहे का आख्यान
- राजा के छलरहित धर्मयुक्त बर्ताव की प्रशंसा
- राजा के द्वारा किसका धन लेने व न लेने तथा कैसे बर्ताव करे इसके विचार का वर्णन
- राजा के धर्म का वर्णन
- राजा के धर्मपूर्वक आचार के विषय में वामदेवजी का वसुमना को उपदेश
- राजा के न होने से प्रजा की हानि और होने से लाभ का वर्णन
- राजा के निवासयोग्य नगर एवं दुर्ग का वर्णन
- राजा के प्रधान कर्तव्य
- राजा के लिए कोश संग्रह की आवश्यकता
- राजा के लिए धर्मपालन की आवश्यकता
- राजा के लिए पुरुषार्थ, सत्य, ब्राह्मणों की अदण्डनीयता
- राजा के लिए मित्र और अमित्र की पहचान और उनके साथ नीतिपूर्ण बर्ताव
- राजा के लिए यज्ञ, दान और ब्राह्मण आदि प्रजा की रक्षा का उपदेश
- राजा के लिए सदाचारी विद्वान पुरोहित की आवश्यकता
- राजा के सेवक, सचिव आदि और राजा के गुणों व उनसे लाभ का वर्णन
- राजा को इहलोक व परलोक में सुख प्राप्ति कराने वाले छत्तीस गुण
- राजा गय का चरित्र
- राजा जनक का सुलभा पर दोषारोपण करना
- राजा जनक के दरबार में पञ्चशिख का आगमन
- राजा जनक के प्रश्न
- राजा जनक के विविध प्रश्नों का उत्तर
- राजा जरासंध
- राजा तथा राजसेवकों के आवश्यक गुण
- राजा दिलीप का उत्कर्ष
- राजा द्युमत्सेन की सत्यवान के लिए चिन्ता
- राजा द्वारा धर्मानुकूल नीतिपूर्ण बर्ताव का वर्णन
- राजा नृग का उपाख्यान
- राजा पृथु का चरित्र
- राजा पृथु के चरित्र का वर्णन
- राजा पौरव के अद्भुत दान का वृत्तान्त
- राजा भगीरथ का चरित्र
- राजा भरत का चरित्र
- राजा भीष्मक
- राजा मान्धाता की महत्ता
- राजा ययाति का उपाख्यान
- राजा रन्तिदेव की महत्ता
- राजा रवि वर्मा चित्रकला
- राजा विचख्नु के द्बारा अहिंसा-धर्म की प्रशंसा
- राजा शशबिन्दु का चरित्र
- राजा शिबि के यज्ञ और दान की महत्ता
- राजा श्वेतकि की कथा
- राजा संवरण का सूर्य कन्या तपती पर मोहित होना
- राजा सुमित्र का मृग की खोज में तपस्वी मुनियों के आश्रम पर पहुँचना
- राजा सुहोत्र की दानशीलता
- राजा सों बोल्यौ या भाइ -सूरदास
- राजा सौं अर्जुन सिर नाइ -सूरदास
- राजा हरिश्चंद्र का माहात्म्य
- राजाओं का लक्ष्यवेध के लिए उद्योग और असफल होना
- राजान
- राजेन्द्र
- राज्य, खजाना और सेना से वंचित क्षेमदर्शी राजा को कालकवृक्षीय मुनि का उपदेश
- राज्य (महाभारत संदर्भ)
- राज्य के कर्तव्य का वर्णन
- राणा जी थे क्यांने राखो म्हांसूं बैर -मीराँबाई
- राणा जी म्हें तो गोबिन्द का गुण गास्याँ -मीराँबाई
- राणा जो म्हांरी प्रीत पुरबली मैं कांई करूं -मीराँबाई
- राणाँजी कर्मां रो सँगाती -मीराँबाई
- राणाँजी तें जहर दियो मैं जाणी -मीराँबाई
- राणाँजी तें जहर दियो मैं जाणी। (टेक) -मीराँबाई
- राणाँजी मैं साँवरे रँग राची -मीराँबाई
- राणाँजी मैं साधुन रँगराती -मीराँबाई
- राणाँजी म्हारी प्रीत पुरबली मैं क्या करूँ -मीराँबाई