"प्रेम तत्त्व एवं गोपी प्रेम का महत्त्व" श्रेणी में पृष्ठ is shreni mean nimnalikhit 112 prishth haian, kul prishth 112 अ अति निर्मल अति ही मधुर -हनुमान प्रसाद पोद्दार अनोखी राधा माधव प्रीति -हनुमान प्रसाद पोद्दार अलौकिक राधा-माधव प्रीति -हनुमान प्रसाद पोद्दारइ इत उत जो धावत फिरै -हनुमान प्रसाद पोद्दार इन्द्रिय सुख इच्छा से विरहित -हनुमान प्रसाद पोद्दार इससे ऊँची भक्ति-’कामना’ -हनुमान प्रसाद पोद्दारउ उड़ता नहीं निरा भ्रम -हनुमान प्रसाद पोद्दार उत्कट काम, अमर्ष, चपलता -हनुमान प्रसाद पोद्दारक कबहूँ सुरभित कुसुम चुनि -हनुमान प्रसाद पोद्दार कर्म राज्य से उच्च स्तर -हनुमान प्रसाद पोद्दार कर्म, योगपथ, जान-मार्ग के -हनुमान प्रसाद पोद्दार कहि न जाय मुख सौं कछू -हनुमान प्रसाद पोद्दार कामगन्ध से शून्य सर्वथा -हनुमान प्रसाद पोद्दार काहू कौं जानौं न मैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार कृष्ण प्रियतमा राधा रानी -हनुमान प्रसाद पोद्दार कृष्णमना श्रीकृष्ण-मति -हनुमान प्रसाद पोद्दार कैसे वह दुखिया माने -हनुमान प्रसाद पोद्दारग गोपिन की उपमा -हनुमान प्रसाद पोद्दार गोपिन पटतर नहिं सुरनारी -हनुमान प्रसाद पोद्दार गोपीजन की महिमा अतुलित -हनुमान प्रसाद पोद्दार ग्यान-प्रेम दोउ पूज्य अति -हनुमान प्रसाद पोद्दारज जन्म-मरण न दुःख सुख -हनुमान प्रसाद पोद्दार जहाँ पवित्र भाव हैं रसमय -हनुमान प्रसाद पोद्दार जाकौं प्रभु अपनो करि -हनुमान प्रसाद पोद्दार जितना जितना मन से आत्मसुखेच्छा का -हनुमान प्रसाद पोद्दार जितने सब हैं भाव विलक्षण -हनुमान प्रसाद पोद्दार जिन के दृग हरि-रँग रँगे -हनुमान प्रसाद पोद्दार जिसकी कहीं न कोई तुलना -हनुमान प्रसाद पोद्दार जिसने अपने तन-मन-जीवन -हनुमान प्रसाद पोद्दार जिससे परम सुखी हों मेरे -हनुमान प्रसाद पोद्दार जो परतन्त्र सदा प्रिय-सुख के -हनुमान प्रसाद पोद्दार ज्यों ज्यों प्रभु समीपता बढ़ती -हनुमान प्रसाद पोद्दारद देव दनुज किंनर ऋषि मुनि -हनुमान प्रसाद पोद्दार देह प्राण मन बुद्धि इन्द्रियाँ -हनुमान प्रसाद पोद्दार देह प्राण मन वस्तु परिस्थिति -हनुमान प्रसाद पोद्दारध धन जन अभिजन भवन सकल -हनुमान प्रसाद पोद्दार धन्य धन्य ब्रज की नर-नारी -हनुमान प्रसाद पोद्दारन नहीं मिलन में तृप्ति -हनुमान प्रसाद पोद्दार न आगे. नहीं वासना नहीं कामना -हनुमान प्रसाद पोद्दार निज सुख काम गन्ध का जिनमें -हनुमान प्रसाद पोद्दार निज सुख वांछा नैकु नहिं -हनुमान प्रसाद पोद्दार निज सुख-लेश वासना का -हनुमान प्रसाद पोद्दार नित्य नयी क्षमता है बढ़ती -हनुमान प्रसाद पोद्दार नित्य सर्वकारण कारण हरि -हनुमान प्रसाद पोद्दारप पर जिनमें अपनी रुचि कुछ भी नहीं -हनुमान प्रसाद पोद्दार परम गोप्य अतिसय अमल -हनुमान प्रसाद पोद्दार पावन पावक प्रेम कौ -हनुमान प्रसाद पोद्दार पूर्ण त्यागमय सर्वसमर्पण का -हनुमान प्रसाद पोद्दार पूर्ण समर्पण हो सदा -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्यारे! हँसो रहो ही हँसते -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रथम साधना है इसकी-इन्द्रिय -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रथम सीस अरपन करै -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रान-त्याग हू तैं कठिन -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रानसहित या देह कौ बिसरि -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रेम अमिय के पियत ही -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रेम अमिय चाहै पियौ -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रेम कौ एक मधुर -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रेम जो प्रगट्यौ ब्रज -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रेम पवित्र परम उज्ज्वल -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रेम रस सागर नागरि राधा -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रेम राज्य के सभी विलक्षण -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रेम राज्य में निज-सुख-इच्छा -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रेम सदा पावन परम रहित -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रेम हृदय की बस्तु है -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रेम-दिवाकर उगत हीं -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रेम-पंथ अति ही बिकट -हनुमान प्रसाद पोद्दार प्रेमी जन मुक्ति न लहै -हनुमान प्रसाद पोद्दारब बरसत आनँद रस कौ मेह -हनुमान प्रसाद पोद्दार ब्रजसुन्दरी प्रेम की प्रतिमा -हनुमान प्रसाद पोद्दार ब्रह्मलोक परजंत के -हनुमान प्रसाद पोद्दारभ भोग मोक्ष इच्छा पिशाचिनी -हनुमान प्रसाद पोद्दार भोगासक्ति कामना करती रहती -हनुमान प्रसाद पोद्दारम ममता की अति बुद्धि तैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार मिला जिसको हरि मिलनानंद -हनुमान प्रसाद पोद्दार मिले नेत्र नेत्रों में जाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार मिलौ न चाहें तुम कबौं -हनुमान प्रसाद पोद्दार म आगे. मेरी उन राधा के शुचितम -हनुमान प्रसाद पोद्दार मेरे साथ बिहार करैं प्रिय -हनुमान प्रसाद पोद्दार मोहन की मुसुकान मधु -हनुमान प्रसाद पोद्दारर रसमय, रसिक, रससुधा-सागर -हनुमान प्रसाद पोद्दार रह जाती वञ्चित वह -हनुमान प्रसाद पोद्दार राधा गोपी नहीं भोग की -हनुमान प्रसाद पोद्दार राधा नहीं चाहतीं निज सुख -हनुमान प्रसाद पोद्दार राधा मानस सिन्धु में उठहिं -हनुमान प्रसाद पोद्दार राधाराधन के परम हैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार राधारानी देतीं प्रिय को पल-पल -हनुमान प्रसाद पोद्दारल लग जाती है होड़ परस्पर -हनुमान प्रसाद पोद्दार लज्जा शील मोह गृह भारी -हनुमान प्रसाद पोद्दार लौकिक भोग काम है -हनुमान प्रसाद पोद्दारव विषय रस नीरस सदा है -हनुमान प्रसाद पोद्दार वे हैं एकमात्र सब मेरे -हनुमान प्रसाद पोद्दारश शुद्ध प्रेम राधा माधव का -हनुमान प्रसाद पोद्दार शुद्ध प्रेम राधा-माधव का सहज -हनुमान प्रसाद पोद्दार शुद्ध प्रेम रूप हैं केवल प्रियतम -हनुमान प्रसाद पोद्दार शुद्ध प्रेम श्रीराधा का है नित्य -हनुमान प्रसाद पोद्दार श्याम प्रेम तब जानिये -हनुमान प्रसाद पोद्दार श्रीराधा श्रीकृष्ण नित्य ही परम -हनुमान प्रसाद पोद्दारस सकल सदगुन नित करत -हनुमान प्रसाद पोद्दार सकल साधनों की फलरूपा -हनुमान प्रसाद पोद्दार सदा सुखमई सहज अति -हनुमान प्रसाद पोद्दार सबहि सौं पृथक प्रेमपथ पावन -हनुमान प्रसाद पोद्दार समय स्थान की दूरी कुछ -हनुमान प्रसाद पोद्दार सर्व त्याग हो गया सहज ही -हनुमान प्रसाद पोद्दार सुद्ध सत्त्व की वृत्ति -हनुमान प्रसाद पोद्दार सुनै सदा चाहे न कुछ -हनुमान प्रसाद पोद्दार सुमधुर स्मृति में होता नित -हनुमान प्रसाद पोद्दार सेवा करती नित प्रियतम की -हनुमान प्रसाद पोद्दार स्याम की लीला सुख की खान -हनुमान प्रसाद पोद्दार स्व सुख-वासना-गन्ध -हनुमान प्रसाद पोद्दारह हमको दुखी देखकर प्यारे -हनुमान प्रसाद पोद्दार है अति सुखकर मिलन मधुर -हनुमान प्रसाद पोद्दार‘ ‘काम’ रहेगा, तब तक होंगें ‘पाप' -हनुमान प्रसाद पोद्दार