"सूरसागर द्वितीय स्कन्ध" श्रेणी में पृष्ठ is shreni mean nimnalikhit 40 prishth haian, kul prishth 40 अ अचंभौ इन लोगनि कौं आवै -सूरदास अजहूँ सावधान किन होहि -सूरदास अपुनपौ, आपुन ही बिसरयौ -सूरदासक कह्यौ सुक श्रीभागवत बिचारि -सूरदास कह्यौ सुक, सुनौ परीच्छित राव -सूरदासग गरब गोबिंदहि भावत नाहीं -सूरदास गोबिंद सौं पति पाइ -सूरदास गोबिंद-भजन करौ इहिं बार -सूरदासज जनम-जनम-जब-जब -सूरदास जब तैं रसना राम कह्यौ -सूरदास जा दिन संत पाहुने आवत -सूरदास जाकौ मन लाग्यौ नँदलालहिं -सूरदास जिहिं तन हरि भजिबौ न कियौ -सूरदास जो लौं मन-कामना न छूटैं -सूरदास ज आगे. जो सुख होत गुपालहि गाऐं -सूरदास जो हरि करै सो होइ -सूरदास जो हरि करै सो होइ2 -सूरदास जौ मन कबहुँक हरि कौं जाँचैं -सूरदास जौ लौं सत सरूप नहिं सूझत -सूरदासन नमो नमो हे कृपानिधान -सूरदास नारद ब्रह्मा कौं सिर नाइ -सूरदास नैननि निरखि स्याम-स्वरूप -सूरदासप पहिलै हौं ही हो तब एक -सूरदासब ब्रह्मा यौं नारद सौं कह्यौ -सूरदासभ भक्ति पंथ कौं जो अनुसरै -सूरदास भक्ति-पंथ कौं जो अनुसरै -सूरदास भजन बिनु कूकर-सूकर जैसौ -सूरदास भजन बिनु जीवत जैसैं प्रेत -सूरदास व विषया जात हरष्यौ गात -सूरदासश श्री सुक के सुनि बचन -सूरदासस सकल तजि, भजि मन चरन मुरारि -सूरदास सबै दिन एकै से नहिं जात -सूरदास सूर तरौ, हरि के गुन गाइ -सूरदास सूर सुमिरि हरि-हरि दिन-रात -सूरदास सूर स्याम भजि मिटै उपाधि -सूरदास सोइ रसना, जो हरि-गुन गावै -सूरदासह हरि जू की आरती बनी -सूरदास हरि बिनु कोऊ काम न आयौ -सूरदास हरि-रस तौऽब जाइ कहुँ लहियै -सूरदास है हरि नाम कौ आधार -सूरदास