सभी पृष्ठ | पिछला पृष्ठ (वन में पांडवों का आहार) | अगला पृष्ठ (विशालक) |
- वाहिनी (बहुविकल्पी)
- वाहिनी (सेना)
- वाही कै बल धेनु चरावत -सूरदास
- वाही कैं बल धेनु चरावत -सूरदास
- वाहीक
- वाह्लीक
- वाह्लीक दार्वी
- वाह्लीकगण
- विंद
- विंद (धृतराष्ट्र पुत्र)
- विंद (बहुविकल्पी)
- विंद (राजकुमार)
- विंध्याचल
- विंश
- विकट
- विकट (अनुचर)
- विकट (गणेश)
- विकट (धृतराष्ट्र का पुत्र)
- विकट (बहुविकल्पी)
- विकटानन
- विकर्ण
- विकर्ण (अस्त्र)
- विकर्ण (एक ऋषि)
- विकर्ण (कर्ण का भ्राता)
- विकर्ण (बहुविकल्पी)
- विकर्ण की धर्मसंगत बात का कर्ण द्वारा विरोध
- विकल्प
- विकाथिनी
- विकारस्थित
- विकाशिनी
- विकुंज
- विकुंठन
- विकुण्ठन
- विकुन्ज
- विक्रम
- विक्रमादित्य
- विक्षर
- विगाहन
- विग्रह
- विघ्ननाशक
- विघ्ननिघ्न
- विचारु
- विचित्र
- विचित्र (कृष्ण)
- विचित्र (बहुविकल्पी)
- विचित्रवीर्य
- विचित्रवीर्य का निधन
- विचित्रवीर्य का राज्याभिषेक
- विजय
- विजय (ऋषि)
- विजय (कृष्ण के पुत्र)
- विजय (जनपद)
- विजय (धनुष)
- विजय (पुरोगामी)
- विजय (बहुविकल्पी)
- विजय (महादेवजी का शूल)
- विजय (महाभारत संदर्भ)
- विजय (महाभारत संदर्भ) 2
- विजय (राजा)
- विजय (वसुदेव पुत्र)
- विजय दशमी
- विजयसूचक शुभाशुभ लक्षणों व बलवान सैनिकों का वर्णन
- विजया
- विजया (बहुविकल्पी)
- विजया (भुमन्यु की पत्नी)
- विजया (सहदेव की पत्नी)
- विजयादशमी
- विजयाभिलाषी राजा के धर्मानुकूल बर्ताव तथा युद्धनीति का वर्णन
- विजातीय
- विजिति
- विटभूत
- विट्कुंड
- विट्कुण्ड
- विट्ठल विपुल देव
- विट्ठलनाथ
- विट्ठलविपुलदेव
- वितत्य
- वितर्क
- वितल
- वितस्ता
- वितस्ता नदी
- वित्त (महाभारत संदर्भ)
- वित्तदा
- विदंड
- विदण्ड
- विदभ
- विदर्भ
- विदर्भ (ऋषभदेव पुत्र)
- विदर्भ (बहुविकल्पी)
- विदर्भ देश
- विदर्भराज को अगस्त्य से कन्या की प्राप्ति
- विदर्भराज द्वारा नल-दमयन्ती की खोज
- विदर्भा
- विदिशा
- विदिशा नदी
- विदुर
- विदुर और धृतराष्ट्र की बातचीत
- विदुर और युधिष्ठिर बातचीत तथा युधिष्ठिर का हस्तिनापुर आना
- विदुर का कृष्ण को कौरवसभा में जाने का अनौचित्य बतलाना
- विदुर का दम की महिमा बताना
- विदुर का दुर्योधन को फटकारना
- विदुर का धृतराष्ट्र को कृष्णआज्ञा का पालन करने के लिए समझाना
- विदुर का धृतराष्ट्र को धर्मोपदेश
- विदुर का धृतराष्ट्र को युधिष्ठिर का उदारतापूर्ण उत्तर सुनाना
- विदुर का धृतराष्ट्र को शोक त्यागने के लिए कहना
- विदुर का धृतराष्ट्र से कौटुम्बिक कलह से हानि बताना
- विदुर का पाण्डवों को धर्मपूर्वक रहने का उपदेश देना
- विदुर का युधिष्ठिर के शरीर में प्रवेश
- विदुर का विवाह
- विदुर का शरीर की अनित्यता बताते हुए शोक त्यागने के लिए कहना
- विदुर का शोक निवारण हेतु उपदेश
- विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना
- विदुर की धृतराष्ट्र को सलाह
- विदुर की सम्मति, द्रोण-भीष्म के वचनों का समर्थन
- विदुर के नीतियुक्त उपदेश
- विदुर के भेजे हुए खनक द्वारा लाक्षागृह में सुरंग का निर्माण
- विदुर के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगा के पार उतरना
- विदुर द्वारा गहन वन के दृष्टांत से संसार के भयंकर स्वरूप का वर्णन
- विदुर द्वारा चारों वर्णों के धर्म का सक्षिप्त वर्णन
- विदुर द्वारा जुए का घोर विरोध
- विदुर द्वारा दुखमय संसार के गहन स्वरूप और उससे छूटने का उपाय
- विदुर द्वारा धर्म की महत्ता का प्रतिपादन
- विदुर द्वारा धृतराष्ट्र को समझाना
- विदुर द्वारा प्रह्लाद का उदाहरण देकर सभासदों को विरोध के लिए प्रेरित करना
- विदुर द्वारा संसार चक्र का वर्णन
- विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण
- विदुर द्वारा सनत्सुजात से उपदेश देने के लिए प्रार्थना
- विदुर द्वारा सुधंवा-विरोचन विवाद का वर्णन
- विदुर नीति
- विदुरपत्नी
- विदुला
- विदुला और उसके पुत्र का संवाद
- विदुला का पुत्र को युद्ध हेतु उत्साहित करना
- विदुला के उपदेश से उसके पुत्र का युद्ध हेतु उद्यत होना
- विदुला द्वारा कार्य में सफलता प्राप्ति और शत्रुवशीकरण उपायों का निर्देश
- विदूर
- विदूरथ
- विदेह
- विदेह देश
- विदेहराज का कोसलराज को अपना जामाता बनाना
- विद्या-अविद्या व पुरुष के स्वरूप के उद्गार का वर्णन
- विद्या (महाभारत संदर्भ)
- विद्याजनित
- विद्याधर
- विद्याधरी
- विद्यारंभ संस्कार
- विद्युज्जिह्वा
- विद्युता
- विद्युताक्ष
- विद्युत्पर्णा
- विद्युत्प्रभ
- विद्युत्प्रभ (दैत्य)
- विद्युत्प्रभ (बहुविकल्पी)
- विद्युत्प्रभा
- विद्युद्वर्चा
- विद्युन्माली
- विद्योता
- विद्वान एवं सदाचारी ब्राह्मण को अन्नदान की प्रशंसा
- विद्वान सदाचारी पुरोहित की आवश्यकता
- विद्वान् (महाभारत संदर्भ)
- विधना चूक परी मैं जानी -सूरदास
- विधना यहै लिख्यौ संजोग -सूरदास
- विधाता
- विधान (महाभारत संदर्भ)
- विधि (महाभारत संदर्भ)
- विधि मनहीं मन सोच परयौ -सूरदास
- विधिवत स्नान और उसके अंगभूत कर्म का वर्णन
- विधु-बदनी श्रीराधिके! -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- विनता
- विनता का कद्रु की दासी होना
- विनती करत नंद कर जोरैं -सूरदास
- विनती करत सकल अहोर -सूरदास
- विनती सुनहु देव मघवापति -सूरदास
- विनती सुनहु देव मधवापति -सूरदास
- विनती सुनी स्याम सुजान -सूरदास
- विनती सुनौ दीन की चित दै -सूरदास
- विनदी
- विनशन
- विनशन तीर्थ
- विनायक
- विनायकगण
- विनाश (महाभारत संदर्भ)
- विनाशन
- विनाशसूचक उत्पातों का वर्णन
- विनु वोले पिय रहियै जू -सूरदास
- विन्द
- विन्द (राजकुमार)
- विन्ध्य
- विन्ध्यचुलिका
- विन्ध्याचल
- विपदा है करुणाभा, दुःख तुम्हारा है प्रभु -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- विपदा है करुणाभा, दुख तुम्हारा है प्रभु -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- विपाट
- विपाठ
- विपापा
- विपापा नदी
- विपाप्मा
- विपाशा
- विपुल
- विपुल (पर्वत)
- विपुल (बहुविकल्पी)
- विपुल (राजा)
- विपुल (वसुदेव पुत्र)
- विपुल का अपने द्वारा किये गये दुष्कर्म का स्मरण करना
- विपुल का देवराज इन्द्र से गुरुपत्नी को बचाना
- विपुल को गुरु देवशर्मा से वरदान की प्राप्ति
- विपुल को दिव्य पुष्प की प्राप्ति और चम्पा नगरी को प्रस्थान
- विपृथु
- विपृष्ठ
- विप्र
- विप्र बुलाइ लिए नंदराइ -सूरदास
- विप्रचित्ति
- विप्रदारिद्रयहा
- विप्रपुत्रप्रद
- विप्ररूप
- विभक्त
- विभांडक
- विभाण्ड
- विभाण्डक
- विभावसु
- विभावसु (अग्नि)
- विभावसु (ऋषि)
- विभावसु (बहुविकल्पी)
- विभिन्न गौओं के दान से विभिन्न उत्तम लोकों की प्राप्ति
- विभिन्न तीर्थों के माहात्मय का वर्णन
- विभिन्न नक्षत्रों के योग में भिन्न-भिन्न वस्तुओं के दान का माहात्म्य
- विभिन्न नक्षत्रों में श्राद्ध करने का फल
- विभिन्न पापों के फलस्वरूप नरकादि की प्राप्ति एवं तिर्यग्योनियों में जन्म लेने का वर्णन
- विभीषण
- विभीषण (बहुविकल्पी)
- विभीषण (यक्ष)
- विभीषण का अभिषेक तथा वानर सेना का लंका की सीमा में प्रवेश
- विभीषणा
- विभु
- विभु (काशिराज पुत्र)
- विभु (कृष्ण)
- विभु (देवता)
- विभु (शकुनि भाई)
- विभु (बहुविकल्पी)
- विभूति
- विभूरसि
- विमल कुंड काम्यवन
- विमल कुण्ड काम्यवन
- विमलतीर्थ
- विमलपिंड
- विमलपिण्ड
- विमलपिण्डक
- विमलपिण्डक नाग
- विमला
- विमला (नदी)
- विमला (बहुविकल्पी)
- विमलाशोक
- विमलोदका
- विमलोदा
- विमुच
- विरज
- विरज तीर्थ
- विरजा
- विरजा (धृतराष्ट्र पुत्र)
- विरजा (बहुविकल्पी)
- विरजा (शुक्राचार्य पुत्र)
- विरजा (सर्प)
- विरथा जन्म लियौ संसार -सूरदास
- विरस
- विरह-व्यथा-पीडित -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- विरह पदावली
- विरह पदावली मुखपृष्ठ
- विरहाकुल अति व्यथित-हृदय है -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- विराज
- विराजत मोहन मंडल रास -सूरदास
- विराट
- विराट और उत्तरकुमार की विजय के विषय में बातचीत
- विराट और द्रुपद के संदेश
- विराट का उत्तरकुमार से युद्ध का समाचार पूछना
- विराट का युधिष्ठिर को राज्य समर्पण और अर्जुन-उत्तरा विवाह का प्रस्ताव
- विराट की उत्तरकुमार के विषय में चिन्ता
- विराट की सभा में बलराम का भाषण
- विराट की सभा में श्रीकृष्ण का भाषण
- विराट के पुत्र श्वेत का पराक्रम
- विराट के पुत्र श्वेत का महापराक्रम
- विराट को अन्य पांडवों का परिचय प्राप्त होना
- विराट द्वारा पांडवों का सम्मान
- विराट द्वारा युधिष्ठिर का तिरस्कार और क्षमा-प्रार्थना
- विराट नगर
- विराट नगर पर आक्रमण
- विराट नगर में राजा विराट की विजय घोषणा
- विराट पर्व महाभारत
- विराट पर्व श्रवण की महिमा
- विराटनगर में अज्ञातवास करने हेतु पांडवों की गुप्त मंत्रणा
- विराटपर्व महाभारत
- विराव
- विरावी
- विरुधा
- विरू
- विरूप
- विरूप (कृष्ण पुत्र)
- विरूप (दैत्य)
- विरूप (बहुविकल्पी)
- विरूपाक्ष
- विरूपाक्ष (त्वष्टा पुत्र)
- विरूपाक्ष (बहुविकल्पी)
- विरूपाक्ष (राक्षस)
- विरूपाक्ष (शिव)
- विरूपाक्ष (सारथि)
- विरूपाक्ष (सारथी)
- विरूपाश्व
- विरोचन
- विरोचन (बहुविकल्पी)
- विरोचन (सूर्य)
- विरोचना
- विरोहण
- विलम तजि भामिनी बिलसि -सूरदास
- विलासी
- विल्वतेजा
- विल्वपत्र
- विवर्द्धन
- विवस्वान
- विवस्वान (दानव)
- विवस्वान (बहुविकल्पी)
- विवस्वान (विश्वेदेवा)
- विवस्वान (सूर्य)
- विवाह
- विवाह संस्कार
- विविंध्य
- विविंश
- विविंशति
- विवित्सु
- विविध (महाभारत संदर्भ)
- विविध तिथियों में श्राद्ध करने का फल
- विविध प्रकार के कर्मफलों का वर्णन
- विविध प्रकार के तप और दानों का फल
- विविध यज्ञों तथा ज्ञान की महिमा का वर्णन
- विविध वर्ण, सौरभ विभिन्न युत -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- विविन्ध्य
- विशल्या
- विशाख
- विशाख (अनल वसु पुत्र)
- विशाख (ऋषि)
- विशाख (कार्तिकेय)
- विशाख (बहुविकल्पी)
- विशाखयूप
- विशाखा
- विशाखा कुण्ड वृन्दावन
- विशाखा सखी
- विशाल (सूर्य)