"महाभारत वनपर्व कथाएँ" श्रेणी में पृष्ठ is shreni mean nimnalikhit 200 prishth haian, kul prishth 440 (पिछले 200) (अगले 200)अ अंगद का रावण के पास जाकर राम का संदेश सुनाना अंगिरा की संतति का वर्णन अगस्त्य का धनसंग्रह के लिए प्रस्थान अगस्त्य का लोपामुद्रा से विवाह अगस्त्य का विन्ध्यपर्वत को बढ़ने से रोकना अगस्त्य का समुद्रपान तथा देवताओं द्वारा कालेय दैत्यों का वध अगस्त्य द्वारा वातापि तथा इल्वल का वध अग्नि का अंगिरा को अपना प्रथम पुत्र स्वीकार करना अग्निदेव आदि द्वारा बालक स्कन्द की रक्षा करना अग्निस्वरूप तप और भानु मनु की संतति का वर्णन अथर्वा अंगिरा द्वारा सह अग्नि का पुन: प्राकट्य अद्भुत अग्नि का मोह और उनका वनगमन अधिरथ सूत और उसकी पत्नी राधा को बालक कर्ण की प्राप्ति अर्जुन और निवातकवचों का युद्ध अर्जुन का अपनी तपस्या यात्रा के वृत्तान्त का वर्णन अर्जुन का इन्द्रकील पर्वत पर प्रस्थान अर्जुन का इन्द्रसभा में स्वागत अर्जुन का निवातकवच दानवों के साथ युद्ध की तैयारी का कथन अर्जुन का निवातकवच दानवों के साथ युद्धारम्भ अर्जुन का पाताल में प्रवेश अर्जुन का युधिष्ठिर से स्वर्गलोक में प्राप्त अपनी अस्त्रविद्या का कथन अर्जुन का शिव से युद्ध अर्जुन का स्वर्गलोक प्रस्थान अर्जुन का स्वर्गलोक से आगमन तथा भाईयों से मिलन अर्जुन की उग्र तपस्या अर्जुन के दिव्यास्त्र प्राप्ति का लोमश द्वारा वर्णन अर्जुन के पास दिक्पालों का आगमन अर्जुन के लिए पांडवों की चिन्ता अर्जुन के साथ निवातकवचों के मायामय युद्ध का वर्णन अर्जुन को अस्त्र और संगीत की शिक्षा अर्जुन को शिव का वरदान अर्जुन तथा द्रौपदी द्वारा कृष्ण स्तुति अर्जुन द्वारा निवातकवचों का वध अर्जुन द्वारा शिव से संग्राम एवं पाशुपतास्त्र प्राप्ति की कथा अर्जुन द्वारा शिव स्तुति अर्जुन द्वारा हिरण्यपुरवासी पौलोम तथा कालकेयों का वध अर्वावसु की तपस्या तथा रैभ्य, भरद्वाज और यवक्रीत का पुनर्जीवन अशोक वाटिका में सीता को त्रिजटा का आश्वासन अष्टावक्र का जनक के दरबार में जाना अष्टावक्र का जनक के द्वारपाल से वार्तालाप अष्टावक्र का जनक से वार्तालाप अष्टावक्र का शास्त्रार्थ अष्टावक्र के अंगों का सीधा होना अष्टावक्र के जन्म का वृत्तान्तआ आर्ष्टिषेण का युधिष्ठिर के प्रति उपदेशइ इक्ष्वाकुवंशी परीक्षित का मण्डूकराज की कन्या से विवाह इन्द्र और अग्नि द्वारा राजा शिबि की परीक्षा इन्द्र और बक मुनि का संवाद इन्द्र का आगमन तथा युधिष्ठिर को सान्त्वना देना इन्द्र का देवसेना के साथ ब्रह्मा और ब्रह्मर्षियों के आश्रम पर जाना इन्द्र तथा देवताओं को स्कन्द का अभयदान इन्द्र द्वारा अर्जुन का अभिनन्दन इन्द्र द्वारा अर्जुन को स्वर्ग आगमन का आदेश इन्द्र द्वारा कर्ण से कवच-कुण्डल लेना इन्द्र द्वारा केशी से देवसेना का उद्धार इन्द्र-अर्जुन संदेश से युधिष्ठिर की प्रसन्नता इन्द्र-अर्जुन से लोमश मुनि की भेंट इन्द्रजित का मायामय युद्ध तथा श्रीराम और लक्ष्मण की मूर्च्छा इन्द्रद्युम्न तथा अन्य चिरजीवी प्राणियों की कथाउ उत्तंक का बृहदश्व से धुन्धु वध का आग्रह उत्तंक मुनि की कथा उर्वशी का अर्जुन को शाप उशीनर द्वारा शरणागत कबूतर के प्राणों की रक्षाऋ ऋचीक मुनि का गाधिकन्या के साथ विवाह ऋतुपर्ण का कुण्डिनपुर में प्रवेश ऋतुपर्ण का विदर्भ देश को प्रस्थान ऋतुपर्ण से नल को द्यूतविद्या के रहस्य की प्राप्ति ऋ आगे. ऋषियों का अनिष्ट करने से मेघावी की मृत्यु ऋष्यशृंग का पिता से वेश्या के स्वरूप तथा आचरण का वर्णन ऋष्यशृंग का लोमपाद के यहाँ आगमन ऋष्यशृंग को वेश्या द्वारा लुभाना जानाक कपिल की क्रोधाग्नि से सगरपुत्रों का भस्म होना कर्ण का इन्द्र को कवच-कुण्डल देने का ही निश्चय करना कर्ण का इन्द्र से शक्ति लेकर ही कवच-कुण्डल देने का निश्चय कर्ण का जन्म और कुन्ती का विलाप कर्ण की दिग्विजय पर हस्तिनापुर में उसका सत्कार कर्ण की शिक्षा-दीक्षा और उसके पास इन्द्र का आगमन कर्ण के क्षोभपूर्ण वचन और दिग्विजय के लिए प्रस्थान कर्ण को इन्द्र से अमोघ शक्ति की प्राप्ति कर्ण द्वारा अर्जुन के वध की प्रतिज्ञा कर्ण द्वारा समझाने पर भी दुर्योधन का आमरण अनशन का निश्चय कर्ण द्वारा सारी पृथ्वी पर दिग्विजय कर्दमिलक्षेत्र आदि तीर्थों की महिमा कल्कि अवतार का वर्णन काम्यकवन में विदुर-पांडव मिलन कार्तिकेय के प्रसिद्ध नामों का वर्णन कालेय दैत्यों द्वारा तपस्वियों-मुनियों आदि का संहार कुन्तिभोज के यहाँ दुर्वासा का आगमन कुन्ती का पिता से वार्तालाप एवं ब्राह्मण की परिचर्या कुन्ती को तपस्वी ब्राह्मण द्वारा मंत्र का उपदेश कुन्ती द्वारा सूर्य देवता का आवाहन कुन्ती-सूर्य संवाद कुन्तुभोज द्वारा दुर्वासा की सेवा हेतु पृथा को उपदेश देना कुबेर का गंधमादन पर्वत पर आगमन कुबेर का युधिष्ठिर आदि को उपदेश तथा सान्त्वना कुबेर का रावण को शाप देना कुबेर की युधिष्ठिर से भेंट कुम्भकर्ण, वज्रवेग और प्रमाथी का वध कुरुक्षेत्र के तीर्थों की महत्ता कुरुक्षेत्र के प्लक्षप्रस्रवण तीर्थ की महिमा कुवलाश्व को देवताओं से वर की प्राप्ति कुवलाश्व द्वारा धुन्धु का वध कृत्तिकाओं को नक्षत्रमण्डल में स्थान की प्राप्ति कृष्ण और शाल्व का युद्ध कृष्ण और शाल्व की माया कृष्ण द्वारा जूए दोष का वर्णन कृष्ण द्वारा पांडवों को दुर्वासा के भय से मुक्त करना कृष्ण द्वारा शाल्व वध का वर्णन कृष्ण द्वारा शाल्ववधोपाख्यान की समाप्ति कृष्ण प्रतिज्ञा का संजय द्वारा वर्णन केशिनी द्वारा बाहुक की परीक्षा केशिनी-बाहुक संवाद कोटिकास्य का द्रौपदी को जयद्रथ का परिचय देना कौरवों का गंधर्वों से युद्ध और कर्ण की पराजय कौरवों को छुड़ाने हेतु युधिष्ठिर का भीमसेन को आदेश कौशिक का धर्मव्याध के पास जाना कौशिक ब्राह्मण तथा पतिव्रता का उपाख्यान क्रोधवश राक्षसों का भीमसेन से सामनाग गंगा का पृथ्वी पर आगमन और सगरपुत्रों का उद्धार गंगा का माहात्म्य गंगासागर, अयोध्या, चित्रकूट, प्रयाग आदि की महिमा का वर्णन गंधर्वों द्वारा दुर्योधन आदि की पराजय और उनका अपहरण गन्दमाधन यात्रा में पांडवों का आँधी-पानी से सामना गय के यज्ञों की प्रशंसाघ घटोत्कच की सहायता से पांडवों का गंधमादन पर्वत तथा बदरिकाश्रम में प्रवेशच चारों युगों की वर्ष-संख्या तथा कलियुग के प्रभाव का वर्णन चित्रसेन और उर्वशी का वार्तालाप चित्रसेन, अर्जुन तथा युधिष्ठिर संवाद और दुर्योधन का छुटकारा च्यवन का इन्द्र पर कोप च्यवन को रूप तथा युवावस्था की प्राप्ति च्यवन को सुकन्या की प्राप्ति च्यवन द्वारा मदासुर की उत्पत्तिज जटासुर द्वारा द्रौपदी, युधिष्ठिर, नकुल एवं सहदेव का हरण जमदग्नि की उत्पत्ति का वर्णन ज आगे. जमदग्नि मुनि की हत्या जयद्रथ और द्रौपदी का संवाद जयद्रथ का द्रौपदी पर मोहित होना जयद्रथ द्वारा द्रौपदी का अपहरणत तपस्वी तथा स्वधर्मपरायण ब्राह्मणों का माहात्म्य तार्क्ष्यमुनि और सरस्वती का संवादद दधीच का अस्थिदान एवं वज्र निर्माण दमयन्ती का कुमार-कुमारी को कुण्डिनपुर भेजना दमयन्ती का चेदिराज के यहाँ निवास दमयन्ती का पातिव्रत्यधर्म दमयन्ती का पिता के यहाँ आगमन दमयन्ती का विलाप दमयन्ती को तपस्वियों द्वारा आश्वासन दमयन्ती को नल का समाचार मिलना दमयन्ती स्वयंवर के लिए राजाओं का प्रस्थान दुर्योधन आदि को द्वैतवन जाने हेतु धृतराष्ट्र की अनुमति दुर्योधन का कर्ण को अपनी पराजय का समाचार बताना दुर्योधन का मार्ग में ठहरना और कर्ण द्वारा उसका अभिनन्दन दुर्योधन के यज्ञ का आरम्भ तथा समाप्ति दुर्योधन द्वारा अनशन की समाप्ति और हस्तिनापुर प्रस्थान दुर्योधन द्वारा अपनी ग्लानि का वर्णन तथा आमरण अनशन का निश्चय दुर्योधन द्वारा कर्ण और शकुनि की मंत्रणा स्वीकार करना दुर्योधन द्वारा दु:शासन को राजा बनने का आदेश दुर्योधन द्वारा दुर्वासा का आतिथ्य सत्कार दुर्योधन द्वारा दुर्वासा को प्रसन्न करना और युधिष्ठिर के पास भेजना दुर्योधन द्वारा वैष्णव यज्ञ की तैयारी दुर्वासा द्वारा महर्षि मुद्गल के दानधर्म एवं धैर्य की परीक्षा देवताओं का रीछ और वानर योनि में संतान उत्पन्न करना देवताओं द्वारा विष्णु की स्तुति देवताओं द्वारा सीता की शुद्धि का समर्थन देवदूत द्वारा स्वर्गलोक के गुण-दोष तथा विष्णुधाम का वर्णन देवासुर संग्राम तथा महिषासुर वध दैत्यों का कृत्या द्वारा दुर्योधन को रसातल में बुलाना दैत्यों का दुर्योधन को समझाना द्युमत्सेन का राज्याभिषेक तथा सावित्री को सौ पुत्रों और सौ भाइयों की प्राप्ति द्रौपदी का कृष्ण से अपने अपमान का वर्णन द्रौपदी का कोटिकास्य को उत्तर द्रौपदी का जयद्रथ से पांडवों के पराक्रम का वर्णन द्रौपदी का युधिष्ठिर और ईश्वर न्याय पर आक्षेप द्रौपदी का युधिष्ठिर से संतापपूर्ण वचन द्रौपदी की मूर्छा तथा भीम के स्मरण से घटोत्कच का आगमन द्रौपदी के स्मरण करने पर श्रीकृष्ण का प्रकट होना द्रौपदी द्वारा पुरुषार्थ को प्रधानता द्रौपदी द्वारा प्रह्लाद-बलि संवाद वर्णन द्रौपदी द्वारा सत्यभामा को पतिसेवा की शिक्षा द्रौपदी द्वारा सत्यभामा को सती स्त्री के कर्तव्य की शिक्षा द्वारका में युद्ध सम्बंधी तैयारियों का वर्णन द्वैतवन में दुर्योधन के सैनिकों तथा गंधर्वों में कटु संवाद द्वैतवन में भीमसेन का हिंसक पशुओं को मारनाध धर्मव्याध का कौशिक ब्राह्मण से अपने पूर्वजन्म की कथा कहना धर्मव्याध द्वारा इन्द्रियनिग्रह का वर्णन धर्मव्याध द्वारा तीन गुणों के स्वरूप तथा फल का वर्णन धर्मव्याध द्वारा धर्म की सूक्ष्मता, शुभाशुभ कर्म और उनके फल का वर्णन धर्मव्याध द्वारा पंचमहाभूतों के गुणों का वर्णन धर्मव्याध द्वारा परमात्म-साक्षात्कार के उपाय धर्मव्याध द्वारा प्राणवायु की स्थिति का वर्णन धर्मव्याध द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति के उपायों का वर्णन धर्मव्याध द्वारा ब्राह्मी विद्या का वर्णन धर्मव्याध द्वारा माता-पिता की सेवा का उपदेश धर्मव्याध द्वारा माता-पिता की सेवा का दिग्दर्शन धर्मव्याध द्वारा वर्णधर्म का वर्णन और जनकराज्य की प्रशंसा धर्मव्याध द्वारा विषय सेवन से हानि, सत्संग से लाभ का वर्णन धर्मव्याध द्वारा शिष्टाचार का वर्णन धर्मव्याध द्वारा हिंसा और अहिंसा का विवेचन धर्मव्याध-कौशिक संवाद का उपंसहार धुन्धु की तपस्या और ब्रह्मा से वर प्राप्ति (पिछले 200) (अगले 200)