"महाभारत विराट पर्व कथाएँ" श्रेणी में पृष्ठ is shreni mean nimnalikhit 106 prishth haian, kul prishth 106 अ अज्ञातवास हेतु युधिष्ठिर द्वारा अपने भावी कार्यक्रम का दिग्दर्शन अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह अर्जुन और कर्ण का संवाद अर्जुन और कृपाचार्य का युद्ध देखने के लिए देवताओं का आगमन अर्जुन और दुर्योधन का युद्ध अर्जुन और भीष्म का अद्भुत युद्ध अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ युद्ध अर्जुन का उत्तर को शमीवृक्ष से अस्त्र उतारने का आदेश अर्जुन का उत्तरकुमार को अपना और अपने भाइयों का यथार्थ परिचय देना अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन देकर रथ पर चढ़ाना अर्जुन का कर्ण पर आक्रमण और विकर्ण की पराजय अर्जुन का दुर्योधन की सेना पर आक्रमण और गौओं को लौटा लाना अर्जुन का द्रोणाचार्य के साथ युद्ध अर्जुन का विजयी होकर उत्तरकुमार के साथ राजधानी को प्रस्थान अर्जुन का विराट को महाराज युधिष्ठिर का परिचय देना अर्जुन का सब योद्धाओं और महारथियों के साथ युद्ध अर्जुन की विराट के यहाँ नृत्य प्रशिक्षक के पद पर नियुक्ति अर्जुन के साथ युद्ध में भीष्म का मूर्च्छित होना अर्जुन को ध्वज की प्राप्ति तथा उनके द्वारा शंखनाद अर्जुन द्वारा उत्तरकुमार के भय का निवारण अर्जुन द्वारा उत्तरा को पुत्रवधू के रूप में ग्रहण करना अर्जुन द्वारा कौरव सेना का संहार अर्जुन द्वारा कौरव सेना के महारथियों की पराजय अर्जुन द्वारा युद्ध की तैयारी तथा अस्त्र-शस्त्रों का स्मरण अर्जुन द्वारा शत्रुंतप और संग्रामजित का वध अर्जुन द्वारा समस्त कौरव दल की पराजय अर्जुन से दु:शासन आदि की पराजय अश्वत्थामा के उद्गारउ उत्तर का अपने लिए सारथि ढूँढने का प्रस्ताव उत्तर का अर्जुन के रथ को कृपाचार्य के पास लेना उत्तर का बृहन्नला से पांडवों के अस्त्र-शस्त्र के विषय में प्रश्न करना उत्तर का शमीवृक्ष से पांडवों के दिव्य धनुष आदि उतारना उत्तरकुमार का नगर में प्रवेश और प्रजा द्वारा उनका स्वागत उपकीचकों का सैरन्ध्री को बाँधकर श्मशानभूमि में ले जानाक कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण का पलायन क आगे. कर्ण का अर्जुन से हारकर भागना कर्ण की आत्मप्रंशसापूर्ण अहंकारोक्ति कर्ण की उक्ति कीचक की द्रौपदी पर आसक्ति और प्रणय निवेदन कीचक द्वारा द्रौपदी का अपमान कृपाचार्य और अर्जुन का युद्ध कृपाचार्य का कर्ण को फटकारना और युद्ध हेतु अपना विचार बताना कृपाचार्य की सम्मति और दुर्योधन का निश्चय कौरव सेना को देखकर उत्तरकुमार का भय कौरव सैनिकों द्वारा कृपाचार्य को युद्ध से हटा ले जाना कौरवों का स्वदेश को प्रस्थान कौरवों द्वारा विराट की गौओं का अपहरणग गोपाध्यक्ष का उत्तरकुमार को युद्ध हेतु उत्साह दिलानात त्रिगर्तों और कौरवों का मत्स्यदेश पर धावाद दुर्योधन का विकर्ण आदि योद्धाओं सहित रणभूमि से भागना दुर्योधन का सभासदों से पांडवों का पता लगाने हेतु परामर्श दुर्योधन को उसके गुप्तचरों द्वारा कीचकवध का वृत्तान्त सुनाना दुर्योधन द्वारा युद्ध का निश्चय द्रोणाचार्य का कौरवों से उत्पात-सूचक अपशकुनों का वर्णन द्रोणाचार्य का युद्ध से पलायन द्रोणाचार्य की सम्मति द्रोणाचार्य द्वारा अर्जुन के अलौकिक पराक्रम की प्रशंसा द्रोणाचार्य द्वारा दुर्योधन की रक्षा के प्रयत्न द्रौपदी का बृहन्नला और सुदेष्णा से वार्तालाप द्रौपदी का भीमसेन के समीप जाना द्रौपदी का भीमसेन के सम्मुख विलाप द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख निवेदन करना द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख प्रकट करना द्रौपदी का रानी सुदेष्णा के यहाँ निवास पाना द्रौपदी का विराट नगर में लौटकर आना द्रौपदी का सैरन्ध्री के वेश में रानी सुदेष्णा से वार्तालाप द्रौपदी द्वारा उत्तर से बृहन्नला को सारथि बनाने का सुझाव द्रौपदी द्वारा कीचक को फटकारनाध धौम्य द्वारा पांडवों को राजा के यहाँ रहने का ढंग बतानान नकुल का विराट के अश्वों की देखरेख में नियुक्त होना नकुल, सहदेव और द्रौपदी द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने कर्तव्यों का दिग्दर्शन प पांडवों का श्मशान में शमी वृक्ष पर अपने अस्त्र-शस्त्र रखना पांडवों द्वारा विराट को सुशर्मा से छुड़ाना पांडवों सहित विराट की सेना का युद्ध हेतु प्रस्थान पितामह भीष्म की सम्मतिब बृहन्नला के साथ उत्तरकुमार का रणभूमि को प्रस्थान बृहन्नला द्वारा उत्तर को पांडवों के आयुधों का परिचय करानाभ भीमसेन और अर्जुन द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने अनुकूल कार्यों का वर्णन भीमसेन और कीचक का युद्ध भीमसेन और द्रौपदी का संवाद भीमसेन का विराट की सभा में प्रवेश और राजा द्वारा उनको आश्वासन भीमसेन द्वारा उपकीचकों का वध भीमसेन द्वारा कीचक का वध भीमसेन द्वारा जीमूत नामक मल्ल का वध भीष्म द्वारा सेना में शान्ति और एकता बनाये रखने की चेष्टाम मत्स्य तथा त्रिगर्त देश की सेनाओं का युद्धय युधिष्ठिर का अनुग्रह करके सुशर्मा को मुक्त करना युधिष्ठिर का राजसभा में राजा विराट से मिलना युधिष्ठिर का विराट के यहाँ निवास पाना युधिष्ठिर की महिमा कहते हुए भीष्म की पांडव अन्वेषण के विषय में सम्मति युधिष्ठिर द्वारा दुर्गा देवी की स्तुतिव विराट और उत्तरकुमार की विजय के विषय में बातचीत विराट का उत्तरकुमार से युद्ध का समाचार पूछना विराट का युधिष्ठिर को राज्य समर्पण और अर्जुन-उत्तरा विवाह का प्रस्ताव विराट की उत्तरकुमार के विषय में चिन्ता विराट को अन्य पांडवों का परिचय प्राप्त होना विराट द्वारा पांडवों का सम्मान विराट द्वारा युधिष्ठिर का तिरस्कार और क्षमा-प्रार्थना विराट नगर में राजा विराट की विजय घोषणा विराट पर्व श्रवण की महिमा विराटनगर में अज्ञातवास करने हेतु पांडवों की गुप्त मंत्रणास सहदेव की विराट के यहाँ गौशाला में नियुक्ति सुदेष्णा का द्रौपदी को कीचक के यहाँ भेजना सुशर्मा का कौरवों के लिए प्रस्ताव सुशर्मा द्वारा विराट को बन्दी बनाना