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- यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 829
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- यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 99
- यथेष्टम
- यदु
- यदु (उपरिचर का पुत्र)
- यदु (कृष्ण)
- यदु (बहुविकल्पी)
- यदु अन्धक
- यदु उग्रसेन नृप
- यदु कुल
- यदु वंश
- यदुकुल
- यदुवंश
- यदुवंश का नाश
- यदुवंश को ऋषियों का शाप
- यद्यपि करता सदा तुम्हारे ही -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- यम
- यम (अनुचर)
- यम (बहुविकल्पी)
- यम (महर्षि)
- यम (सूर्य)
- यम और गौतम का संवाद
- यम द्वितीया
- यमक
- यमदूत
- यमदूत नरक में किसे ले जाते हैं
- यमपुरी
- यमराज
- यमराज का नचिकेता से गोदान की महिमा का वर्णन
- यमराज का सत्यवान को पुन: जीवित करना
- यमराज की सभा का वर्णन
- यमल और अर्जुन
- यमलार्जुन उद्धार
- यमलार्जुन मोक्ष
- यमलोक
- यमलोक के मार्ग-कष्ट से बचने के उपाय
- यमलोक के मार्ग का कष्ट
- यमलोक तथा वहाँ के मार्गों का वर्णन
- यमुना
- यमुना-तट-संनिकट कुंज में -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- यमुना जयंती
- यमुना जयन्ती
- यमुना द्वीप
- यमुना नदी
- यमुनाप्रभव
- ययाति
- ययाति-शर्मिष्ठा का एकान्त मिलन
- ययाति और अष्टक का आश्रम-धर्म संबंधी संवाद
- ययाति और अष्टक का संवाद
- ययाति और देवयानी का विवाह
- ययाति का अपने पुत्र पुरु की युवावस्था लेना
- ययाति का अपने पुत्रों को शाप देना
- ययाति का अपने पुत्रों से आग्रह
- ययाति का अष्टक के साथ स्वर्ग में जाना
- ययाति का फिर से स्वर्गारोहण
- ययाति का वसुमान और शिबि के प्रतिग्रह को अस्वीकार करना
- ययाति का विषय सेवन एवं वैराग्य
- ययाति का स्वर्ग में सुखभोग तथा मोहवश तेजोहीन होना
- ययाति का स्वर्ग से पतन
- ययाति का स्वर्गलोक से पतन
- ययाति की तपस्या
- ययाति के दौहित्रों तथा गालव द्वारा उन्हें पुन: स्वर्गलोक भेजने का प्रयास
- ययाति द्वारा गालव को अपनी कन्या देना
- ययाति द्वारा दूसरों के पुण्यदान को अस्वीकार करना
- ययाति द्वारा पुरु का राज्याभिषेक करके वन में जाना
- ययाति द्वारा पुरु के उपदेश की चर्चा करना
- ययाति द्वारा ब्राह्मण को सहस्र गौओं का दान
- ययाति पतन
- ययाति से देवयानी को पुत्र प्राप्ति
- ययातिकन्या माधवी का वन में जाकर तपस्या करना
- यवक्रीत
- यवक्रीत (अंगिरा पुत्र)
- यवक्रीत (बहुविकल्पी)
- यवक्रीत का रैभ्य की पुत्रवधु से व्यभिचार तथा मृत्यु
- यवक्षा
- यवन
- यवन (जनपद)
- यवन (बहुविकल्पी)
- यवन (राजा)
- यवनपुर
- यश
- यश (महाभारत संदर्भ)
- यशस्पृक
- यशस्विनी
- यशोदा
- यशोदा कुण्ड काम्यवन
- यशोदा माता
- यशोदा माता का वात्सल्य प्रेम
- यशोदा माता का वात्सल्य प्रेम 2
- यशोदाकरैर्बन्धनप्राप्त
- यशोदाकरैर्लालित
- यशोदाघृणी
- यशोदाजी
- यशोदानन्दन
- यशोदायश
- यशोदाशुच स्नानकृत
- यशोदासुताख्य
- यशोधरा
- यशोधरा (बहुविकल्पी)
- यशोधरा (वसुदेव पत्नी)
- यष्टि
- यह अक्रूर क्रूर भयौ हम कौं -सूरदास
- यह अक्रूर दसा जो सुमिरै -सूरदास
- यह अद्वैत दरसी रंग -सूरदास
- यह अलि हमैं अंदेसौ आवै -सूरदास
- यह आसा पापिनी दहै -सूरदास
- यह ऋतु रूसिबे की नाही -सूरदास
- यह ऋतु रूसिबे की नाहीं -सूरदास
- यह कछु नाहिं नेह नयौ -सूरदास
- यह कछु नोखी बात सुनावति -सूरदास
- यह कछु भोरैहि भाइ भई -सूरदास
- यह कमरी कमरी करि जानति -सूरदास
- यह कहि उठे नंद-कुमार -सूरदास
- यह कहि कै तिय धाम गई -सूरदास
- यह कहि जननि दुहुँनि उर लावति -सूरदास
- यह कहि प्यारी भवन गई -सूरदास
- यह कहि बहुरि मान कियौ -सूरदास
- यह कहि मौन साध्यौ ग्वारि -सूरदास
- यह कहि मौन साध्यौन ग्यारि -सूरदास
- यह कुमया जौ तबहि करते -सूरदास
- यह कुमया जौ तबहीं करते -सूरदास
- यह गति देखे जात -सूरदास
- यह गोकुल गोपाल उपासी -सूरदास
- यह छवि देखि राधिका भूली -सूरदास
- यह जनि कहौ घोष-कुमारि -सूरदास
- यह जानति तुम नंदमहर -सूरदास
- यह जान्यौ जिय राधिका -सूरदास
- यह जिय हौंसै पै जु रही -सूरदास
- यह जिय हौसै पै जु रही -सूरदास
- यह जुवतिनि कौ धरम न होइ -सूरदास
- यह तब कहन लगे दिविराई -सूरदास
- यह तो भली उपजी नाहिं -सूरदास
- यह तौ नैननि ही जु कियौ -सूरदास
- यह तौ भली उपजी नाहिं -सूरदास
- यह दुख कौन -सूरदास
- यह दुख कौन सौ कहौ -सूरदास
- यह देखि धतूरे के पात चबात -रसखान
- यह धन धर्म ही तें पायो -परमानंददास
- यह न होइ जैसै माखन चोरी -सूरदास
- यह नैननि की टेव परी -सूरदास
- यह पट पीत कहाँ तै पायौ -सूरदास
- यह परचौ बिदिमान 2 -सूरदास
- यह पूजा मोहिं कान्ह बताई -सूरदास
- यह पूजा मोहिं कान्हौ बताई -सूरदास
- यह प्रसाद हों पाऊं श्री यमुना जी -परमानंददास
- यह प्रीतम सौ प्रीति निरंतर -सूरदास
- यह बंसी खोजत फिरै -सूरदास
- यह बल केतिक जादौराइ -सूरदास
- यह बात हमारे कौन सुनै -सूरदास
- यह मति नंद तोहि क्यौ छाजी -सूरदास
- यह मति नंद तोहि क्यौं छाजी -सूरदास
- यह महिमा येई पै जानै -सूरदास
- यह महिमा येई पै जानैं -सूरदास
- यह मांगो गोपीजन वल्लभ -परमानंददास
- यह मुरली ऐसी है माई -सूरदास
- यह मुरली कुस-दाहनहारी -सूरदास
- यह मुरली जरि गई न तबहीं -सूरदास
- यह मुरली बन-झार की -सूरदास
- यह मुरली बहि गई न नारै -सूरदास
- यह मुरली बहि गई न नारैं -सूरदास
- यह मुरली मोहिनी कहावै -सूरदास
- यह मुरली वन-झार की -सूरदास
- यह मुरली सखि ऐसी है -सूरदास
- यह मोकौं तबही न सुनाई -सूरदास
- यह लीला सब करत कन्हाई -सूरदास
- यह वानी कहि कंस सुनाई -सूरदास
- यह वृषभानु सुता वह को है -सूरदास
- यह व्रत हिय धरि देवी पूजो -सूरदास
- यह व्रत हिय धरि देवी पूजो 2 -सूरदास
- यह संदेश कहत हौ ऊधौ -सूरदास
- यह संदेस कह्यौ है माधौ -सूरदास
- यह सखि अब लौ कहाँ दुराई -सूरदास
- यह सखि अब लौं कहाँ दुराई -सूरदास
- यह सब नैननिही कौ लागै -सूरदास
- यह सब नैननिहीं कौं लागै -सूरदास
- यह सब मेरीयै आइ कुमति -सूरदास
- यह सब मै ही पोच करी -सूरदास
- यह सब मैं ही पोच करी -सूरदास
- यह सरीर नाहिन मेरौ -सूरदास
- यह ससि सीतल -सूरदास
- यह ससि सीतल काहैं कहियत -सूरदास
- यह सुंदरी कहाँ तैं आई -सूरदास
- यह सुख सुनि हरषीं ब्रजनारी -सूरदास
- यह सुनत नागरी माथ नायौ -सूरदास
- यह सुनि कै नृप त्रास भरयौ -सूरदास
- यह सुनि कै मन स्याम सिहात -सूरदास
- यह सुनि कै हँसि मौन रही री -सूरदास
- यह सुनि कै हँसि मौन रहीं री -सूरदास
- यह सुनि कै हलधर तहँ धाए -सूरदास
- यह सुनि गिरी धरनि झुकि माता -सूरदास
- यह सुनि चकित भइं ब्रज-बाला -सूरदास
- यह सुनि चकित भईं ब्रज-बाला -सूरदास
- यह सुनि नंद बहुत सुख पाए -सूरदास
- यह सुनि भए व्याकुल नंद -सूरदास
- यह सुनि राजा रोइ पुकारे -सूरदास
- यह सुनि स्याम बिरह भरे -सूरदास
- यह सुनि हँसीं सकल ब्रजनारि -सूरदास
- यह सुनि हंसि चलौं ब्रज-नारि -सूरदास
- यह सुनि हंसी सकल ब्रजनारि -सूरदास
- यह सुनि हमहिं आवति लाज -सूरदास
- यह हमकौ बिधना लिखि राख्यौ -सूरदास
- यह हमकौं बिधना लिखि राख्यौ -सूरदास
- यहई मन आनंद-अवधि सब -सूरदास
- यहाँ-वहाँ कुछ कहीं न मेरा -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- यहि बिधि भक्ति कैसे होय -मीराँबाई
- यहै कहत बसुदेव त्रिया जनि रोवहु हो -सूरदास
- यहै कहत बसुदेव त्रिया जनि रोवहु हो 2 -सूरदास
- यहै कहत बसुदेव त्रिया जनि रोवहु हो 3 -सूरदास
- यहै कही कहि मौन रही -सूरदास
- यहै जानि गोपाल बँधाए -सूरदास
- यहै प्रकृति परि आई ऊधौ -सूरदास
- यहै बहुत जो बात चलावै -सूरदास
- यहै भाव सब जुवतिनि सौ -सूरदास
- यहै भाव सब जुवतिनि सौं -सूरदास
- यहै मंत्र अक्रूर सौ -सूरदास
- यहै मंत्र अक्रूर सौं -सूरदास
- या गति की माई को जानै -सूरदास
- या गोकुल के चौहटै रँगभीजी ग्वालिनि -सूरदास
- या गोकुल के चौहटै रँगभीजी ग्वालिनि 2 -सूरदास
- या गोकुल के चौहटैं रँगभीजी ग्वालिनि -सूरदास
- या गोकुल के चौहटैं रँगभीजी ग्वालिनि 2 -सूरदास
- या घर प्यारी आवति रहियौ -सूरदास
- या घर मैं कोउ है कै नाहीं -सूरदास
- या जुवती के गोरस कौ हरि -सूरदास
- या बिधि राजा करयौ बिचारि -सूरदास
- या बिनु होत कहा -सूरदास
- या बिनु होत कहा ह्याँ सूनौ -सूरदास
- या ब्रज तै दवरितु न गई -सूरदास
- या ब्रज में कछू देख्यो री टोना -मीराँबाई
- या मोहन के मैं रूप लुभानी -मीराँबाई
- या लकुटी अरु कामरिया पर -रसखान
- याकी जाति स्याम नहिं जानी -सूरदास
- याकी सखि सुनै ब्रज को रे -सूरदास
- याकै गुन मैं जानति हों -सूरदास
- याचना (महाभारत संदर्भ)
- याज
- याज्ञयवल्क्य द्वारा सूर्य से वेदज्ञान की प्राप्ति का प्रसंग सुनाना
- याज्ञवल्क्य
- याज्ञवल्क्य का जनक को उपदेश
- याज्ञवल्क्य का जनक को उपदेश देकर विदा होना
- याज्ञसेनी
- याज्ञ्वल्क्य का जनक को उपदेश
- यातुधानी
- यातैं तुमकौं ढीठि कही -सूरदास
- याद पड़ रहा है-आये थे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- यादव सेना द्वारा शाल्व सेना का प्रतिरोध
- यादवानां ज्ञानद
- यादवेश
- यादवैर्मण्डितांग
- यादवैर्मण्डिताङ्ग
- यादवों का पांडवों से मिलन
- यादवों की अर्जुन के विरुद्ध युद्ध की तैयारी
- यानहन्ता
- याम (सूर्य)
- यामुन
- यामुन पर्वत
- यायात तीर्थ की महिमा और ययाति के यज्ञ का वर्णन
- यायावर
- यायावर (ऋषि)
- यायावर (बहुविकल्पी)
- याहि और नहि कछू उपाइ -सूरदास
- याही तै सूल रही सिसुपालहिं -सूरदास
- याहू मै कछु बाट तिहारौ -सूरदास
- याहू मैं कछु बाट तिहारौ -सूरदास
- युग
- युगंधर
- युगंधर (राजा)
- युगधर्म का वर्णन एवं काल का महत्त्व
- युगन्धर
- युगन्धर (पर्वत)
- युगन्धर (बहुविकल्पी)
- युगन्धर (राजा)
- युगप
- युगानां सहस्त्रम
- युगान्तकालिक कलियुग समय के बर्ताव का वर्णन
- युगों के अनुसार मनुष्यों की आयु तथा गुणों का निरूपण
- युद्ध (महाभारत संदर्भ)
- युद्ध की भयानक स्थिति का वर्णन और आठवें दिन के युद्ध की समाप्ति
- युद्धकृत
- युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन
- युधामन्यु
- युधामन्यु तथा उत्तमौजा का दुर्योधन के साथ युद्ध
- युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध तथा भीम का हर्षोद्गार
- युधिष्ठर
- युधिष्ठर (कृष्ण पुत्र)
- युधिष्ठिर