सभी पृष्ठ | पिछला पृष्ठ (जनि हठ करहू सारँग नैनी -सूरदास) | अगला पृष्ठ (ज्ञाति (महाभारत संदर्भ)) |
- जा दिन मन पंछी उड़ि जैहै -सूरदास
- जा दिन मन पंछी उडि जैहै -सूरदास
- जा दिन संत पाहुने आवत -सूरदास
- जा दिन स्याम मिलै सोइ नीकौ -सूरदास
- जा मुख तें श्री यमुने यह नाम आवे -छीतस्वामी
- जांबवती
- जांबवान
- जाइ सबै कंसहि गुहरावहु -सूरदास
- जाकी जैसी टेव परी री -सूरदास
- जाकी जैसी बानि परी री -सूरदास
- जाकी जैसी वानि परी री -सूरदास
- जाके गुन गावत दिनरात -सूरदास
- जाके दरसन कौ जग तरसत -सूरदास
- जाके दरसन कौं जग तरसत दै री नैंकु दरस तिहिं दै री -सूरदास
- जाके रस रैनि आजु जागे हौ लाल जाइ -सूरदास
- जाकै रूप वरन बपु नाही -सूरदास
- जाकै लगी होइ सु जानै -सूरदास
- जाकै हरि जू कौ बरु ताकै -सूरदास
- जाकैं सदा सहाइ कन्हाई -सूरदास
- जाको ब्रह्मा अंत न पावै -सूरदास
- जाकों दीनानाथ निवाजैं -सूरदास
- जाकौ मन लाग्यौ नँदलालहिं, -सूरदास
- जाकौ मन लाग्यौ नँदलालहिं -सूरदास
- जाकौ मनमोहन अंग करै -सूरदास
- जाकौ व्यास वरनत रास -सूरदास
- जाकौ हरि अंगीकार कियौ -सूरदास
- जाकौं प्रभु अपनो करि -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जाकौं ब्यास बरनत रास -सूरदास
- जागहु लाल ग्वाल सब टेरत -सूरदास
- जागहु हो ब्रजराज हरी -सूरदास
- जागहु–जागहु नन्द–कुमार -सूरदास
- जागि उठे तब कुँवर कन्हाई -सूरदास
- जागिए, ब्रजराज कुँवर -सूरदास
- जागिए गोपाल लाल -सूरदास
- जागिये गुपाल लाल ग्वाल द्वार ठाढ़े -सूरदास
- जागिये गुपाल लाल ग्वाल द्वार ठाढे़ -सूरदास
- जागियै गोपाल लाल -सूरदास
- जागियै प्रानपति रैनि बीती -सूरदास
- जागुड़
- जागे हौ जु राबरे -सूरदास
- जागे हौ जु राबरे ये नैना क्यौं न खोलौ -सूरदास
- जागो बंसीवारे ललना -मीराँबाई
- जागो मेरे लाल जगत उजियारे -परमानंददास
- जागो म्हांरा जगपति राइक -मीराँबाई
- जागौ, जागौ हो गोपाल -सूरदास
- जागौ मोहन भोर भयौ -सूरदास
- जागौ हो तुम नंद–कुमार -सूरदास
- जाजनगर
- जाजलि
- जाजलि और तुलाधार का धर्म के विषय में संवाद
- जाजलि की घोर तपस्या व जटाओं में पक्षियों का घोंसला बनाने से उनका अभिमान
- जाजलि को तुलाधार का आत्मयज्ञविषयक धर्म का उपदेश
- जाजलि को पक्षियों का उपदेश
- जाठर
- जाठराग्नि
- जातकर्म संस्कार
- जाति (महाभारत संदर्भ)
- जातिस्मर
- जातिस्मर कीट
- जातिस्मर ह्नद
- जातूकर्ण
- जातूद्भव
- जातै परयौ स्यामघन नाउँ -सूरदास
- जातैं परयौ स्यामघन नाउँ -सूरदास
- जात्यौ जीत्यौ हो जादवपति रिपु दल मारयौ -सूरदास
- जान गया जो भरी हुई हैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जान देहु गोपाल बुलाई -सूरदास
- जान दै स्याईमसुंदर लौं आजु -सूरदास
- जानकि
- जानकि (सीता)
- जानकी
- जानकी मन संदेह न कीजै -सूरदास
- जानति हौ जिहि गुननि भरे हौ -सूरदास
- जानति हौं जिहि गुननि भरे हौ -सूरदास
- जानपदी
- जानि करि बावरी जनि होहु -सूरदास
- जानि जु पाए हौं हरि नीकैं -सूरदास
- जानि हौं अब वाने की बात -सूरदास
- जानी-मुक्त, सिद्ध-योगी कोई -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जानी ऊधौ की चतुराई -सूरदास
- जानी बात तुम्हारी सब की -सूरदास
- जानी बात मौन धरि रहियै -सूरदास
- जानु-हस्तैर्व्रजेशांगणे रिंगमाण
- जानुजंक
- जानुजंध
- जानौं हौं बल तेरौं रावन -सूरदास
- जान्यौ जान्यौ री सयन तेरो -सूरदास
- जान्यौ नंदसुवन कौ हेत -सूरदास
- जापक के लिए देवलोक भी नरक तुल्य इसके प्रतिपादन का वर्णन
- जापक को मिलने वाले फल की उत्कृष्टता
- जापक को सावित्री का वरदान
- जापक में दोष आने के कारण उसे नरक की प्राप्ति
- जापर दीनानाथ ढरै -सूरदास
- जाबा दे री जाबा दे -मीराँबाई
- जाबादे जाबादे जोगी किसका मीत -मीराँबाई
- जाबालि
- जामाता
- जाम्बवती
- जाम्बवद्युद्धकारी
- जाम्बवन्त
- जाम्बवान
- जाम्बूनद
- जाम्बूनद (धनुष)
- जाम्बूनद (पर्वत)
- जाम्बूनद (बहुविकल्पी)
- जाम्बूनद (सरोवर)
- जाम्बूनद (स्वर्ण)
- जाम्बूनदी
- जायसी की प्रेम व्यंजना
- जायसी की प्रेम व्यंजना 2
- जायसी की प्रेम व्यंजना 3
- जायसी की प्रेम व्यंजना 4
- जारुधि प्रदेश
- जारूथी
- जालबंध
- जालबन्ध
- जावट ग्राम नंदगाँव
- जावट ग्राम नन्दगाँव
- जावो निरमोहिया जाणो तेरी प्रीत -मीराँबाई
- जासौ लगन लागी होइ -सूरदास
- जाहि कहाँ अपराध भरे -सूरदास
- जाहि चली मैं जानति तोकौं -सूरदास
- जाहि देखि, चाहत नहीं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जाहि लगै सोई पै जानै -सूरदास
- जाहिरै जागति सी जमुना जब बूडै बहै -पद्माकर
- जाहु घरहिं बलिहारी तेरी -सूरदास
- जाहु चली अपनैं-अपनैं घर -सूरदास
- जाहु जाहु आगे तै ऊधौं -सूरदास
- जाहु जाहु ऊधौ जाने हौ -सूरदास
- जाहु तही कह सोचत हौ -सूरदास
- जाहु तहीं कह सोचत हौ -सूरदास
- जाहु तहीं मोतिसरी गँवाई -सूरदास
- जाह्नवी
- जितना जितना मन से आत्मसुखेच्छा का -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जितनी लाअ गुपालहि मेरो -सूरदास
- जितने सब हैं भाव विलक्षण -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जितवती
- जितशत्रु
- जितात्मा
- जितारि
- जिन के दृग हरि-रँग रँगे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिन जिनही केसव उर गायौ -सूरदास
- जिन लक्ष्मी की रूप-माधुरी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिन श्रीराधा के करैं नित -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिनका अन्न ग्रहण करने योग्य है और जिनका ग्रहण करने योग्य नहीं है, उन मनुष्यों का वर्णन
- जिनका अन्न वर्जनीय है, उन पापियों का वर्णन
- जिनके अतुलैश्वर्य-सिन्धु के -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिनि जिनि जाइ स्याम के आगै -सूरदास
- जिनि जिनि जाइ स्याम के आगैं -सूरदास
- जिम्भ
- जियहि क्यौं कमलिनि काँदौ हीन -सूरदास
- जियहिं क्यौ कमलिनि -सूरदास
- जिष्णु
- जिष्णु (पाण्डव पक्षीय योद्धा)
- जिष्णु (बहुविकल्पी)
- जिष्णु (श्रीकृष्ण)
- जिष्णुकर्मा
- जिसकी एक बूँद-सुषमा से -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिसकी कहीं न कोई तुलना -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिसने अपने तन-मन-जीवन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिसने शुभ-धारा सब खोई -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिससे परम सुखी हों मेरे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिससे मुझ ‘आनन्द-रूप’ को -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिहि तन गोकुलनाथ भज्यौ -सूरदास
- जिहि दिन तजी ब्रज की भीर -सूरदास
- जिहिं तन हरि भजिबौ न कियौ -सूरदास
- जिहिं बिधि मिलनि मिलैं वै माधौ -सूरदास
- जिह्यग
- जिह्वा
- जिह्वा के मम अग्र भाग पर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जी कोउ कहै बात सुनाइ -सूरदास
- जीती जीती है रन बंसी -सूरदास
- जीत्यौ जरासंध बँदि छोरी -सूरदास
- जीमूत
- जीमूत (बहुविकल्पी)
- जीमूत (महात्मा)
- जीमूत (सूर्य)
- जीव की सत्ता तथा नित्यता को युक्तियों से सिद्ध करना
- जीव की सत्ता पर अनेक युक्तियों से शंका उपस्थित करना
- जीव के गर्भ-प्रवेश का वर्णन
- जीव गोस्वामी
- जीवंजीवक
- जीवन (महाभारत संदर्भ)
- जीवन (सूर्य)
- जीवन को संगीत बना दो -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जीवन मुख देखे कौ नीकौ -सूरदास
- जीवल
- जीवात्मा और परमात्मा का योग द्वारा साक्षात्कार
- जीविका (महाभारत संदर्भ)
- जीवोत्पत्ति के दोष और बंधनों से मुक्त तथा विषय शक्ति के त्याग का उपदेश
- जुए के अनौचित्य के सम्बन्ध में युधिष्ठिर-शकुनि संवाद
- जुए में शकुनि के छल से युधिष्ठिर की हार
- जुगल किशोर मंदिर, वृन्दावन
- जुगल किशोर मंदिर वृन्दावन
- जुगल किशोर मन्दिर, वृन्दावन
- जुगल किशोर मन्दिर वृन्दावन
- जुगल छबि हरति हिये की पीर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जुगल बर परम मधुर रमनीय -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जुगलबर एक तत्त्व -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जुगलबर एक तव, दो रूप -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जुगलबर एक तव -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जुबति इक जमुना-जल कौं आई -सूरदास
- जुबती जुरि राधा-ढिग आई -सूरदास
- जुरि चली हें बधावन नंद महर घर -नंददास
- जुरि चली हें बधावन नंद महर घर 2 -नंददास
- जुवति-अंग छवि निरखत स्याम -सूरदास
- जुवति अंग-सिंगार संवारति -सूरदास
- जुवति इक आवति देखी स्याम -सूरदास
- जुवति गई घर नैंकु औरै और बतावत -सूरदास
- जुवति गईं घर नैंकु न भावत -सूरदास
- जुवति दल पेलि कै छेकि -सूरदास
- जुवति बोधि सब घरहिं पठाई -सूरदास
- जुवती कहतिं कान्हन रिस पायौ -सूरदास
- जुवती जुरि राधा-ढिग आईं -सूरदास
- जुवती ब्रज घर जान बिचारति -सूरदास
- जुवती ब्रज घर जान बिचारतिं -सूरदास
- जुवती ब्रज घ्र जान बिचारति -सूरदास
- जुवतो कहतिं कान्हन रिस पायौ -सूरदास
- जूता, शकट, तिल, भूमि, गौ और अन्न के दान का माहात्म्य
- जे जन सरन भजे वनवारी -सूरदास
- जे लोभी ते देहि कहा री -सूरदास
- जे लोभो ते देहि कहा री -सूरदास
- जेंवत कान्ह नंद इकठौरे -सूरदास
- जेंवत छाक गाइ बिसराई -सूरदास
- जेंवत देव नंद सुख पायौ -सूरदास
- जेंवत स्याम नंद की कनियाँ -सूरदास
- जेवत देव नंद सुख पायौ -सूरदास
- जेहि बिनु जाने कछुहि नहिं -रसखान
- जै गोबिंद माधव मुकुंद हरि -सूरदास
- जै गोविद माघव मुकुंद हरि -सूरदास
- जै जै धुनि तिहुँ लोक भई -सूरदास
- जै लौ माई हौ जीवन भरि जीवौ -सूरदास
- जै लौं माई हौं जीवन भरि जीवौं -सूरदास
- जैगीषव्य
- जैगीषव्य का असित-देवल को समत्वबुद्धि का उपदेश
- जैत्र
- जैत्र (बहुविकल्पी)
- जैत्र (रथ)
- जैत्र (सेवक)
- जैमिनि
- जैमिनी
- जैसी-जैसी बातैं करैं कहत न आवै री -सूरदास
- जैसे कहे स्याम है तैसे -सूरदास
- जैसे तुम गज कौ पाउं छुड़ायौ -सूरदास
- जैसे भयौ कूर्म-अवतार -सूरदास
- जैसे भयौ कूर्म-अवतारै कहौ सुनौ सो अब चित धार -सूरदास
- जैसें भयौ बामन अवतार -सूरदास
- जैसै जन की पैज न जाइ -सूरदास
- जैसै राखहु तैसैं रहौं -सूरदास
- जैसैं भयौ कूर्म-अवतार -सूरदास
- जैसैं भयौ बामन अवतार -सूरदास
- जैसौ कियौ तुम्हारै प्रभु अलि -सूरदास
- जैहै कहाँ मोतिसरि मोरी -सूरदास
- जो कोउ प्रीति करै पद-अंवुज -सूरदास
- जो घट अंतर हरि सुमिरै -सूरदास
- जो चाहो तुम, जैसे चाहो -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जो जन ऊधौ मोहिं न बिसारत -सूरदास
- जो तुम तोड़ो पिया मैं नहिं तोड़ूँ -मीराँबाई
- जो परतन्त्र सदा प्रिय-सुख के -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जो पै कोउ मधुबन लौ जाइ -सूरदास
- जो पै तुमहीं बिरद बिसारौ -सूरदास
- जो पै नंद सुवन -सूरदास
- जो पै नंदसुवन ब्रज होते -सूरदास
- जो पै मुरली को हित मानौ -सूरदास
- जो पै यहै प्रेम की बात -सूरदास
- जो मेरे भक्तनि दुखदाई -सूरदास
- जो मेरे भक्तलि दुखदाई -सूरदास
- जो लौं मन-कामना न छूटैं -सूरदास
- जो सुख ब्रज मैं एक घरी -सूरदास
- जो सुख स्याम करत वृंदावन -सूरदास
- जो सुख स्याम प्रिया सँग कीन्हौ -सूरदास
- जो सुख होत गुपालहि गाऐं -सूरदास
- जो हरि करै सो होइ2 -सूरदास
- जो हरि करै सो होइ -सूरदास
- जोग उलटि लै जाहु -सूरदास
- जोग की गति सुनत मेरै -सूरदास
- जोग जुगुति जद्यपि हम लीनी -सूरदास
- जोग ज्ञान की बातै ऊधौ -सूरदास
- जोग ठगौरी ब्रज न बिकहै -सूरदास
- जोग भलौ जौ मोहन पावै -सूरदास
- जोग सँदेसौ ब्रज मैं लावत -सूरदास
- जोग सौ कौनै हरि पाए -सूरदास
- जोगबिधि मधुबन सिखिहै जाइ -सूरदास
- जोगिया जी आवो ने या देस -मीराँबाई
- जोगिया जी छाइ परदेस -मीराँबाई
- जोगिया ने कहज्यो जी आदेस -मीराँबाई
- जोगिया मैं कहज्यो जी आदेस -मीराँबाई
- जोगिया से प्रीत कियां दुख होइ -मीराँबाई
- जोगिया सों प्रीत कियाँ दुख होय -मीराँबाई
- जोगियाजी निसिदिन जोऊं बाट -मीराँबाई
- जोगियारी प्रोतड़ी है दुखड़ा रो मूल -मीराँबाई
- जोगियारी सूरत मन में बसी -मीराँबाई
- जोगियो आँणि मिल्यो अनुरागी -मीराँबाई
- जोगी आ जा आ जा -मीराँबाई
- जोगी मत जा मत जा मत जा -मीराँबाई
- जोगी म्हाँने, दरस दियाँ सुख होइ -मीराँबाई
- जोगी म्हांने, दरस दियां सुख होइ -मीराँबाई
- जोगी होइ सो जोग बखानै -सूरदास
- जोतिक
- जोबन-दान लेउंगौ तुमसौं -सूरदास
- जोरति छाक प्रेम सौं मैया -सूरदास
- जोसीड़ा ने लाख बधाई रे -मीराँबाई
- जौ अपनौ मन हरि सौं रांचै -सूरदास
- जौ कोउ विरहिनि कौ दुख जानै -सूरदास
- जौ गिरिधर मुरली हौ पाऊँ -सूरदास
- जौ जग और बियौ कोउ पाऊँ
- जौ जग और बियौ कोउ पाऊँ -सूरदास
- जौ जागौ तो कोऊ नाही -सूरदास
- जौ जागौं तौ कोऊ नाहीं -सूरदास
- जौ तुम सुनहुँ जसोदा गोरी -सूरदास
- जौ तुमहीं हौ सबके राजा -सूरदास
- जौ तुमहीं हौं सबके राजा -सूरदास
- जौ तू नैंकेहूँ उड़ि -सूरदास
- जौ तू नैकेहूँ उड़ि जाहि -सूरदास
- जौ तू राम-नाम-धन धरतौ -सूरदास
- जौ तौ कर पग नहीं कहौ -सूरदास
- जौ देखै द्रुम के तरै -सूरदास
- जौ देखैं द्रुम के तरैं -सूरदास
- जौ देखौ तो प्रीति करौ री -सूरदास
- जौ देखौं तो प्रीति करौं री -सूरदास
- जौ पै इहै हुती उनकै मन -सूरदास
- जौ पै कान्ह और ग़ति जानी -सूरदास
- जौ पै कृष्न हमहिं जिय भावत -सूरदास
- जौ पै कोउ माधौ -सूरदास
- जौ पै कोउ माधौ सौ कहै -सूरदास
- जौ पै प्रभु करुना के आले -सूरदास
- जौ पै मुरली कौ हित मानौ -सूरदास
- जौ पै मोहिं कान्ह जिय भावै -सूरदास
- जौ पै यहै बिचार परी -सूरदास
- जौ पै राखति हौ पहिचानि -सूरदास
- जौ पै राखति हौ पहिचानी -सूरदास
- जौ पै लै जाइ कोउ -सूरदास
- जौ पै लै जाइ कोउ मोहि द्वारिका कै देस -सूरदास
- जौ पै हिरदै माँझ हरी -सूरदास
- जौ पै हिलग हिए मैं है री -सूरदास
- जौ प्रभु मेरे दोष बिचारैं -सूरदास
- जौ बिधना अपबस करि पाऊ -सूरदास
- जौ मन कबहुँक हरि कौं जाँचैं -सूरदास
- जौ मन कबहुँक हरि कौं जाँचैं। -सूरदास
- जौ मेरे दीनदयाल न होते -सूरदास
- जौ लौं सत सरूप नहिं सूझत -सूरदास
- जौ सखि नाहिंनै ब्रज स्याम -सूरदास
- जौ हम भले बुरे तौ तेरे -सूरदास
- जौ हरि-व्रत निज उर न धरैगौ -सूरदास
- जौनसारी जनजाति