"पद्माकर की रचनाएँ" श्रेणी में पृष्ठ is shreni mean nimnalikhit 50 prishth haian, kul prishth 50 अ अँचल के ऎँचे चल करती दॄगँचल को -पद्माकर अधखुली कँचुकी उरोज अध आधे खुले -पद्माकरआ आई खेलि होरी, कहूँ नवल किसोरी भोरी -पद्माकर आई संग आलिन के ननद पठाई नीठि -पद्माकर आजु दिन कान्ह आगमन के बधाए सुनि -पद्माकर आरस सो आरत, सँभारत न सीस पट -पद्माकर आरस सों आरत सँभारत न सीस पट -पद्माकर आरस सों रस सों पदमाकर -पद्माकर आली हौं गई ही आज भूलि बरसाने कहूँ -पद्माकरए ए अलि हमें तो बात गात की न जानि परै -पद्माकर एकै संग हाल नंदलाल और गुलाल दोऊ -पद्माकर एहो नंदलाल ऐसी व्याकुल परी है बाल -पद्माकरऐ ऐ ब्रजचंद गोविंद गोपाल -पद्माकरओ ओप भरी कंचुकी उरोजन पर ताने कसी -पद्माकरऔ औरे भांति कुंजन में गुंजरत भौर भीर -पद्माकरक कबहूं फिर पांव न देहौं लला -पद्माकर कूरम पै कोल-कोल -पद्माकर क आगे. कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में -पद्माकर कै रति रँग थकी थिर ह्वै -पद्माकरख खाये पान बीरी सी बिलोचन विराजैं आज -पद्माकरग गँजन सुगुंज लग्यो तैसो पौन पुँज लग्यो -पद्माकर गुलगुली गिल मैं गलीचा है गुनीजन हैं -पद्माकर गोकुल के, कुल के, गली के -पद्माकरघ घर ना सुहात ना सुहात बन बाहिर हूँ -पद्माकर घूंघट की धूम के सुझूम के जवाहिर के -पद्माकरच चपला चमाकैं चहुँ ओरन ते चाह भरी -पद्माकर चहचही चुभकैं चुभी हैं चौंक चुँबन की -पद्माकर चालो सुनि चंदमुखी चित में सुचैन करि -पद्माकर चाह भरो चंचल हमारो चित्त नौल बधू -पद्माकरज जग जीवन को फल जानि परयो -पद्माकर जमुपुर द्वारे, लगे तिनमें के वारे -पद्माकर जाहिरै जागति सी जमुना जब बूडै बहै -पद्माकरत तालन पै ताल पै तमालन पै मालन पै -पद्माकर तीखे तेगवाही जे सिलाही चढ़ै घोड़न पै -पद्माकर द दाहन ते दूनी, तेज तिगुनी त्रिसूल हूं ते -पद्माकर दूरि ही ते देखति दसा मैं वा वियोगिनि की -पद्माकरफ फाग की मीर अमीरनि ज्यों -पद्माकर फागु की भीर, अभीरिन में गहि -पद्माकरब बिधि के कमंडलु की सिद्धि है प्रसिद्धि यही -पद्माकर बोलति न काहे एरी -पद्माकरम मल्लिक न मंजुल मलिंद मतवारे मिले -पद्माकर मीनागढ़ बंबई सुमंद मंदराज बंग -पद्माकर मोहि लखि सोवत बिथोरिगो सुबेनीबनी -पद्माकरय ये नन्दगाँव ते आये इहां उत आई -पद्माकरल लै पटपीत भले पहिरे पहिराय पियै चुनि चूनरि खासी -पद्माकरस सम्पति सुमेर की कुबेर की जो पावै ताहि -पद्माकर सुँदर सुरँग अंग शोभित अनँग रंग -पद्माकर सोभित स्वकीया गनगुन गिनती में तहाँ -पद्माकर सोसनी दुकूलनि दुराये रूप रोसनी है -पद्माकर सौ दिन को मारग तहाँ की बिदा मांगी पिया -पद्माकर