"सूरसागर तृतीय स्कन्ध" श्रेणी में पृष्ठ is shreni mean nimnalikhit 23 prishth haian, kul prishth 23 इ इहाँ कपिल सौ माता कह्यौ -सूरदासज जब हरि जू भए अंतर्धान -सूरदासत तुम्हरी गति न कछु कहि जाइ -सूरदासद देवहूति कह, भक्ति सो कथियै -सूरदास देवहूति कह, भक्ति सो कथियै2 -सूरदास देवहूति यह सुनि पुनि कह्यौ -सूरदासब बह्मा सौं स्वयंभु मनु भयौ -सूरदास बिदुर सु धर्मराइ अवतार-सूरदास ब आगे. ब्रह्मा ब्रह्मरूप उर धारि -सूरदास ब्रह्मा रिषि मरीचि निर्मायौ -सूरदास ब्रह्मा सुमिरन करि हरि-नाम -सूरदासभ भक्त सकामी हुँ जो होइ -सूरदासम मुख मृदु-हास देखि सुख पावै -सूरदासस संतनि की संगति नित करै -सूरदास सनकादिकनि कह्यो नहिं मान्यौ -सूरदास सूर तरौ हरि कै गुन गाइ -सूरदास स आगे. स्वायंभुव मनु सुत भए दोइ -सूरदासह हरि जु सौं अब मैं कहा कहौं -सूरदास हरि तैं बिमुख होइ नर जोइ -सूरदास हरि तैं बिमुख होइ नर जोइ2 -सूरदास हरि हरि हरि सुमिरन नित करौ -सूरदास हरि-गुन-कथा अपार -सूरदास हरि-गुन-कथा अपार2 -सूरदास